tag:blogger.com,1999:blog-31423852369138214962024-02-20T10:32:43.019-08:00अंजानी ऋतुRitu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.comBlogger35125tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-13406873222833993352016-12-22T23:26:00.001-08:002016-12-22T23:26:14.579-08:00रूढि़यों को तोड़कर आगे बढ़ती बेड़नियां<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #262626;"><strong><br /></strong><span style="color: #222222;"></span></span></div>
मध्य प्रदेश राज्य की बेडि़या जाति की
महिलाएं जिन्हें बेड़नी कहा जाता है, पुरानी रूढि़यों को तोड़कर आगे बढ़
रही हैं। कई बेड़नियां जनजाति के पारंपरिक <span style="color: #222222;"> रिवाज़ </span>‘नथ उतरवाई’ को न कह रही हैं। इस <span style="color: #222222;"> रिवाज़ </span> का सीधा अर्थ लड़कियों को वेश्यावृत्ति में धकेलने से है।
<div style="text-align: justify;">
बेडि़या जनजाति मध्य प्रदेश की प्रमुख जनजाति है। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड का प्रसिद्ध राई नृत्य इसी जनजाति के लोगों का <span style="color: #222222;"> रिवाज़ </span> है।
मध्य प्रदेश में इस जनजाति की जनसंख्या करीब दो लाख है और यह रायसेन
छिंदवाड़ा, जबलपुर और विदिशा क्षेत्रों में पाई जाती है। इस जनजाति में
माहवारी शुरू होते ही लड़की की ‘नथ उतरवाई’ की रस्म करने का <span style="color: #222222;"> रिवाज़ </span> है। परंपरा के नाम पर इसके बाद शुरू होता है उसका शोषण। रोज दस से पंद्रह पुरुष ऐसी लड़की के साथ परंपरा के नाम पर बिना उसकी <span style="color: #222222;">मर्ज़ी </span>के उससे षारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं। ये सारे पुरुष ऊँची समझी जाने वाली जाति के होते हैं।<br />
इसके अलावा मानव तस्करी के तहत इन्हें बेचने के भी मामले सामने आ रहे हैं। लेकिन अब बेड़नियां इस <span style="color: #222222;"> रिवाज़ </span> को
न कह रही हैं। बेडि़या जनजाति की शिखा नाम की लड़की भी उन्हीं लड़कियों
में से है जिसने इस परंपरा को मानने से साफ मन कर दिया। शिखा की उम्र
पंद्रह साल है। उसकी मां की मौत के बाद उसके मामा मामी उसे ले गए। शिखा ने
बताया कि मामा मामी कहते थे कि बड़े होने पर उसे मुंबई भेज देंगे। एक
समाजिक संगठन ने उसे बचाया। शिखा एक शिक्षक बनना चाहती है। वहीं माधुरी
खाना बनाकर अपना और बच्चों का पेट पालती है। माधुरी ने कहा कि वह नहीं
चाहती कि उसकी बेटी की ‘नथ उतरवाई’ हो।<br />
हालांकि सामाजिक तौर पर अभी इन्हें स्वीकार नहीं किया जाता है और सरकारी
तौर पर भी इन्हें सहायता नहीं मिल रही है। स्कूल या कॉलेजों में भी इन्हें
प्रताड़ना सहन करनी पड़ती है। कई बार शिक्षक ही इनके साथ बलात्कार करते
हैं। लेकिन बेड़नियों को उम्मीद है कि उनकी अंधेरी रात की एक दिन सुबह
होगी।</div>
</div>
Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-15684750530912314522015-09-22T06:08:00.001-07:002015-09-22T06:08:11.520-07:00मध्यप्रदेश में बदतर होती दलितों की स्थिति <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
एक ओर तो केंद्र सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ के दावे करती है, लेकिन केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा शाषित मध्यप्रदेश में दलितों की स्थिति अभी भी बदतर है। यूं तो देश भर में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में तो उनका जीना दूभर होता जा रहा है। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
इसी महीने मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के मुंडवारा गांव में एक महिला को निर्वस्त्र कर पेशाब पिलाने का मामला सामने आया। 26 अगस्त को हुई यह घटना सितंबर की शुरुआत में सामने आई। घटना का संबंध जमीन विवाद से है। दबंग परिवार के दव्र्यवहार का शिकार हुई महिला की शिकायत पर रिपोर्ट तो दर्ज हुई, लेकिन अभी तक मामले में कोई गिरफ्तारी न होना बताता है कि राज्य की पुलिस दलितों को लेकर कितनी संवेदनशील है? इतना ही नहीं प्रदेश के अलीराजपुर जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर घटवानी गांव के 200 दलित कुएं का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं, क्योंकि दबंग उन्हें हैंडपंप से पानी नहीं भरने देते। वहीं राज्य के 80 फीसदी गांवों में दलितों के मंदिरों में जाने पर रोक है। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) और अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मैरिलैंड के एक अध्ययन के अनुसार, छुआछूत को मानने में मध्य प्रदेश पूरे देश में शीर्ष पर है। सर्वे में मध्य प्रदेश में 53 फीसदी लोगों ने माना कि वे छुआछूत को मानते हैं। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
यह तो केवल कुछ आंकड़े हैं, जो प्रदेश में दलितों की स्थिति को बयां करते हैं, असल तस्वीर तो इससे कहीं ज्यादा भयानक है। यूं तो प्रदेश सरकार दलितों के उत्थान की बात करती है लेकिन ऐसी घटनाएं सोचने पर विवश करती हैं कि ये बातें कितनी सच हैं! केंद्र सरकार का दावा है कि वह देश को भयमुक्त बनाएगी, लेकिन जब देश के एक बड़े प्रदेश में आधी आबादी की स्थिति यह है, तो यह दावा कोरा ही नजर आता है। </div>
</div>
Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-61481209515635396872015-09-14T06:24:00.001-07:002015-09-14T06:24:46.923-07:00मप्र. में महिला सुरक्षा के दावों की पोल खुली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कई बार दावा कर चुके हैं कि मध्यप्रदेश महिलाओं के लिए सुरक्षित प्रदेश हैं। यहां की महिलाएं खुद को अन्य राज्यों के मुकाबले सुरक्षित महसूस करती हैं। मुख्यमंत्री इतना ही नहीं बल्कि खुद को लड़कियों का मामा कहलाना पसंद करते हैं। एक साक्षात्कार के दौरान जब उनसे मामा कहलाने के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि मामा अर्थात मा मा, जिसमें दो मां हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश को महिलाएं मायके के जैसा महसूस करें, वह यही चाहते हैं।<br />
लेकिन हाल ही में जारी किए गए नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं, तो शिवराज सिंह चौहान का यह दावा खोखला साबित होता है। आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश में दुष्कर्म के मामले में मध्यप्रदेश अव्वल है। पिछले दस सालों में 2005 से 2014 के बीच मध्यप्रदेश में दुष्कर्म के 34,143 मामले<br />
दर्ज किए गए। राज्य में हर दिन 13 दुष्कर्म के मामले सामने आते हैं और पीड़ितों में आधी लड़कियां नाबालिग हैं। यह तो केवल वे मामले हैं, जो पुलिस थानों में दर्ज हुए हैं, अगर इनमें सामने न आने वाले मामले जोड़ दिए जाएं, तो आंकड़ों की संख्या दोगुनी हो सकती है;<br />
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लड़कियों के लिए कई योजनाएं जैसे,<br />
लाड़ली लक्ष्मी योजना, बेटी बचाव अभियान, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना चला<br />
रखी हैं। मध्यप्रदेश सरकार का दावा है कि राज्य में लड़कियों की सुरक्षा<br />
और उन्नति के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। वहीं यह आंकड़े बेहद चौंकाते हैं, क्येांकि जिस प्रदेश का मुख्यमंत्री सुरक्षा को लेकर बड़े—बड़े दावे करता हो, उस प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की इतनी बड़ी संख्या सोचने पर विवश कर देती है।<br />
पिछले दस सालों के आंकड़े बताते हैं कि राज्य सरकार महिलाओं को लेकर कितनी चिंतित है। मुख्यमंत्री के दावे कितने सच हैं।<br />
मुख्यमंत्री साहब यह बताएं कि ‘मामा’ बनने का उनका वादा कितना सच है। महिला सुरक्षा को लेकर उन्होंने पिछले 12 साल से ज्यादा समय के अपने शासन में क्या कदम उठाए हैं। मध्यप्रदेश की निवासी होने के नाते यह सवाल मेरे मन में उठ रहे हैं। अपनी सुरक्षा को लेकर मेरी चिंता लाजिमी है, उम्मीद है कि मुख्यमंत्री साहब इसका उचित उत्तर देंगे। </div>
Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-88049313426935523832015-07-20T11:22:00.001-07:002015-07-20T11:23:02.465-07:00मोहिनी........<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
कभी-कभी कुछ कहती सी मालूम होती है, तो कभी एकदम चुपचाप सी। गुमसुम सी उसकी आंखों में बहुत गहराई है। झील की तरह नीली आंखें जैसे कुछ कहना चाह रही हों, लेकिन शब्द उसके पास नहीं। वह अनजान है, अजनबी है, लेकिन बहुत कुछ खास है उसमें।<br />
उसका नाम नहीं पता, लेकिन मैंने अपने मन में ही उसे नाम दे दिया है मोहिनी। हां मोहिनी ही है वह। उसका चेहरा भुलाए नहीं भूलता। उसकी आंखों की कसमसाहट समझ नहीं आती। जब हॉस्टल से मैट्रो के लिए निकलती हूं, तो अक्सर ही मैट्रो स्टेशन के बाहर अपनी मां के साथ बैठी वह 5-6 साल की बच्ची अनायास ही ध्यान खींच लेती है। करीब एक साल से देख रही हूं, उसे मैं। सोचती हूं, कभी उससे ढेर सारी बाते करूंगी, लेकिन ऑफिस जाने की जल्दी में बस एक बार उसकी ओर देख ही पाती हूं। शायद वह भी समझती है, मेरी आंखों को। तभी तो जैसे ही मैं उसे देखती हूं, वह मुस्कुरा देती है। उसकी वह प्यारी सी मुस्कान मुझे रास्ते भर सुकून देती है।<br />
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Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-727036024893996022015-03-01T09:39:00.002-08:002015-03-01T09:40:03.577-08:00अनकहा रिश्ता, अधूरी कहानी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
जिंदगी में कभी-कभी कुछ अलग ही लोगों से मुलाकात हो जाती है। यूं तो रोज ही कई लोगों से वास्ता पड़ता है। आते-जाते, ऑफिस में काम करते और सड़कों पर चलते न जाने कितने चेहरे हमारे सामने से गुजरते हैं। जिंदगी में कितने लोग हमें मिलते हैं। कितने दोस्त बनते हैं और कितने वक्त के साथ छूट जाते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनसे मुलाकात तो छोटी होती है, पर एक अनकहा रिश्ता बन जाता है।<br />
एक ऐसा ही रिश्ता मिला था सीमा को यूं ही आते-जाते, मिलते-मिलाते। उज्जवल से एक छोटी सी मुलाकात ने उसके जीवन में हलचल मचा दी थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर क्या है यह रिश्ता। क्यों उसे यह रिश्ता सबसे बड़ा और करीबी लगता है, क्यों उससे दिल की हर बात करने का मन करता है, क्यों वह उसे देखना चाहती है, जी भरकर बातें करना चाहती है क्यों? बहुत से सवाल चल रहे हैं उसके मन में... लेकिन हल नहीं है उसके पास।<br />
सीमा को उज्जवल का साथ बेहद खास लगता। कभी वह उससे खूब बतियाती, तो कभी कुछ सोचकर मौन भी हो जाती। कभी-कभी तो वह उसके सामने अल्हड़ बच्ची बन जाती, तो कभी-कभी बड़ी-बड़ी बातें करती। उसे खुद ही नहीं समझ में आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है उसके साथ। पहली बार ऐसा कुछ महसूस कर रही थी वह। यूं तो वह उज्जवल को अपना दोस्त कहती थी, लेकिन वह कुछ खास है। हां कुछ तो खास है उज्जवल में... जो वह महसूस कर रही थी, लेकिन शब्द उसका साथ नहीं दे रहे थे.....................................<br />
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Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-43879077559456267532014-09-24T05:01:00.001-07:002014-09-24T05:01:40.425-07:00सांप्रदायिकता की आग में झुलसते देश<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
दोस्तो यह लेख जून माह में लिखा था, लेकिन ब्लॉक पर नहीं डाल पाई, अब डाल रही हूं, कुछ पुराने आंकड़े इसमें हो सकते हैं,<br />
<br />
<br />
सांप्रदायिकता किसी भी देश के लिए खतरनाक होती है। इन दिनों दुनिया के कई देश इस आग में झुलस रहे हैं। इराक, सीरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में सांप्रदायिक सोच वाले कट्टरपंथियों ने कहर ढाया हुआ है। इस्लाम के दो धड़ों (शिया और सुन्नी) के बीच फैले द्वंद्व में यह देश फंसे हुए हैं। दोनों धड़ों के तथाकथित धार्मिक ठेकेदारों के बीच फैले संघर्ष में इन देशों की आम जनता पिस रही है, मर रही है।<br />
हाल ही में इराक का उदाहरण हमारे सामने है। सुन्नी संप्रदाय से संबंधित आतंकी संगठन अलकायदा के एक अन्य संगठन आईएसआईएल (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवेंट) ने इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल पर अपना कब्जा जमा लिया। मोसुल पर कब्जे के बाद इन आतंकियों ने इराक के सर्वाधित तेल उत्पादक क्षेत्र तिकरित और वहां के तेल संयंत्रों पर कब्जा कर लिया। इस संगठन ने तिकरित के लोगों को चेतावनी दी कि वे अपना स्थान छोड़कर चले जाएं। संगठन द्वारा जारी एक वीडियो में कहा गया, श्माताओ, अपने सैनिक बेटों से कह दो कि वह अपना स्थान छोड़ दें, वरना वे मारे जाएंगे।l मोसुल, तिकरित, सिलाहद्दीन, किरकुक जैसे बड़े शहरों पर आईएसआईएल ने अपना कब्जा कर लिया। इस बीच डर की वजह से पांच लाख से ज्यादा लोग मोसुल छोड़कर चले गए और सैकड़ों लोगों की संघर्ष के दौरान मौत हो गई।<br />
दरअसल, इराक में लड़ाई शिया और सुन्नी के बीच आधिपत्य को लेकर है। देश में शिया नीत सरकार है और प्रधानमंत्री नूरी-अल-मलीकी शिया संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं। सुन्नी संप्रदाय के लोग इराक से अलग होने की मांग कर रहे हैं। यह एक अलग सुन्नी राष्ट्र चाहते हैं। इसे लेकर जब-तब इराक संप्रदायिक संघर्ष अपना रूप दिखाता रहता है और इन सबमें आम जनता अपना सब कुछ खो देती है।<br />
इससे भी ज्यादा बदतर हालात सीरिया के हैं। यहां पर पिछले चार साल सांप्रदायिक हिंसा फैली हुई है। राष्ट्रपति बसर-अल-असद की सरकार के खिलाफ विद्रोह जारी है। सीरिया में अरब क्रांति के साथ ही संघर्ष की शुरुआत हुई, जो अब तक बदस्तूर जारी है। इस बीच कई देशों में सत्ताएं पलट गईं, लेकिन सीरिया में फैले संघर्ष ने गृहयुद्ध का रूप ले लिया। असद की शिया सेनाओं के खिलाफ देश के सुन्नी विद्रोहियों के संघर्ष में अब तक एक लाख से ज्यादा लोग मारे गए हैं, जबकि लाखों की तादाद में लोग घायल हुए हैं। सीरिया में तो हालात यह हैं कि यहां पर आम जनता पर रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया। हालांकि अभी संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में देश में रासायनिक हथियारों को समाप्त करने का काम चल रहा है। लेकिन यह कहना काफी मुश्किल है कि सीरिया के हालात किस मोड़ पर जाकर थमेंगे।<br />
ऐसा ही कुछ पाकिस्तान और अफगानिस्तान में जारी है। पाकिस्तान में सुन्नी संप्रदाय से संबंधित अलकायदा, तालिबान जैसे आतंकवादी संगठन हावी हैं। पाकिस्तान में हाल ही में कराची हवाई अड्डे पर हुआ हमला भी इसी सांप्रदायिक लड़ाई की एक कड़ी माना जा रहा है। पाक में पिछले दिनों शिया बाहुल्य इलाकों को निशाना बनाकर आतंकी हमले होते रहे हैं। इससे पहले भी पाकिस्तान में अक्सर जुमे की नमाज के बाद शिया मस्जिदों पर हमले हुए हैं, जिनमें हजारों की तादाद में लोग मारे गए। यही हालात अफगानिस्तान में भी नजर आ रहे हैं।<br />
कुल मिलाकर कहा जाए, तो इस्लाम को मानने वाले दो धड़ों के बीच फैली कट्टर सोच की आग इन देशों को जला रही है और इसमें आम जनता मर रही है। इस सांप्रदायिकता की आग को ठंडा कैसे किया जाए, इसके बारे में वैश्विक स्तर पर विचार करने और उसका क्रियान्वयन करने की जरूरत है।<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-76800575851948548942014-09-24T04:56:00.000-07:002014-09-26T04:10:56.743-07:00असहिष्णु होते हम....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">भावनाएं आहत होने के कारण जितने उपद्रव होते
हैं</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">उनके पीछे वास्तविक कारण वह नहीं होता</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">जो पेश किया जाता है. अचानक भारतीय राजनीति में
लोगों के </span><span lang="EN-GB">'</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">सम्मान</span><span lang="EN-GB">' </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">इतने
महत्वपूर्ण हो गए हैं कि जिन अवधारणाओं पर हिंदुस्तान की बुनियाद रखी गई थी</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">वह हिलती दिख रही है. क्या सार्वजनिक जीवन में
आपको हमेशा देवता की तरह पूजा जाएगा</span><span lang="EN-GB">? </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">क्या
आपके आलोचक नहीं होंगे</span><span lang="EN-GB">? </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">क्या
विरोधी नहीं होंगे</span><span lang="EN-GB">? </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">क्या हर
व्यक्ति को आपकी स्वीकार्यता के लिए मजबूर किया जाएगा</span><span lang="EN-GB">? </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">क्या
भारत के आजाद होने के बाद से लगातार नेताओं पर टिप्पणी करने पर लोगों को सजाएं दी
जाती रही हैं</span><span lang="EN-GB">? </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">क्या नेहरू</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">लोहिया</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">शास्त्री</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">इंदिरा आदि पर भी अपमानजनक टिप्पणी के लिए किसी
को सजा दी गई थी</span><span lang="EN-GB">? </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">यह सही है कि
किसी पर अपमानजनक टिप्पणी नहीं करनी चाहिए</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">लेकिन
यदि किसी ने की तो क्या उसकी जान ले ली जाएगी</span><span lang="EN-GB">? </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">ऐसा
लग रहा है कि समय के साथ हम लगातार असहिष्णु होते जा रहे हैं. </span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">जिन लोगों ने पुणे में युवक की हत्या की</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">उन्हीं लोगों ने सोनिया गांधी</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">मनमोहन सिंह</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">और
अन्य कांग्रेसी नेताओं की कैसी</span><span lang="EN-GB">—</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">कैसी
तस्वीरें शेयर की हैं</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">पिछले
महीने इसके गवाह है. जाहिर है कि इस हत्या का कारण वह नहीं था जो बताया जा रहा है.
हत्या के बाद </span><span lang="EN-GB">'</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">एक विकेट गेली</span><span lang="EN-GB">' </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">जैसा मैसेज बहुत कुछ कहता है. आज यह नया चलन है
कि सोशल मीडिया पर नेताओं पर टिप्पणी आपको न सिर्फ जेल भिजवा सकती है</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">बल्कि बर्बर तरीके से आपकी जान भी ली जा सकती
है. एक फर्जी आईडी से बना फेसबुक अकाउंट</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">जिस
पर बाल ठाकरे और शिवाजी की कथित अपमानजनक फोटो लोड होती है और उन्माद इस कदर
भड़कता है कि एक युवक की क्रूर हत्या कर दी जाती है. वह भी उस अपमान के लिए जो
भुक्तभोगी ने किया या नहीं</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">किसी को
नहीं पता. क्योंकि वह अकाउंट कहीं बाहर से चलाया जा रहा था! क्या किसी का सम्मान
किसी की जान से ज्यादा बड़ा है</span><span lang="EN-GB">? </span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">याद कीजिए कि कार्टूनिस्ट शंकर का वह कार्टून
जो छह दशक पहले बना था और प्रमुख अखबार में प्रकाशित हुआ था. उसे </span><span lang="EN-GB">2006</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;"> में एनसीईआरटीई की किताबों में शामिल किया गया
था. दो साल पहले उसपर अचानक विवाद हुआ और योगेंद्र यादव व सुहास पलिशकर ने अपने
पदों से इस्तीफा दे दिया. नेताओं पर कार्टून बनाना कोई अनोखी बात नहीं है. दुनिया
भर के कार्टूनिस्ट सभी छोटे बड़े नेताओं पर कार्टून बनाते रहे हैं. जाहिर है कि वे
चुटकी ही लेते हुए होते हैं. </span></div>
<br />
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">कहते हैं कि कार्टूनिस्ट केशव शंकर पिल्लै की
नेहरू से मित्रता थी. नेहरू ने शंकर को सलाह दी थी कि </span><span lang="EN-GB">‘</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">शंकर</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">मुझे भी मत बख्शना!</span><span lang="EN-GB">’ </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">लेकिन
आज कार्टून आपको जेल भिजवा सकते हैं. क्या हम समय के साथ जितना आगे आए हैं</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">उतने ही संकीर्ण और असहिष्णु हो गए हैं</span><span lang="EN-GB">? </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">ये संकीर्णताएं वह भस्मासुर हैं जो एक दिन हमें
लील जाएंगी. यह याद रखिए कि सहिष्णुता लोकतंत्र की जान है और वही इस देश की ताकत
है. कठमुल्लापन आपको कहां ले जाता है</span><span lang="EN-GB">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">पाकिस्तान
इसका जीता</span><span lang="EN-GB">—</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">जागता उदाहरण है. हालिया हत्या पर
सियासी गलियारे की चुप्पी भयावह है.दूसरों पर हमले करना एक तरह की व्यक्ति पूजा का
नतीजा है कि आप किसी नेता पर कुछ कह देंगे तो आपको मारा</span><span lang="EN-GB">—</span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 10.0pt; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 11.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin;">पीटा
जाएगा. डॉक्टर अंबेडकर मानते थे कि व्यक्ति पूजा लोकतंत्र के लिए बड़ी खतरनाक बात
है.</span></div>
</div>
Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-41145726421624473132014-09-18T11:08:00.001-07:002014-09-18T11:09:18.263-07:00क्षेत्रीय विवाद बनेगा पाकिस्तान में टूट की वजह <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
पाकिस्तान में जातीय और क्षेत्रीय संघर्ष देश की उत्पत्ति के साथ ही शुरू हो गया था. सबसे पहले पूर्वी पाकिस्तान में भाषा का विवाद बांग्लादेश बनने का कारण बना. उसी तरह सिंध प्रांत में सिंधी और ग़ैर-सिंधी, बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन और कबायली इलाक़ों में आपसी संघर्ष के अलावा, शिया-सुन्नी फ़साद पाकिस्तान में आम बात है. सिंध में सिंधी-मोहाज़िर संघर्ष की शुरुआत वर्ष 1971 के भाषा विवाद के साथ हुई. अस्सी के दशक में अफगान शरणार्थियों के कराची में बसने के बाद इस विवाद को और मज़बूती मिली. 1984 में मुत्तहदा कौमी मूवमेंट (जो पहले मोहाजिर क़ौमी मूवमेंट के नाम से जानी जाती थी) की स्थापना हुई. इसके बाद यह पार्टी मोहाजिरों के हित की बात करती रही है. कराची में होने वाले जातीय हिंसा के लिए भी इसी को ज़िम्मेदार ठहराया जाता रहा है. वर्ष 1995 में पाकिस्तान सरकार की कार्रवाई के बाद एमक्यूएम हिंसा का रास्ता त्यागकर मुख्य धारा की राजनीति में शामिल तो हो गई, लेकिन कराची में हिंसा से इसका नाता नहीं टूटा है और यह दिनों दिन मज़बूत होता जा रहा है. वहीं अगर बलूचिस्तान की बात जाए तो, इसे वर्ष 1970 में प्रांत का दर्जा दिया गया था. लेकिन यह यहां के बलूच राष्ट्रवादियों को मंजूर नहीं था. लिहाज़ा वर्ष 1973 से 77 तक फ़ौज और बलूच राष्ट्रवादियों के बीच खूनी संघर्ष का लंबा दौर चला. इस संघर्ष में बलूच लिबरेशन आर्मी, बलूच रिपब्लिकन आर्मी और बलूच इत्तिहाद फ़ौज के ख़िलाफ़ खड़े थे. उसके बाद यह संघर्ष वर्ष 2004 से पुनः शुरू हो गया और यह सिलसिला आज भी जारी है. यहां बलूच नेताओं की हत्याएं आम बात है. वर्ष 2006 में डेरा बुग्ती के नवाब और बलूच राष्ट्रवादी अकबर ख़ान बुग्ती की हत्या फ़ौज की कार्रवाई में कर दी गई. नवाब बुग्ती की हत्या के समय पाकिस्तान में जनरल परवेज़ मुशर्रफ की फ़ौजी हुकूमत सत्ता पर क़ाबिज थी. इन हत्याओं ने बलूचिस्तान में पृथकतावादी आंदोलन को और मज़बूती प्रदान की. वैसे बलूचिस्तान में आईएसआई और फ़ौज ने यहां के बहुत सारे नौजवानों को अगवा कर लिया, उनमें कई लोगों की हत्याएं कर दी गईं और कई लोगों का अभी तक कोई पता नहीं है. वैसे पाकिस्तान बलूचिस्तान में अपनी ग़लतियां सुधारने के बजाय यहां जारी हिंसा के लिए भारत पर दोष मढ़ता रहा है. पाकिस्तान सरकार के मुताबिक़, बलूचिस्तान में जारी पृथकतावादी आंदोलन को भारत हवा दे रहा है. फाटा में पाकिस्तानी फ़ौज के तालिबान के ख़िलाफ़ कार्रवाई को दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि यह इलाक़ा पख्तून पठानों का है. यहां जाति और बिरादरी की जड़ें बहुत मज़बूत हैं. ग़ौरतलब है कि पाकिस्तानी फ़ौज, आईएसआई और सरकारी सेवाओं में पंजाबियों का एकाधिकार है. अगर यह कार्रवाई फ़ौज की तरफ़ से हो रही है तो, यहां के स्थानीय लोग इस लड़ाई को पठान बनाम पंजाबी की शक्ल दे सकते हैं. ऐसे में जो कार्रवाई आतंकवाद के ख़िलाफ़ हो रही है, उसे जातीय संघर्ष में बदलते ज्यादा देर नहीं लगेगी. अगर यहां ऐसा ही चलता रहा तो पाकिस्तान को बंटने से कोई नहीं रोक सकता. बहरहाल, पाकिस्तानी सरकार अपनी ग़लतियों से सबक नहीं सीखती है और उन्हीं ग़लतियों की पुनरावृति करती है, जो उसने पूर्वी पाकिस्तान में की थी तो हालात उससे भी बदतर हो सकते हैं. क्योंकि यहां एक तरफ बलूच अपनी आज़ादी को लेकर बग़ावत का झंडा बुलंद किए हुए हैं, वहीं सिंध में भी अलगाव की हल्की बयार नज़र आ रही है. कुल मिलाकर आज पाकिस्तान क्षेत्रीय और जातीय हिंसा के चपेट में है, जो मुल्क की एकता और संप्रभुता के लिए ख़तरा है.<br />
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मेरे एक मित्र अरुण के लेख से साभार</div>
Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-43536708827867840522014-02-23T09:36:00.001-08:002014-02-23T09:38:37.581-08:00डर जरूरी है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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कुछ दिनों पहले एक टीवी चैनल पर एक कार्यक्रम देख रही थी। कार्यक्रम अपराधियों की सजा पर केंद्रित था। मुख्य बिंदु था फांसी। क्या किसी अपराधी को फांसी की सजा देना, उस अपराध के कम होने की गारंटी है? क्या फांसी जैसी सजा से अपराध रुकते हैं? अभी तक जिन अपराधों में अपराधी को फांसी की सजा हुई है, तो क्या वह अपराध फिर नहीं दोहराए गए? ऐसे ही तमाम मुद्दों पर बहस हो रही थी। कोई सजा के पक्ष में था, तो कोई सजा के विपक्ष में।<br />
मैं भी सोच रही थी कि सजा किसी अपराध को कम करने की गारंटी तो नहीं है। लेकिन तभी कार्यक्रम को लीड करने वाले एक मशहूर पत्रकार का एक शब्द मेरे कानों में पड़ा और मैं सोच में पड़ गई कि आखिर ये क्या कह रहे हैं? उन्होंने एक व्यक्ति जो सजा के पक्ष में था और जिसका कहना था कि हां लोगों को डराने के लिए सजा जरूरी है। उसके इस वक्तव्य पर मशहूर पत्रकार महोदय ने कहा कि अगर डराना ही मकसद था, तो लोकतंत्र की क्या जरूरत थी?<br />
अब तक जो मैं सजा और अपराध की रोकथाम पर सोच रही थी, अचानक एक झटका लगा और मुझे अपने पत्रकार होने पर शर्म महसूस हुई। मैं सोचने लगी कि कैसे यह इतना गैर जिम्मेदराना बयान वह भी एक सार्वजनिक मंच पर दे रहे हैं। महाशय कह रहे हैं कि डराना मकसद है, तो लोकतंत्र क्यों? मेरा उन महाशय जी से पूछना है कि लोकतंत्र का अर्थ क्या है? या फिर उनकी नजर में क्या है? वह क्या सोचते हैं लोकतंत्र के बारे में? क्या लोकतंत्र का अर्थ यह है कि जो मरजी हो, सो करो। फिर चाहे वह किसी मासूम का बलात्कार हो या किसी के घर को जलाना या फिर देश में आतंक फैलाना। आखिर लोकतंत्र है और हमारे संविधान में भी हमें कहीं भी रहने, आने-जाने और काम करने की आजादी मिली है? तो भई हमारा तो यही काम है कि हम आतंक फैलाएंगे, मासूम की अस्मिता से खेलेंगे, किसी को मारेंगे और भी बहुत कुछ करेंगे, जो हमारा मन कहेगा वह करेंगे। भई लोकतंत्र जो है। शायद ये महाशय इसी लोकतंत्र की बात कर रहे थे। भई आओ लूट लो खेल रही एक ढाई साल की बच्ची की अस्मत। कर दो उसकी हत्या अधिकार है, तुम्हें लोकतंत्र जो है।<br />
अरे, आप ये मत समझिए कि मैं किसी सजा के पक्ष में हूं या फिर सजा ही एक मात्र जरिया नजर आता है, मुझे अपराध रोकने का। लेकिन यह तो आप भी मानते होंगे कि बिना डर के प्रीत नहीं होती और रामचरित मानस में भी कहा गया है ‘भए बिनु होइ न प्रीत।’ मानती हूं सजा से अपराध नहीं रुकेंगे। जरूरत है मानसिकता बदलने की। लेकिन रातों-रात तो लोगों का दिमाग नहीं बदला जा सकता। वक्त लगेगा। तब तक क्या? किसी भी बात को रोकना होता है, तो डर जरूरी होता है और यह डर लोगों में सजा से ही होगा।<br />
इसके लिए आप बच्चे का उदाहरण देख सकते हैं। एक बच्चा खेल-खेल में मिट्टी खाता है। उसके लिए सही नहीं है यह। उसकी मां उसे बताती है कि बेटा यह गलत बात है, लेकिन बच्चे पर असर नहीं होता। वह फिर मिट्टी खाता है, अब मां उसे दो थप्पड़ मारती है। बच्चा रोता है। लेकिन मां पिघलती नहीं। उसका अंजाम देखा है न आपने। अगली बार जब वह बच्चा मिट्टी खाने के लिए हाथ बढ़ाता है, उसे मां की मार याद आ जाती है और मिट्टी नहीं खाता। फिर धीरे-धीरे उसकी लत छूट जाती है। सो भई डर जरूरी है और डर के लिए सजा जरूरी है। हां, वह सजा कुछ भी हो सकती है, जो आप चाहें वह रख लें। फांसी हो ऐसा जरूरी नहीं। लेकिन आपके संविधान में सबसे क्रूर सजा तो यही है न। आप कुछ और बताओ। वह दिलवाओ। लेकिन डर जरूरी है।<br />
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Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-42373534211696032862014-01-23T02:16:00.000-08:002014-01-23T02:16:09.022-08:00कौन ज्यादा बीहड़ दिल्ली या चंबल ? <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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अपनी बात की शुरुआत कहां से करूं समझ नहीं आ रहा। उस चंबल की घाटी से, जहां मैं पैदा हुई और जहां के बारे में ढेरों किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। जहां डाकू पैदा होते हैं या फिर तिग्मांशू धूलिया की फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के मुख्य किरदार के मुताबिक बागी पैदा होते हैं। जहां दिन में भी जाने में डर लगता है या फिर देश की राजधानी दिल्ली से, जहां आए पांच साल हो चुके हैं और जहां की जिंदगी की आदत हो गई है। जब दिल्ली में सरेआम लुट रही नारी की अस्मिता और दिन-दहाड़े लूट, कत्ल के बारे में सुनती हूं, तो सोचने को विवश हो जाती हूं कि कौन ज्यादा बीहड़ है दिल्ली या फिर चंबल।<br />
शुरू से अब तक आमतौर पर छोटे शहरों या उभरते महानगरों की जिंदगी देखी। टीकमगढ़, ग्वालियर, इंदौर, भोपाल, हरिद्वार, देहरादून और अब दिल्ली। टीकमगढ़ से दिल्ली तक के सफर में हर जगह एक बात समान थी, वहां महिलाएं अपने घर से निकलते समय किसी अनजाने भय के माहौल में घिरी नहीं रहती थीं। अंधेरा घिरने के पहले लौट आना उनकी आदत भले हो, मजबूरी नहीं थी। वहां के माहौल में मैंने कभी अपने को असुरक्षित महसूस नहीं किया, लेकिन दिल्ली में तो दिन भी डराते हैं और यहां रात तो महिलाओं के लिए खौफ का दूसरा नाम है। 16 दिसंबर 2012 की रात को भूलना आसान नहीं है। देश के रौंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना के बाद कितना हल्ला हुआ। इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन तक हम पहुंच गये। हमारी सुरक्षा ने हमें सारे कानून तोड़ने पर मजबूर कर दिया। उस दौरान हमने डंडे भी खाए, चोट भी लगी। कमेटी बनी, सिफारिशें आईं और कानून भी बने। तब लगा कि अब दिल्ली में रातें नहीं डराएंगी। अब हम सुरक्षित घर से निकल पाएंगे, लेकिन एक साल गुजर जाने के बाद भी लड़कियों के प्रति बदनीयती या क्रूरता राजधानी में कम नहीं हुई। आज भी यहां की रातें डराती हैं। दिल वालों की दिल्ली कही जाने वाली राजधानी में अभी भी ऑफिस से निकलते हुए जब थोड़ी देर हो जाती है, तो कदमों की रफ्तार अपने-आप बढ़ जाती है। मनचलों की फबतियों और पीछा करते पैरों के बीच मैट्रो तक का रास्ता जल्द तय करने की जल्दबाजी में कई बार चोट भी लग जाती है, लेकिन दिल का डर कदमों की रफ्तार को कम नहीं होने देता। सुबह जब अखबार खोलो, तो किसी न किसी पेज पर महिलाओं से बलात्कार और अपहरण या फिर हत्या की खबरें मिल ही जाती हैं। यह खबरें अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बनती रहती हैं। ऐसा नहीं कि अब तक मैं जहां रही वहां लूट-मार, छीना-झपटी या महिलाओं के प्रति बदनियती की घटनाएं नहीं होतीं, लड़कियों और औरतों की अस्मत पर घात लगाने वाले दुनिया के हर कोने में मौजूद हैं, लेकिन दिल्ली में तो ऐसे लोग अभी भी बेलगाम होकर घूम रहे हैं।<br />
जब मैं इस डर के बारे में सोचती हूं तो पाती हूं कि घटनाएं-दुर्घटनाएं हर जगह होती हैं, लेकिन वहां मरहम लगाने वाले लोग होते हैं। खासकर लड़कियों के मामले में तो ऐसा होता है कि पड़ोसी की बेटी को लोग अपनी बेटी की निगाह से देखते हैं। कम से कम अपनी गली में घुसते ही सुरक्षा का अतिरिक्त भाव मन में पैदा हो जाता है, ऐसा लगता है कि अपना ही घर है। लेकिन यहां गली में घुसने के बाद भी कदमों की रफ्तार धीमी नहीं होती। पता नहीं कौन फब्तियां कस कर चला जाए। हद तो यह है कि मोहल्ले वाले तमाशबीन बनकर देखते रहेंगे। आज जब मेरा दिल्ली में रहना एक सच्चाई है, इस पूरे मामले को नए नजरिए से देखने की जरूरत महसूस करती हूं। इस उदासीनता के पीछे की वजह शायद यह है कि उन्हें पता है कि दिल्ली में रहने वाली अधिकतर कामकाजी लड़कियां दिल्ली की नहीं, बल्कि अन्य राज्यों से आई हैं। लिहाजा बगैर किसी प्रतिक्रिया के वे ऐसी घटनाओं से मुंह मोड़ लेते हैं। स्त्रियों खिलाफ अपराध पूरी दुनिया में होते हैं। विकसित अमेरिका हो या इंग्लैंड, कोई भी इससे शून्य होने का दावा नहीं कर सकता। देश में ही जिन जगहों पर मैं रही वहां ये आंकड़े शून्य नहीं होंगे। फिर भी ऐसा क्या है जो दिल्ली को ‘असुरक्षित’ बनाता है?<br />
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Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-6152053112145961452014-01-20T03:33:00.001-08:002014-01-20T03:33:31.663-08:00बड़ी प्यारी थी वो मुलाकात <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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हाल ही में मां की तबियत ठीक नहीं थी, तो घर जाना हुआ। उन्हें लेकर हम भोपाल जा रहे थे, तो ट्रेन में एक आठ साल के लड़के से मुलाकात हुई। सामने वाली बर्थ पर वह अपनी बड़ी मम्मी (ताई जी) के साथ बैठा था। जब हमने ट्रेन पकड़ी, तो वह सो रहा था। एक घंटे बाद उठा और बैठ गया। वह बीच-बीच में अपनी बड़ी मम्मी से कुछ कह रहा था। उसकी आवाज स्पष्ट नहीं थी। अब तक मुझे यह समझ आ गया था कि वह नॉर्मल नहीं है। उसे बोलने-देखने में समस्या है। उसकी बड़ी मम्मी ने बताया कि वह बचपन से ही अल्पविकसित है। मैंने उससे पूछा तुम्हारा नाम क्या है? तो उसने अस्पष्ट आवाज में जवाब दिया जोएल। यहां से हमारी बातों का सिलसिला शुरू हुआ। वह मुझसे बातें कर रहा था और मैं उससे।<br />
सच में यह मेरा पहला अनुभव था कि अविकसित बच्चे से बात करने का। मुझसे करीब 20 साल छोटे बच्चे से मैं बातें कर रही थी। उसने अपनी बातों और इशारों में बताया कि वह अमृतसर से आ रहा है और घर जाना है। जब मैंने उसे खाने के लिए चिप्स दिए, तो उसने इनकार किया और बोला ‘घर अभी-अभी खाऊंगा’ मैं उसे समझने की कोशिश करने लगी। तभी वह फिर बोला ‘घर, मछली (बचपन में हम जैसे मछली को अपने दोनों हाथों से बनाकर बताते थे) फ्राई खाऊंगा।’ अब मैं समझ गई थी वह कह रहा था कि अभी नहीं घर जाना है और घर जाकर मछली को फ्राई करके वह खाएगा। उससे बातें करते हुए मैं उसे समझ रही थी। जोएल की बातें मुझे बहुत प्यारी लग रही थीं। बेहद संजीदगी से वह मेरी बातों के जवाब दे रहा था। थोड़ी ही देर में वह मेरा अच्छा दोस्त बन गया और फिर मुझे पता ही नहीं चला कि कब भोपाल आ गया। जोएल ने न जाने मुझसे इस तीन घंटे के सफर में कितनी बातें की। जब मैं उतरने लगी, तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा ‘घर...घर दीदी घर’, वह मुझसे कह रहा था कि दीदी घर चलो। मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा और वादा किया उसके घर आने का। एक महीना हो गया इस बात को। अब पता नहीं अब कभी जोएल से मुलाकात होगी भी या नहीं। लेकिन उसकी मासूमियत से भरा चेहरा आज भी याद आ जाता है। ईश्वर उसे खूब खुश रखे, यही कामना। <br />
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Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-70390046061089780502013-09-08T09:30:00.001-07:002013-09-08T09:30:10.765-07:00 नहीं भूलतीं वो आंखें <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दोस्तों करीब एक साल होने को हैं, जब आपसे वादा किया था रिश्तों के छलावे से भरी हुईं कुछ सच्ची कहानियां आपसे बांटने का। कुछ ऐसी कहानियां जो मुझे मिलीं उन लोगों के बीच, जिन्हें हमारा तथाकथित सभ्य समाज पागल करार देता है। पांच साल पहले पढ़ाई पूरी करने के बाद इंटर्नशिप के दौरान ऐसी महिलाओं से मुलाकात का मौका मिला। उन्हें काउंसिल के जरिए समझने का मौका मिला। ये मौका था ग्वालियर मानसिक आरोग्यशाला से लगे हॉफ वे होम में रह रही महिलाओं के साथ बिताए 15 दिनों का। वह 15 दिन मेरे लिए अनमोल थे। हम चारों सहेलियों को इंतजार रहता था, रोज सुबह होने का। जब हॉफ वे होम की गाड़ी हमें लेने आती थी और हम उन 15-16 महिलाओं के बीच दो घंटे का समय बिताते थे। उनसे बातें करना। उन्हें समझने का प्रयास करते थे। इस दौरान कुछ ऐसे किस्से मिले, जिन्हें सुनकर रोंगटे खड़े हो गए। रिश्तों के छलावे से भरी थीं इनकी कहानियां। ये पागल नहीं थी, लेकिन इनके विश्वसनीय रिश्तों ने इसे यहां तक पहुंचा दिया था। हॉफ वे होम ऐसी जगह है, जहां पर मानसिक आरोग्य शाला में आई ऐसी महिलाओं को रखा जाता है, जिन्हें और ईलाज की जरूरत नहीं होती। बस उन्हें जरूरत होती है अपनेपन की। दोस्तो दो कहानियां उस समय मैंने आपके सामने रखी थीं। आज उसकी तीसरी कड़ी पेश कर रही हूं :<br />
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नहीं भूलतीं वो आंखें<br />
कभी भी सामान को उठाकर फेंक देती। कभी किसी पर भी चिल्ला पड़ती। कोई कुछ कहता तो गुस्सा हो जाती और कभी बहुत प्यार से पेश आती। अजीब थी वह भी। मांग भर सिंदूर, दो चोटियां, हाथों में लाल-हरी चूड़ियां और माथे पर लाल बिंदी यह इंगित करती थी कि वह सुहागिन है। जब पहली बार उसे देखा, तो उसकी आंखों में गुस्सा दिखा। जब उससे मिली, तो उसने नमस्ते तो किया, लेकिन उसकी आंखें जैसे कह रही हों कि क्यों आई हो यहां? क्या करने आई हो? अब तुम भी हमें समझाओगी? न जाने कितने सवालों से भरी थी उसकी आंखें और उन आंखों में था गुस्सा? शायद हमें देखकर या फिर समाज के लिए या फिर उसके साथ घटी घटना को लेकर। पहली बार में उसे समझ पाना बहुत मुश्किल था।<br />
सपना यही कहते थे सब उसे वहां। अगले दिन जब मैं वहां पहुंची, तो सपना अपने कमरे में थी। मेरी सहेली स्मिता ने उसे अपने पास बुलाया, तो नहीं आई। थोड़ी देर में वहां की वार्डन आईं और सपना को हमारे पास ले आईं। उस समय सपना हमें खा जाने वाली आंखों से घूर रही थी। हमें थोड़ा डर तो लगा, लेकिन हिम्मत की और शुरू हुआ सपना से बातों का सिलसिला। दो-तीन दिन बीत जाने पर वह हमसे घुल-मिल गई। धीरे-धीरे खुल गई, लेकिन उसका गुस्सा बरकरार था। एक दिन सुबह जब हम सब वहां पहुंचे, तो सपना नहीं दिखाई दी, पता चला वह अपने कमरे में है। उसने कमरा अंदर से बंद कर रखा था। मैंने आवाज दी सपना दरवाजा खोलो, अंदर से कोई जवाब न आया। दो-तीन आवाजें देने के बाद एक चीख आई, चले जाओ यहां से। नहीं खोलूंगी। प्यार से उसे बुलाया, कहा देखो तुम्हारे लिए चूड़ियां लाई हूं। उसे चूड़ियों से लगाव था। थोड़ी देर में दरवाजा खुला और उसने पूछा कहां है चूड़ियां। चूड़ियां न देख उसे और गुस्सा आया और उसने सामान उठा कर फेंकना शुरू कर दिया। किसी तरह बचते हुए उसे समझा रहे थे हम। थोड़ी देर में वह समझ गई और बाहर आ गई। सपना तो सामान्य हो गई, लेकिन मेरे मन में सवाल गूंज रहा था आखिर क्यों उसे इतना गुस्सा आता है? क्यों जरा-जरा सी बात में मासूम सी दिखने वाली यह लड़की इतना बिगड़ जाती है? इन सवालों ने रात भर सोने न दिया। अगले दिन जब वहां पहुंची, तो सपना ठीक थी। उसने हमें नमस्ते किया। हमने उससे बातें जारी रखीं, वो जो कहती वह हम करते। वह कहती खेलना है, तो खेलते, वह कहती डांस करना है, तो डांस करते। उसके साथ गाते-गुनगुनाते, उसकी बातें सुनते। अब वह हमसे खुल चुकी थी और सामने आई उसकी दास्तान।<br />
सपना एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थी। उसके पिता ने उसकी शादी पड़ोस के गांव में कर दी। शादी के वक्त बहुत खुश थी वह। उसका पति उसे अच्छे-अच्छे तोहफे लाता और उसकी मन-पसंद चूड़ियां भी। उसे चूड़ियों से खासा लगाव जो था। लेकिन शादी के दो-तीन साल होने पर सब कुछ बिगड़ने लगा। उसका पति उसे मारता, ससुराल वाले भी न जीने देते। नौकरानी बनकर रह गई थी वह। खूब मारते उसे और भरपेट खाना भी न देते। उसे गालियां देते, मारपीट करते। एक दिन तो हद ही हो गई ससुराल वालों से उसे किसी और को बेच दिया। सपना को पता भी न चला। उसे तो तब पता चला, जब रात में कोई और उसके पास आया। वह चीख पड़ी, गुस्से में उसने उस आदमी के सिर पर लौटा मार दिया और भाग गई वहां से। ससुराल वालों ने उसे बहुत मारा और उसे पागल करार दे दिया। सपना उनके सामने रोती रही, गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उन्होंने उसकी एक न सुनी। अपनी कहानी बताते-बताते सपना फफक पड़ी। एक बार फिर मैंने उसकी आंखों में गुस्सा देखा समाज के लिए? उसने कहा क्यों दीदी क्यों किया मेरे आदमी ने ऐसा? ब्याह कर लाया था मुझे, फिर काहे कर दिया दूसरे के हवाले। क्या जवाब देती मैं उसकी बातों का। चुप हो गई मैं। आज पांच साल हो गए उससे मिले, आज वह कहां है, उसे उसका परिवार लेने आया या नहीं। मुझे नहीं पता। लेकिन आज भी उसकी आंखें सवाल करती हैं मुझसे? समाज से आखिर क्या गलती थी उसकी? किस बात की सजा मिली उसे? शादी करने की या फिर पति को परमेश्वर और ससुराल को मंदिर मानने की।<br />
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Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-45229349175121102892013-08-21T09:10:00.000-07:002013-08-21T09:12:39.225-07:00मिली जिंदगी को नई राह<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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कितना अजीब है न सब कुछ। एकदम उम्मीद के विपरीत। जिंदगी में कभी-कभी ऐसे मोड़ भी आते हैं, पता ही न था अब तक। जो सोचा वह न हुआ और जिसकी कल्पना भी न की थी सपनों में, वह हकीकत बन सामने खड़ा है। कैसे एक पल में बदल जाती है न जिंदगी। उम्मीदें टूट जाती हैं और कई बार मन घिर जाता है आशंकाओं से। कितना डर लगता है न इस समय। जब कभी कमरे में अकेली होती हूं, तो एक अनजाने डर से कांप जाती है मेरी रूह। छुरहरी सी दौड़ जाती है अंग में। क्यों होता है ऐसा?आखिर क्यों? ऐसा ही कुछ चल रहा था सीमा के मन में। हरिद्वार में गंगा के घाट पर खड़ी थी वह। दूर एकांत में बना यह घाट उसे बहुत सुकून देता है। कल-कल करती गंगा की लहरों में खो जाती है। अब से नहीं तबसे उसे यहां मिलती है शांति, जब वह हरिद्वार में रहकर अपनी पढ़ाई कर रही थी। उस दौरान भी जब उसका मन घबराता था, तो भागकर आ जाती थी वह यहां और खो जाती थी गंगा की लहरों में। मिल जाता था उसे यहां अपने हर सवाल का जवाब।<br />
आज फिर चार साल बाद सीमा उसी घाट पर एक पत्थर पर बैठी गंगा की लहरों को देख रही थी एकटक। लेकिन आज उसके मन को यह लहरें सुकून नहीं दे रही थीं। आई तो इसीलिए है वह यहां कि उसकी जिंदगी की उथल-पुथल शायद शांत हो जाए और पढ़ाई के दौरान जैसे उसे यहां सब हल मिल जाते थे, शायद जिंदगी के इस सवाल का जवाब भी यहीं कहीं छुपा हो। लेकिन आज न जाने क्यों उसे नहीं मिल रहे थे अपने सवालों के जवाब। शायद वह जिंदगी के उस पड़ाव पर है, जहां से आगे जाने का रास्ता ही नहीं मिल रहा है उसे। बहुत बड़ा सवाल है उसके सामने। उसकी पूरी जिंदगी का सवाल। एक ऐसा सवाल, जो तय करेगा उसके भविष्य को। किंतु-परंतु में उलझ गई है वह। किसे सच माने और किसे नकार दे, तय नहीं कर पा रही है वह। आखिर क्या है सच। जो दिख रहा है या फिर जो वह महसूस कर रही है। जो उसका दिल कह रहा है वह या फिर जो उसका दिमाग समझ रहा है वह। गंगा की लहरों को अपलक देखते हुए सीमा यही सब सोचे जा रही थी।<br />
अचानक गंगा की उठती लहरों पर उसकी नजर पड़ी। ऊफान पर उठती लहरें और फिर एकदम से शांत होता पानी। उसे लगा उससे कुछ कह रही हैं यह लहरें। सीमा उठकर किनारे तक गई और गौर से देखने लगी उन लहरों को। उठती और शांत होती लहरों के बीच खड़ी थी सीमा। अपने चारों ओर बहते साफ-निर्मल पानी को देख सहसा उसे लगा कि अरे यही तो यह उसका हल। जीवन है यह, जहां चारों ओर पानी है और बीच में हम खड़े हैं। इन उठती लहरों की तरह आते हैं बवंडर जीवन में, लेकिन अगर हम डटे अपने पथ पर, तो थोड़े ही पल में शांत हो जाते हैं यह बवंडर, बिल्कुल इन उत्ताल लहरों की तरह। और फिर छा जाती है शांति, बहने लगती है जिंदगी की बयार, बिल्कुल इस शांत-निर्मल जल की तरह। तो फिर क्यों उदास है सीमा? उसकी अंतर्मन से निकली आवाज। सीमा आज फिर गंगा ने तुमको दे दिया है तुम्हारे सवालों का जवाब। उठो और डटी रहो। अब मत रो, मत परेशान हो। जो भी चाहती हो, मिलेगा तुम्हें वह। फिर होगा तुम्हारा जीवन निर्मल-शांत। फिर होंगी खुशियां, बस न खोना अपना विश्वास। सीमा ने एक बार फिर गंगा को नमन किया और चल पड़ी अपने पथ की ओर, जहां उसका जीवन मुस्कुराकर उसका स्वागत कर रहा था।<br />
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Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-8610653470207009342013-03-03T07:10:00.002-08:002013-03-06T04:14:41.418-08:00फिर होगा हसीन साथ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज बेहद अकेलापन महसूस हो रहा है..... बेहद घुटन लग रही है। गला सूख रहा
है। हड़बड़ाकर मैं उठकर बैठ जाती हूं। नहा जाती हूं पसीने में..... कितना
भयानक सपना था। ऐसे लगा कि कोई गहरे कुंए में धक्का दे रहा है। मेरा सब कुछ
मुझसे छीन लिया जा रहा है.... चौंक कर देखती हूं मैं आस-पास। अरे वो नहीं
है यहां। कहां गया वह? पुकारती हूं मैं उसे बार-बार, लेकिन मेरी आवाज
दीवारों से टकराकर वापस आ जाती है। नहीं सुनाई पड़ती है उसे मेरी पुकार।
मैं चीख उठती हूं। धड़क रहा है दिल जोर-जोर से। डर लग रहा है कि कहीं वह सच
में तो नहीं चला गया मुझसे बेहद दूर। बहुत दूर। नहीं.... नहीं....
नहीं..... ऐसा नहीं हो सकता। वह नहीं जा सकता मुझसे दूर। कभी
नहीं.............। आखिर वही तो है, जिसने मुझे मेरे होने का अहसास कराया।
जिसने मुझे उबारा गम के साये से। फिर कैसे दे सकता है वह मुझे
गम....कैसे........ नहीं ऐसा नहीं होगा............नहीं होगा कुछ
भी......... मैं नहीं होने दूंगी ऐसा........ उसे अपने से दूर कभी
नहीं.......। नहीं जा सकता वह मुझसे दूर..... कैसे जा सकता है भला
बताओ....। हां वह नाराज जरूर है मुझसे, लेकिन अब खत्म हो जाएगी उसकी यह
नाराजगी.......... बिल्कुल खत्म। रूठ गया है वह कुछ दिन के लिए...... तो
मना लूंगी मैं उसे....। आखिर वह मेरा ही तो है........ और फिर रिश्ते इतने
खोखले नहीं होते कि जरा सा हवा का झोंका उन्हें तोड़ दे....... नहीं टूटते
इतने जल्दी रिश्ते.....हां नहीं टूटते। आंधियां सही हैं हमने........फिर ये
तो झौंका है हवा का, गुजर जाएगा यह भी और हम फिर
मिलेंगे...........बिल्कुल मिलेंगे...... उम्मीद है मुझे और विश्वास भी खुद
पर, अपने प्यार पर और हां उस पर......।<br />
सीमा ने यह शब्द अपनी डायरी में लिखे और डायरी बंद कर दी। कुछ देर सोचती रही और फिर टेबल लैंप बंद किया और बिस्तर पर आकर लेट गई। सोने की कोशिश कर रही थी सीमा, लेकिन नींद... आंखों से कोसों दूर थी। आज आये सपने ने उसे हिला दिया था। भीतर तक हिल गई थी सीमा..... मन हिचोलें ले रहा था। सीमा की आंखों के सामने घूमने लगा उसका और उज्जवल का साथ... कितना हसीन समय उन्होंने साथ गुजारा था। पूरे दो सालों से साथ थे वह... दो साल। सीमा को याद नहीं कि इन दो सालों में कभी भी उसे ऐसा महसूस हुआ हो कि उज्जवल उससे प्यार नहीं करता......... कभी भी उनके बीच मन-मुटाव हुआ हो ऐसा कुछ भी तो उसे याद नहीं आ रहा था। उसे याद आ रहा था, तो बस उसका और उज्जवल का साथ। वह साथ जिसमें सिर्फ खुशियां थीं...। लेकिन आज वह अकेली है कमरे में... उज्जवल पता नहीं कहां चला गया...। <br />
उसे याद आया कि कितना ख्याल रखता था उसका उज्जवल। जब वह बीमार हुई थी, तो कई दिनों तक वह सोया नहीं था। कितना ख्याल करता था उसका। हर पल उसे केवल उसकी ही चिंता रहती थी............ उसने दवाई खाई या नहीं, खाना खाया या नहीं। सीमा को क्या जरूरत है........ हर पल बस वह उसके बारे में ही सोचता था। ऑफिस से छुट्टी लेकर उसके साथ रहता था। जब वह थोड़ी ठीक हुई, तो उसने उज्जवल से फिर से ऑफिस जाने को कहा, उसने उसकी बात मान ली, लेकिन ऑफिस जाकर भी उसका मन कहां लगा। दिन में 50 फोन करता। हर 10 मिनट पर बात होती... और वह शाम को जल्दी घर आ जाता। सीमा को कभी-कभी लगता कि अगर उसे कुछ हो गया... तो... तो... क्या उज्जवल अपने आपको संभाल पाएगा? कैसे रहेगा वह उसके बिना...सीमा सोचती। और उज्जवल से जब भी इस बारे में बात करती... तो उसके चेहरे का दर्द देख नहीं पाती...। सीमा ने अपना ध्यान रखना शुरू कर दिया ताकि उज्जवल खुश रहे और कुछ महीनों के इलाज के बाद सीमा अच्छी हो गई...। सीमा को याद है, जिस दिन डॉक्टर ने कहा था कि सीमा अब तुम अच्छी हो... तुमने बहुत जल्दी रिकवर किया है, अब तुम्हें दवाई की जरूरत नहीं ... तो उससे ज्यादा खुश उज्जवल हुआ था। चहक उठा था वह, सीमा ने महसूस की थी उसकी खुशी और... उस दिन तो उज्जवल ने एक पार्टी दे डाली थी सबको...। सीमा हैरान थी उसकी बातों पर...उसे उज्जवल पर बहुत प्यार आ रहा था। सीमा के ठीक होते ही वह और उज्जवल गये थे शिमला घूमने। शिमला में तो उज्जवल ने हद ही कर दी थी... सीमा को बांहों में उठाकर पहाड़ पर चढ़ जाता.. सीमा कहती थक जाओगे, मैं चल लूंगी... लेकिन वह कहां मानने वाला था। दो सालों का सफर सीमा की आंखों के सामने चलचित्र की भांति चल रहा था। <br />
तभी सीमा ने करवट बदली... टेबल पर उसकी और उज्जवल की तस्वीर फोटो फ्रेम में लगी थी... अचानक उसकी आंखों से आंसू बहने लगे...। वह सोच रही थी, उसे इतना प्यार करने वाला उज्जवल अचानक कहां चला गया... कहां चला गया वह... अचानक। सीमा को समझ ही नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है... और क्यों हो रहा है...। क्यों अचानक से उज्जवल ने उससे इतनी दूरी बना ली... क्यों? खूब सोचती है... खूब मन को समझाती है कि जो दिख रहा है... वह सच है...लेकिन मन है कि मानने को तैयार ही नहीं है। हर बार एक ही जवाब मिलता है उसे... ऐसा नहीं हो सकता............। उसका उज्जवल कहीं नहीं जा सकता... कभी नहीं...। यही सोचते हुए सीमा की आंख लग गई। सुबह जब वह उठी, तो उसे काफी हल्का महसूस हो रहा था... उसे उसके सवालों का हल मिल गया था... उसे समझ में आ रहा था कि यह सिर्फ एक हवा का झोंका है और झोंके निकल जाते हैं... उज्जवल सिर्फ उसका है... यही विश्वास फिर से उसे और उज्ज्वल को एक करेगा। सीमा ने घड़ी पर नजर डाली, तो दस बज चुके थे... वह जल्दी-जल्दी तैयार हुई और ऑफिस को निकल पड़ी... आज उसकी चाल बोझिल नहीं थी... बल्कि उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी.................... </div>
Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-78538674239394289022013-02-25T07:54:00.001-08:002013-03-03T07:07:13.229-08:00आज बेहद अकेलापन महसूस हो रहा है....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज बेहद अकेलापन महसूस हो रहा है..... बेहद घुटन लग रही है। गला सूख रहा है। हड़बड़ाकर मैं उठकर बैठ जाती हूं। नहा जाती हूं पसीने में..... कितना भयानक सपना था। ऐसे लगा कि कोई गहरे कुंए में धक्का दे रहा है। मेरा सब कुछ मुझसे छीन लिया जा रहा है.... चौंक कर देखती हूं मैं आस-पास। अरे वो नहीं है यहां। कहां गया वह? पुकारती हूं मैं उसे बार-बार, लेकिन मेरी आवाज दीवारों से टकराकर वापस आ जाती है। नहीं सुनाई पड़ती है उसे मेरी पुकार। मैं चीख उठती हूं। धड़क रहा है दिल जोर-जोर से। डर लग रहा है कि कहीं वह सच में तो नहीं चला गया मुझसे बेहद दूर। बहुत दूर। नहीं.... नहीं.... नहीं..... ऐसा नहीं हो सकता। वह नहीं जा सकता मुझसे दूर। कभी नहीं.............। आखिर वही तो है, जिसने मुझे मेरे होने का अहसास कराया। जिसने मुझे उबारा गम के साये से। फिर कैसे दे सकता है वह मुझे गम....कैसे........ नहीं ऐसा नहीं होगा............नहीं होगा कुछ भी......... मैं नहीं होने दूंगी ऐसा........ उसे अपने से दूर कभी नहीं.......। नहीं जा सकता वह मुझसे दूर..... कैसे जा सकता है भला बताओ....। हां वह नाराज जरूर है मुझसे, लेकिन अब खत्म हो जाएगी उसकी यह नाराजगी.......... बिल्कुल खत्म। रूठ गया है वह कुछ दिन के लिए...... तो मना लूंगी मैं उसे....। आखिर वह मेरा ही तो है........ और फिर रिश्ते इतने खोखले नहीं होते कि जरा सा हवा का झोंका उन्हें तोड़ दे....... नहीं टूटते इतने जल्दी रिश्ते.....हां नहीं टूटते। आंधियां सही हैं हमने........फिर ये तो झौंका है हवा का, गुजर जाएगा यह भी और हम फिर मिलेंगे...........बिल्कुल मिलेंगे...... उम्मीद है मुझे और विश्वास भी खुद पर, अपने प्यार पर और हां उस पर......।<br />
(मेरी एक कहानी का अंश)<br />
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Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-19731257044389122072013-02-24T08:37:00.001-08:002013-02-24T08:37:48.730-08:00इन दूरियों को मिटा दो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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मिटा दो अब इन दूरियों को तुम। चले आओ वापस। बस आ जाओ अब। बहुत कर ली तुमने अपने मन की। अब तो लौट आओ। जानते हो, तुम्हारे बिना कैसे बीतता है दिन। इतनी भी क्या नाराजगी है तुम्हें? याद है कितने खुश थे हम। माना कुछ गलतियां हुईं मुझसे। मानती हूं अपनी गलती। पर माफी तो खुदा भी देता है, तो क्या तुम नहीं कर सकते मुझे माफ। कई बार तुमने समझाया मुझे, पर नहीं समझी मैं। लगता था मुझे कि कहां जाओगे तुम मुझे छोड़कर। लेकिन अब जब तुम नहीं हो, तो अहसास होता है कि तुम कितने अनमोल हो मेरे लिए। हीरे हो तुम। नहीं जी सकती तुम्हारे बिना। पता है तुम्हें कितनी रातें बीती हैं मेरी रोते हुए। नहीं थमे हैं आंसू जब से तुम गए हो दूर। नहीं मानता है ये दिल कि तुम दूर हो मुझसे। अब तो आ जाओ मेरे पास या फिर मुझे बुला लो, जहां भी तुम हो। कर रही हूं तुम्हारा इंतजार मैं। बस अब अंत कर दो मेरे इंतजार का। लौट आओ फिर मेरे पास। विश्वास दिलाती हूं अब नहीं करुंगी कोई गलती। आ जाओ बस अब लौट आओ। अब लौट भी आओ न...................<br />
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</div>
Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-55930666758578040142012-10-27T02:10:00.000-07:002012-10-27T02:10:39.858-07:00मलाला यूसुफजई से जंग हारता तालिबान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<table style="background-color: white; font-family: Mangal; width: 100%px;"><tbody>
<tr><td><div class="haedlinesstory" style="font-size: 26px; font-weight: bold;">
<span style="color: #2c2c2c; font-family: arial; font-size: small; font-weight: normal;">अमित कुमार सिंह</span></div>
</td></tr>
<tr><td><table align="left"><tbody>
<tr><td><span style="color: #2c2c2c; font-family: arial;">द</span></td></tr>
<tr><td><br /></td></tr>
</tbody></table>
<span class="bodyd" style="color: #2c2c2c; font-family: arial;">स दिनों से जिंदगी और मौत से जूझ रही पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई ने आखिरकार गत शुक्रवार को मौत को मात दे दी। मलाला का इलाज कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि उसकी हालत में सुधार हो रहा है। वह अब सहारा लेकर खड़ी हो रही है और कुछ लाइनें लिखकर अपनी बात भी कह पा रही है। 15 साल की मासूम मलाला पर हमला करने वाले तालिबानियों के लिए इससे बड़ी हार और क्या हो सकती है कि जिसे वह मारना चाहते थे, वह न सिर्फ स्वस्थ हो रही है बल्कि पूरी दुनिया में उसकी लोकप्रियता का स्तर भी बढ़ गया है। दुनिया भर के लगभग सारे बड़े देशों में मलाला की सलामती के लिए दुआएं मांगी जा रहीं हैं।<br />
उसके पक्ष में और तालिबान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। भारत के भी कई शहरों में मलाला के पक्ष में प्रदर्शन हुए।<br />
मलाला पहली बार 2009 में सुर्खियों में आई थी। तब मात्र 12 साल की उम्र में इस लड़की ने हिम्मत दिखाई और उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान की स्वात घाटी से उसने बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखनी शुरू की। यह डायरी महिलाओं की शिक्षा के पक्ष में और तालिबान एवं कठमुल्लेपन के विरोध में थी। गुल मकई के छद्म नाम से लिखी गई इस डायरी को लोगों ने खूब पसंद किया। इस डायरी को लिखने के कारण पाकिस्तानी सरकार के ऊपर स्वात घाटी को तालिबान से स्वतंत्र कराने का दबाव बना और मलाला तालिबानों की कट्टर दुश्मन बन बैठी। आज पूरे विश्व से मिल रहे समर्थन से जाहिर होता है कि उसकी आवाज आम जनता की अवाज है, जिसे नफरत और आतंक फैलाना वाला तालिबान पसंद नहीं करता है।<br />
पेशावर से रावलपिंडी और अब बर्मिघम के अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ रही मलाला शायद यह जानती थी कि तालिबान जैसे आतंकी संगठनों को जन चेतना से ही मिटाया जा सकता है। तभी तो उसने स्वात घाटी की सच्चाई दुनिया तक पहुंचाने के लिए मीडिया को माध्यम के रूप में चुना। यह बहादुर बच्ची बड़ी होकर कानून की पढ़ाई करना चाहती है। वह ऐसे देश का सपना देखती है जहां शिक्षा सर्वोपरि हो और उसकी लड़ाई ऐसा राष्ट्र बनाने को लेकर ही थी। किसी भी समाज की तरक्की के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है।<br />
शिक्षा का विस्तार ही वह हथियार है, जिसकी सहायता से हम सामाजिक बुराइयों से लड़ सकते हैं। हम लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक बना सकते हैं। शिक्षा का विरोध वे लोग करते हैं जिनके मंसूबे गलत होते हैं। ऐसे लोगों को हमेशा डर रहता है, उनके मंसूबों से पर्दा हट जाने का। तालिबान के चेहरे पर पड़ा वही पर्दा मलाला हटाना चाह रही थी। तालिबान को इस बात का भय था कि यदि बच्चे शिक्षित हो गए तो उनकी दुकानदारी बंद हो जाएगी।<br />
इसलिए वह उसकी जान के दुश्मन बन बैठे।<br />
मलाला ने दुनिया के लिए बहुत बड़ा उदाहरण पेश किया है। उसने तालिबान को वह चोट पहुंचाई है जो एक लंबी जंग के बाद अमेरिका भी नहीं पहुंच पाया।<br />
उसने तालिबान का वैचारिक ताना-बाना ही तहस- नहस कर दिया है। तालिबान के वैचारिक समर्थक भी बौखला गए हैं और मलाला पर हमले की घोर निंदा कर रहे हैं। पहली बार पाकिस्तान में तालिबानों को लेकर गुस्सा सड़क पर आ गया है। मलाला के नाम पर कट्टरपंथी मुल्लाओं से लेकर आम जनता गुस्से से भर गई है। पूरा विश्व समुदाय इसकी निंदा कर रहा है, लेकिन यह वक्त बस निंदा करने भर का नहीं है।<br />
समय है मलाला द्वारा उठाई गई आवाज को न दबने देने का। जो अलख मलाला ने जगाई है उसे आगे ले जाने का। ऐसे में पाकिस्तानी सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। उसे मलाला के लिए उमड़े प्यार और तालिबान के लिए आम लोगों के जेहन में आई नफरत को एक हथियार बनाना होगा। उसे एक ऐसे पाकिस्तान का निर्माण करना होगा, जो अमन और तरक्की पसंद करता हो। एक ऐसे पाकिस्तान का निर्माण करना होगा, जहां मलाला जैसे बच्चों को हंसने-बोलने, स्कूल जाने और अपने हक की लड़ाई लड़ने की आजादी हो। ताकि जब ये बच्चे जवान हों तो एक बेहतर दुनिया के निर्माण में सहयोग करें, ताकि पाकिस्तान के किसी भी घर, किसी भी दिल में तालिबान जैसे संगठनों को पनाह न मिल सके।<br />
इस दिशा में एक बड़ा कदम पाकिस्तानी सेना को भी उठाना चाहिए। मलाला पर हमले से पूरे देश में जिस तरह लोग भावुक हो रहे हैं, उसका इस्तेमाल सेना को तालिबान को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए करना चाहिए। इस विरोध से एक बात तो जाहिर है कि अब आम लोग तालिबान की ओर से फैलाई जा रही हिंसा के साथ जिंदगी नहीं जीना चाहते हैं। ऐसे में सेना को आतंकवाद के खिलाफ कठोर रणनीति बनानी चाहिए। अगर आर्मी इस समय तालिबान समेत सभी कट्टरपंथी संगठनों और आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करती है तो उसे जनता का सहयोग मिलेगा। पाक सेना को शायद दोबारा ऐसा मौका नहीं मिल पाए।<br />
कुल मिलाकर मलाला यूसुफजई पाकिस्तानी समाज में उन मूल्यों का प्रतीक बनती जा रही है, जिनकी आज के दौर में बहुत जरूरत थी। एक अच्छी बात यह है कि तालिबान विरोध की आवाज पड़ोसी देश अफगानिस्तान से भी आ रही है। वहां के बच्चे भी ‘मैं भी मलाला’ के स्लोगन के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं।<br />
लंबे समय तक तालिबानी आतंक और घृणा का शिकार रहे इस देश से ऐसी पहल वाकई में एक नई उम्मीद जगा रही है। अब जरूरत है मलाला के जज्बे को आगे बढ़ाकर अंजाम तक पहुंचाने की। उम्मीद है मलाला जब पूरी तरह स्वस्थ होकर पाकिस्तान वापस लौटेगी तो पूरा अवाम उसके जैसी बच्चियों को स्कूल भेज रहा होगा, उसे तालिबानी फरमान का डर नहीं होगा। वैसे भी अस्पताल में मलाला की सांसे जितनी बेहतर ढंग से वापस लौट रही हैं, तालिबानियों का दम घुटता जा रहा है।<br />
</span></td></tr>
</tbody></table>
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Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-76967098847843045172012-07-09T09:01:00.000-07:002012-07-09T09:01:00.890-07:00मनमोहन टाइम आउट, मोदी इन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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टाइम मैग्जीन ने इस माह के अपने एशिया अंक में मनमोहन सिंह को ‘अंडरअचीवर’ यानी उम्मीद से कम प्रदर्शन करने वाला बताया है। कवर पेज पर पत्रिका ने मनमोहन सिंह की तस्वीर छापी है और लिखा है कि भारत को नई शुरुआत की जरूरत। टाइम मैग्जीन ने अपने अंक में कहा है कि मनमोहन सिंह एक अच्छे प्रधानमंत्री साबित नहीं हुए हैं। पत्रिका ने मनमोहन की काबिलियत पर सवाल उठाते कहा है कि क्या मौजूदा पीएम धीमी विकास दर, नीतियां लागू नहीं करने और आर्थिक सुधार के मोर्चे पर नाकाम रहने के आरोपों का बखूबी सामना कर पाएंगे? मैग्जीन ने केंद्र की मौजूदा यूपीए सरकार की आलोचना करते हुए कहा है, ‘रोजगार पैदा करने वाले कानून संसद में अटके हैं और जनप्रतिनिधियों पर से लोगों का भरोसा घटने लगा है, जो चिंता की बात है।’<br />
दिलचस्प बात यह है कि तीन साल पहले इसी पत्रिका ने मनमोहन सिंह को एक ऐसी शख्सियत करार दिया था, जिसने कई लोगों की जिंदगियां बदल दीं और उनके आर्थिक सुधारों की सराहना की थी। हां, पत्रिका ने मनमोहन के पतन का उल्लेख करते हुए लिखा ‘पिछले तीन वषों में, वो शांत आत्मविश्वास जो कभी उनके चेहरे पर चमकता था, लुप्त हो गया है। लगता है वहअपने मंत्रियों को नियंत्रित नहीं कर पा रहे और उनका नया मंत्रलय, वित्त मंत्रलय का अस्थायी कार्यभार, सुधारों को लेकर इच्छुक नहीं है जिससे कि उस उदारीकरण को जारी रखा जा सकेगा जिसकी शुरूआत में उन्होंने भूमिका निभाई थी।’ टाइम से पहले रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स भी प्रधानमंत्री के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर चुकी है। कुछ दिनों पहले ही एसएंडपी ने अपने आकलन में भारत की रेटिंग निगेटिव करने के पीछे भारत के शीर्ष नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया था। एजेंसी के मुताबिक भारत में सुधारों की गाड़ी रुकने के बीच विपक्ष या सहयोगी दल नहीं बल्कि शीर्ष नेतृत्व जिम्मेदार है।<br />
भले ही इस समय प्रधानमंत्री वित्त मंत्रलय संभाल रहे हों और आर्थिक सुधारों की ओर उनका रुझान दिखाई दे रहा हो, लेकिन टाइम का आंकलन तो यही बताता है कि वह हर स्तर पर नाकामयाब रहे हैं।<br />
मार्च के अंक में टाइम मैग्जीन ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे गढ़े थे और गुजरात और बिहार को रोल मॉडल बताया था। नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ प्रकाशित अंक में पत्रिका ने लिखा था कि वे 2014 के चुनावों में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर राहुल गांधी के लिए कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं।<br />
कुल मिलाकर मार्च और इस माह के आकलनों पर गौर किया जाए, तो ऐसा लगता है कि देश में कांग्रेस का विकल्प तैयार हो रहा है और पार्टी से लोगों का मोहभंग हो रहा है। सवाल है कि क्या मोदी राहुल का सशक्त विकल्प बनते जा रहे हैं? क्या कांग्रेस अपने पतन की ओर है और मोदी एक ऐसे व्यक्तित्व के तौर पर सामने आ रहे हैं जिनके हाथों में देश की बागडोर सौंपी जा सकती है?<br />
अब इन आकलनों का क्या असर होगा और जनता का फैसला क्या होगा? यह तो आगामी चुनावों में ही पता चलेगा, फिलहाल मनमोहन जरा संभल कर..<br />
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</div>Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-86319686610989174522012-05-13T03:39:00.002-07:002012-05-13T03:39:35.917-07:00याद आती है वो ममता की छांव..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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मां एक शब्द , मात्र शब्द मगर इसमें समाया है एक पूरा संसार। कहते हैं कि मां एक वाक्य नहीं है, बल्कि एक पूरा महाकाव्य है। मां.. जब अंतर्मन से निकलती है ये आवाज, तो लगता है कि बस हर दु:ख, हर तकलीफ से मिल गई निजात। जब कभी दु:खी होता है मन, तो पुकार उठती हूं मां. मां. और मां उस समय मुङो बिल्कुल अपने पास नजर आती है। फोन पर उससे बातें करके सारा बोझ हल्का हो जाता है, तरोताजा महसूस करने लगती हूं मैं। एक नई उमंग भर उठती है मन में।<br />
सात सालों से घर से बाहर हूं। अपनी प्यारी मां की गोदी से दूर, उसके आंचल की छांव से दूर। याद आते हैं, वो सब दिन, जब किसी बात पर स्कूल-कॉलेज में सहेलियों से हो जाता था मन-मुटाव या फिर परीक्षा के दिनों में लगता था बहुत डर। कभी-कभी जब मन हो जाता था बहुत निराश, तो मां का आंचल बनता था मेरा आशियाना और उसकी गोदी में सिर रखकर लगता था कि हर मुश्किल राह हो जाएगी अब आसान। मिल जाएगी मुङो मंजिल आखिर मां जो है मेरे साथ। वो प्यार से उसका बालों को सहलाना, वो रात में अपने गले से लगाना, याद आता है सब। बहुत याद आता है।<br />
आज भी जब उससे बात होती है, तो उसे सिर्फ फिक्र रहती है मेरे खाने की। जैसे कि बचपन में वह मुङो अपने हाथों से खिलाती थी और जब मैं कहती हूं कि मां अब मैं बड़ी हो गई हूं, तो वहां से आवाज आती है, हां बेटा पता है कितनी बड़ी हो गई हो तुम। अच्छा सुनो अपना ध्यान रखना, खाना टाइम पर खाना और हां धूप बहुत तेज है, बाहर मत निकलना। ऑफिस जाना, तो चुन्नी बांधकर जाना, ऑटो ले लेना, बस से मत जाना। रोज दही लेना और जूस भी। चाय मत पीना। लस्सी ले लेना। टाइम पर नाश्ता करना, काजू, बादाम पानी में भिगोकर खाना। फल ले रही हो कि नहीं। न जाने ऐसी कितनी ही नसीहतें वह देती है मुङो। और मैं जवाब में कहती हूं ‘हां मां सब कर रही हूं।’ कभी हल्की सी तबियत खराब होती है, तो तुरंत मां का फोन आ जाता है, ‘तबियत कैसी है तुम्हारी, ठीक तो हो न’ मैं समझ नहीं पाती कि हजार किलोमीटर दूर बैठी मां को कैसे पता चला कि मेरी तबियत ठीक नहीं है। तभी याद आता है कि वो मां है, जिससे हमारी नाभिनाल जुड़ी हुई है। जिसने गर्भ में पाला है हमें और बस आंखें हो जाती हैं नम और सिर झुक जाता है उसके सजदे में।<br />
आज हम मदर्स डे मनाते हैं, एक दिन करते हैं मां के नाम। मां को याद करने का ये तो सिर्फ प्रतीक है। मां तो जीवन के हर पल हमारे साथ है। हम कहीं भी रहें, उसका साया हमेशा मौजूद रहता है, हमारी सलामती के लिए। मां को नमन करते हुए मुनव्वर राणा की ये पंक्तियां याद आ जाती हैं..<br />
<b>‘जब भी कस्ती मेरी सैलाब में आ जाती है, </b><br />
<b>मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।’</b><br />
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</div>Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-50593437265357486212012-05-09T09:10:00.003-07:002012-05-09T09:10:57.602-07:00बुलंद हौसलों की बुलंद दौड़<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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कहा जाता है कि इंसान में अगर हौंसले हों, तो कुछ भी असंभव नहीं है। अपने हौंसले के दम पर इंसान कुछ भी कर सकता है। हमारे सामने ऐसे कई उदाहरण हैं, जब शारीरिक तौर पर अक्षम होते हुए भी लोगों ने देश-दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। एक बार फिर हौंसलों की इसी बुलंदी को साबित किया है ब्रिटेन की क्लेयर लोमास ने।<br />
क्लेयर लोमास ने विकलांग होते हुए भी लंदन मैराथन दौड़ पूरी की है। क्लेयर ने अपने बुलंद हौंसलों और मेहनत के दम पर इसे पूरा कर दिखाया। उनके जज्बात को सलाम करने का दिल करता है, हालांकि क्लेयर ने यह दौड़ा 16 दिनों में पूरी की। उनके साथ 36 हजार अन्य लोगों ने भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। क्लेयर जब यह दौड़ पूरी करके पहुंची, तो हजारों की तादाद में लोगों ने तालियां बजाकर उनका स्वागत किया।<br />
क्लेयर के बारे में एक बात ज्यादा खास है कि वह पहले पेशेवर घुड़सवार थीं। मगर 2006 में घुड़सवारी करते वक्त वह गिर पड़ीं और उनके सीने के नीचे के हिस्से में लकवा मार गया। डॉक्टरों ने घोषित कर दिया था कि क्लेयर अब कभी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाएंगी और उन्हें बाकी की जिंदगी व्हील चेयर पर ही गुजारनी पड़ेगी। आप समझ सकते हैं कि उस समय क्लेयर के हौंसले पस्त हो गए होंगे, मगर कुछ दिनों बाद वह फिर से संभलीं और उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी। क्लेयर फिर से अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थीं और उनकी यह इच्छा पूरी हुई रोबोटिक लेग्स की मदद से। एक दिन इंटरनेट पर क्लेयर अपने जैसे लोगों की मदद के लिए खोज कर रही थीं कि उन्हें इस रोबोटिक लेग्स के बारे में पता चला। उन्होंने दोस्तों की मदद से पैसा जुटाया और रोबोटिक वॉकिंग सूट्स खरीदा। शुरुआत में वह दो-तीन कदम ही चल पाती थीं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मैराधन के लिए कड़ी मेहनत की और सफल हुईं। हालांकि इस रोबोट लेग्स के साथ चलना आसान नहीं होता है, फिर भी क्लेयर ने इसे कर दिखाया।<br />
क्लेयर लोमास हमारे लिए एक जीती-जागती मिशाल हैं इस बात की कि अगर इरादे बुलंद हों, तो मंजिल खुद-ब-खुद आपके कदम चूमती है। क्लेयर लोमास को उनकी इस सफलता के लिए बहुत-बहुत बधाई और अभिनंदन। सलाम क्लेयर लोमास।<br />
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</div>Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-84637673775940187762012-05-02T06:48:00.001-07:002012-05-02T06:48:20.054-07:00अलविदा जोहरा जबीं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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ऐ मेरी जोहरा जबीं तुङो मालूम नहीं, तू अब तक हसी और मैं जवां..। यह गाना तो हर पीढ़ी को लुभाता रहा है। इस गाने की जोहरा यानी की अचला सचदेव का सोमवार को निधन हो गया। देर शाम जब यह खबर सुनी, तो एक पल के लिए स्तब्ध रह गई। अचला द्वारा अभिनीत कई किरदार आंखों के सामने घूम गए। अचला का पुणो अस्पताल में पिछले 6 महीने से इलाज चल रहा था। वे 91 साल की थी। दरअसल सितंबर 2011 में काम करते वक्त अचला गिर पड़ी थीं। इससे उनकी बाईं टांग टूट गई थी और सिर में चोट लगने के कारण उनके दिमाग में इंफेक्शन हो गया था। इंफेक्शन की वजह से अचला की आंखों की रोशनी भी चली गई थी। और वह चल-फिर नहीं पा रही थीं।<br />
अचला का जन्म पेशावर में तीन मई 1920 को हुआ था। उन्होंने एक बाल कलाकार के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की। बतौर अभिनेत्री अचला की पहली फिल्म 1938 में आई फैशनेबल वाइफ थी। अचला ने बॉलीवुड में लगभग 150 फिल्में की। उनकी अंतिम फिल्म 2002 में ऋतिक रोशन द्वारा अभिनीत ‘न तुम जानो न हम’ थी। अचला ने यशराज बैनर की कई फिल्मों में काम किया। हिंदी के अलावा अंग्रेजी फिल्मों में भी उन्होंने काम किया। जिनमें 1963 में मार्क रोबसन की फिल्म ‘नाइन ऑवर्स टू रामा’ और मरचेंट इबोरी की फिल्म ‘द हाउसहोल्डर’ प्रमुख हैं। मगर बाद में अचला बॉलीवुड में गुमनामी के अंधेरे में खो गईं।<br />
अपने फिल्मी करियर में उन्होंने सबसे ज्यादा मां का किरदार अदा किया। इसी वजह से अचला को बॉलीवुड की मां भी कहा जाता था। अचला ने देवानंद अभिनीत फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में देवानंद की मां का किरदार अदा किया था। इसके अलावा 2001 में आई फिल्म ‘कभी खुशी, कभी गम’ में अमिताभ बच्चन की मां और 1995 में आई फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में काजोल की दादी के किरदार के लिए याद किया जाता है। मगर इसे भाग्य की विडंबना ही कहा जाएगा कि बॉलीवुड की इस मां का भरा-पूरा परिवार है। एक बेटी और बेटा है, मगर उनके अंतिम दिनों में कोई भी उनके पास नहीं था। उनके बेटे और बेटी भी उनके साथ नहीं रहते थ्बॉलीवुड तो जैसे अपनी इस मां को भूल ही गया था। अस्पताल में इंडस्ट्री से कोई भी उनसे मिलने नहीं पहुंचा। अपनी ममता के आंचल में कई किरदारों को पालने वाली यह मां अपने अंतिम समय में बिल्कुल अकेली थी। केवल उनके पारिवारिक मित्र राजीव नंदा ही उनकी नियमित देखभाल कर रहे थे।<br />
अचला कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़ी हुई थीं। उन्होंने अपनी पूरी दौलत सामाजिक संगठनों को दान कर दी थी। जनसेवा फाउंडेशन को तो उन्होंने बीस लाख रुपये नगद और पुणो में अपना निवास 2बीएचके अपार्टमेंट भी दान कर दिया था। अचला के लिए बस इतना ही कहा जा सकता है कि जोहरा जबी चली गईं, मगर उनके द्वारा निभाए गए किरदार हमेशा यादों में जिंदा रहेंगे। अलविदा बॉलीवुड की जोहरा जबीं और मां।<br />
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</div>Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-80110102469604969392012-04-18T08:50:00.002-07:002012-04-18T08:50:53.138-07:00कब खत्म होगा यह इंतजार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
आज मैं फिर से हाजिर हूं एक और कहानी के साथ, जिसे भी छला रिश्तों ने।<br />
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कब खत्म होगा यह इंतजार<br />
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किसी भी गाड़ी की आवाज आती और वह दौड़ पड़ती दरवाजे की ओर। अगर खाना खा रही होती, तो खाना छोड़ देती, कुछ काम कर रही होती, तो काम अधूरा रह जाता, बस एक हॉर्न सुनती और उसकी आंखे घूम जातीं हाफ-वे-होम के मेनगेट की तरफ। लेकिन जब वह वहां पहुंचती, तो कोई नजर न आता और फिर वह रास्ते की ओर ताकती रहती एकटक, इस आशा के साथ कि शायद वहां से आए उसका बेटा और उसे ले जाए घर। मगर हर बार उसकी उम्मीद अधूरी ही रह जाती।<br />
यह दास्तां है कमला की। पूरा नाम नहीं पता। कमला इसी नाम से उसे पुकारते हैं सब उसे। सीधी-सादी महिला। गुमसुम। उम्र करीब 50 साल। एक बेटे की मां.. है वह। भरा-पूरा परिवार है उसका, लेकिन वह अकेली है।<br />
पति की मौत के बाद कमला ने अपने बेटे को बहुत मुश्किल से पाला। बेटा बड़ा हुआ और नौकरी करने लगा, तो उसे लगा कि अब उसके दु:ख भरे दिन बीत चुके हैं। बेटा भी अपनी मां को बहुत प्यार करता था। बेटे की शादी पर कितनी खुश थी वह। बहू घर में आई, तो उसकी खुशियां दोगुनी हो गई। उसे लगा कि बस अब उसके जीवन में केवल खुशियों की सौगात होगी। कुछ महीनों सब ठीक चला। मगर फिर अचानक से पता नहीं उसकी खुशियों को किसकी नजर लग गई। आए दिन बहू उससे उलझने लगी। जरा-जरा सी बात पर उससे बहू लड़ती। कमला को बड़ा दु:ख होता, लेकिन बेटे-बहू की गृहस्थी में खटपट न हो, इसलिए वह चुप रहती। धीरे-धीरे बहू उसे और जली-कटी सुनाने लगी। इंतहा तो तब हो गई, जब बहू ने उस पर हाथ उठा दिया और बेटे ने भी बहू का पक्ष लिया। कमला को बहुत दु:ख हुआ उस दिन। फिर भी बेटे का मोह उसे छोड़ नहीं रहा था। दिन भर कमला काम करती और बहू उसे पेटभर खाना भी नहीं देती। अब तो मार खाना जैसे उसकी नियति हो गई थी। बेटा भी बहू का साथ देता। कमला कमजोर होती जा रही थी। एक दिन जरा सी बात पर बहू-बेटे ने उसकी खूब पिटाई की। कमला का सब्र टूट पड़ा और उसने सामान उठाकर फेंक दिया, बस बहू-बेटे ने उसे पागल करार दे दिया और भेज दिया पागलखाने। कुछ महीने वहां रहने के बाद जब वह कुछ ठीक हुई , तो हाफ-वे-होम के सदस्य उसे ले आए। मगर यहां से घर जाने का उसका रास्ता तय नहीं हो पाया।<br />
जब मैं कमला से मिली, तो वह गुमसुम सी बैठी रहती थी। धीरे-धीरे उसके बारे में जानकारी मिली। जब भी कोई घर-परिवार की बातें करता, तो कमला तुरंत बेटा कहती और उसकी आंखों में एक चमक आ जाती। करीब चार साल हो गए उससे मिले हुए। कमला कैसी है, यह तो नहीं पता। मगर जब भी उसके बारे में सोचती हूं, तो बस यही सवाल उठता कि क्या कभी खत्म होगा उसका यह इंतजार? क्या कभी कोई गाड़ी कमला को ले जाने के लिए भी रुकेगी हाफ-वे-होम के दरवाजे पर? <br />
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</div></div>Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-81235060488180719862012-04-17T09:17:00.000-07:002012-04-17T09:17:00.686-07:00संबंधों के शूल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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संबंध जब सालने लगें, चुभने लगें, सिसकियों में तब्दील होने लगें तो भला कैसे कोई सब्र करे? कब तक इन्हें ढोता रहे। कब तक सुबकता रहेगा? कभी तो बांध टूटता है, कभी तो बाढ़ आती है। और जब ऐसा होता है तो लोग इन्हें पागल कहते हैं। उन्हें हमसे अलग असामान्य करार दिया जाता है। और रोंगटे खड़ी कर देनी वाली बनती हैं कई कहानियां। ग्वालियर के हॉफ-वे होम में मिले मुङो कुछ ऐसे ही टूटे बिखरे रिस्ते। जिन्हें मैं आपसे साझा करने जा रही हूं। किस्त-ब-किस्त।<br />
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शादी या सजा<br />
बोल-चाल में शालीन। एकदम सौम्य, सभ्य व्यवहार। पिता वकील थे, सो खुद भी वकालत का पेशा अपनाया। बीए, एलएलबी किया और फिर वकालत शुरू कर दी। तीन साल वकालत करने के बाद पिता ने उसका विवाह भी एक वकील से कर दिया। शादी के वक्त कितनी खुश थी वह। मन में कई उमंगे हिलोरें ले रही थीं, जीवन के सतरंगी सपनों से सजी थी उसकी दुनिया। क्या-क्या ख्वाब सजाए थे उसने अपने वैवाहिक जीवन के लिए, मगर सब.. टूट गए। बिखर गए सारे सपने और, और.. वह पहुंच गई मानसिक आरोग्य शाला, ग्वालियर जिसे हम ग्वालियर पागलखाना भी कहते हैं। अपनी कहानी बताते-बताते बीथिका फफक पड़ी। बीथिका हां यही नाम है उसका बीथिका चतुव्रेदी।<br />
शादी के वक्त बहुत खुश थी वह। उसने सोचा कि पति वकील हैं, तो उसे प्रैक्टिस में सहयोग भी करेंगे और दोनों साथ मिलकर प्रैक्टिस करेंगे। अपना भविष्य और घर बनाएंगे। इन्हीं सपनों को समेटे बीथिका ने ससुराल में पहला कदम रखा। कुछ दिन तो बड़े अच्छे से बीते, मगर जब उसने प्रैक्टिस शुरू करने की बात कही, तो उसकी जेठानी बिफर पड़ीं। ‘कहीं नहीं करनी है प्रैक्टिस, महारानी जी काम करेंगी और मैं घर में अकेले खटूंगी। बिल्कुल नहीं। कान खोलकर सुन लो, कहीं नहीं जाओगी तुम।’ जेठानी की बातें उसे बहुत अजीब लगीं, जब रात को उसने पति से कहा, तो उन्होंने भी जेठानी का पक्ष लिया। दरअसल, ससुराल में उसकी जेठानी का वर्चस्व था। बीथिका ने कई बार जेठानी को समझाने की कोशिश की, कहा कि सारा काम करके वह काम पर जाएगी, पर जेठानी को उसका काम पर जाना गवारा न हुआ। आखिरकार बीथिका ने इसे अपनी नियति मान लिया।<br />
मगर शादी को अभी बमुश्किल छह महीने की गुजरे थे कि जेठानी के अत्याचार उस पर बढ़ते गए। जरा सी भी गलती होती, तो उसे सजा के तौर पर घाव दिए जाते। जेठानी उसके साथ जानवरों जैसा व्यवहार करती। बीथिका जब भी इस बारे में अपने पति से बात करती, तो वह भी उसकी पिटाई करता। बीथिका पढ़ी-लिखी थी, उसे इस बर्ताव से दु:ख होता। शादी को तीन साल बीत चुके थे, मगर बीथिका की नियति नहीं बदल रही थी। रोज ताने, उलाहने, मार खाती और भूखे पेट सो जाती। न पेट भर खाना मिलता न कोई दो शब्द प्यार से बोलने वाला होता। पति भी उसके पास नहीं आता और न ही उसे उसके परिवार से मिलने दिया जाता। कब तक सहती बीथिका, एक दिन टूट गया सब्र का बांध। दिमाग ने काम करना बंद कर दिया और घरवालों से उसे पागल करार दे दिया। भेज दिया उसे पागलखाने। जहां वह छह महीने रही। वह कहती रही, चिल्लाती रही कि वह पागल नहीं है, मगर किसी ने उसकी एक न सुनी। उसे शॉट लगाए गए और वह तड़पती रही। चार महीने वहां रही, इस बीच कोई भी उसे न मिलने आया, न किसी ने उसकी खोज खबर ली। और चार महीने बाद वह पहुंची हाफ-वे-होम। जहां पर उसकी काउंसलिंग ली गई और वह अब बिल्कुल ठीक है। हाफ-वे-होम के सदस्यों ने उसके घरवालों से संपर्क किया। ससुराल वालों ने तो अपनाने से मना कर दिया, तब उसके मायके वालों से संपर्क साधा गया और अंतत: जुलाई 2008 में उसका भाई उसे आकर ले गया। बीथिका अपने घर तो चली गई, मगर अपने पीछे सवाल छोड़ गई कि आखिर उसका कसूर क्या था? जिन संबंधों पर उसने भरोसा किया आखिर उन्होंने ही क्यों उसकी जिंदगी में शूल बो दिए?<br />
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</div></div>Ritu Saxenahttp://www.blogger.com/profile/06078068878807815001noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3142385236913821496.post-66940817791381865602012-04-05T08:51:00.002-07:002012-04-05T08:51:34.994-07:00फैला ज्योति का प्रकाश<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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घने अंधेरे में दो पैर आगे बढ़ते जा रहे थे। कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था, चारों ओर घुप्प अंधेरा था। ज्योति न जाने कहां चली जा रही थी, उसे खुद भी पता नहीं था। दिमाग में एक अजब सी उलझन चल रही थी, पता नहीं.. क्या। मगर, ज्योति का दिमाग उसका साथ नहीं दे रहा था और अनायास ही वह घने जंगल में बढ़ती चली जा रही थी.. बस चली जा रही थी।<br />
ज्योति को याद आ रही थी आज की सुबह.. चारों ओर शोरगुल सुनकर उसकी आंख खुल गई। इतनी-इतनी तेज आवाजें कहा से आ रही हैं, वह इसके बारे में कुछ सोचती, किसी से कुछ पूछती उससे पहले ही बाबूजी के चिल्लाने की आवाज उसके कानों में पड़ी। बाबूजी.. वह बाबूजी जो कभी ऊंची आवाज में बात भी नहीं करते थे। बाबूजी, जो उससे बेहद प्यार करते थे। वह बाबूजी उसे देखकर और ज्यादा लाल हो गए। उनका पारा और चढ़ गया चिल्लाकर बोले ‘उठ गईं महारानी’। आइए, फिर मां को आवाज लगाते हुए बोले ‘अरे जरा महारानी के लिए जलपान की व्यवस्था करो।’ उसे कुछ भी समझ में नहीं आया कि हुआ क्या है? क्यों उसके प्यारे बाबूजी चिल् ला रहे हैं। देखा, तो दोनों बहनें सहमी हुईं खड़ी थीं और मां रो रही थी। सोचते-सोचते ज्योति की आंखें भर आईं, वह और तेज कदमों से बढ़ चली। दिमाग में सुबह की घटना चल रही थी। ज्योति सोचने लगी, उस पर बिफर कर.. बाबूजी बाबूजी बड़बड़ाते बाहर चले गए। उसे कुछ समझ में नहीं आया, तो ज्योति मां के पास गई, उसे देखकर मां भी बिफर पड़ीं। ‘तू मर क्यो नहीं जाती, क्यों हमें जला रही है। ज्योति को कुछ समझ में न आया कि आखिर क्या हुआ है, मां-बाबूजी क्यों उस पर बिफर रहे हैं। तभी मां की आवाज उसके कानों में पड़ी ‘कहां से करें तेरी शादी, लड़के वाले मुंह फाड़ कर दहेज मांग रहे हैं।’ इतना कहकर मां फिर रो पड़ी। ‘मां तो मना कर दो उन्हें, लड़की दे रहे हो फिर दहेज क्यों दें। दहेज देना और लेना दोनों अपराध है।’ हां-हां बड़ी आई कानून बघारने वाली, तुङो अपनी तो फिकर नहीं है, मगर इन दोनों की तो फिकर कर। जरा गोरी पैदा नहीं हो सकती थी, एक तो पैसा नहीं ऊपर से तेरा रंग। आज तेरे बाबूजी की नौकरी भी चली गई। अरे तू नहीं होती, तो कम से कम चिंता तो नहीं होती। अब सारी जमा-पूंजी तुझमें लगा देंगे, तो क्या खाएंगे। मां उसे जली-कटी सुना रही थी। मां की बात सुनकर ज्योति रोते हुए बोली थी ‘मां कैसी बातें कर रही हो तुम, अरे रंग-रूप क्या मेरे हाथ में है। अच्छा मुङो नहीं करनी शादी, तुम छोटी और अंजू के लिए लड़का देख लो।’ ‘अरे वाह क्या खूब कहा महारानी ने शादी नहीं करनी। अरे जब बड़ी घर में बैठी रहेगी, तो छोटियों का ब्याह कैसे होगा और देखा सरला तुमने. क्या कह रही हैं महारानी।’ पता नहीं बाबूजी कहां से आ गए थे और ज्योति के अंतिम शब्द उन्होंने सुन लिए थे। माता- पिता के तीर से शब्दों से ज्योति का हृदय छलनी हो गया था। और वह दौड़कर अपने कमरे में चली गई और फूट-फूट कर रोने लगीं। रोते-रोते ज्योति की आंख लग गई, जब आंख खुली तो रात हो चुकी थी। पूरा दिन गुजर गया था, पर किसी ने उसकी सुध भी न ली थी। ज्योति का दिल जोर-जोर से रोने का हुआ। वह सिसकती रही। जब रात गहरा गई और सब सोने को चले तो ज्योति चुपचाप घर से निकली और चल पड़ी। कहां यह उसे कुछ पता नहीं था। मगर आज वह अपने जीवन को समाप्त कर बाबूजी की परेशानी को कम करना चाहती थी। उसे सोच लिया था कि आज वह अपना जीवन समाप्त कर लेगी, उसके मरने से बाबूजी को उसकी शादी की फिक्र तो नहीं रहेगी, और छोटी-अंजू की शादी भी अच्छे से हो जाएगी। ज्योति.. को याद आ रहा था अपना बचपन। कितने लाड़-प्यार से बाबूजी ने उसका नाम ज्योति रखा था.. हमेशा कहते कि वह उनकी बेटी नहीं बेटा है। उसकी हर जरूरत पूरी करते और ज्योति भी उनकी हर ख्वाहिश को पूरा करती। हमेशा अव्वल आती.. और उसे याद आया वह दिन जब ग्रेजुएशन में उसने यूनिवर्सिटी टॉप किया था, तो बाबूजी कितने खुश हुए थे..। सारे पड़ोसियों को मिठाई बांटी थी और.. और उसकी सफलता की खुशी में उसे एक स्कूटी गिफ्ट की थी। यह सोचकर ज्योति के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई, लेकिन.. तभी उसे याद आई आज का दिन.. जब उसके बाबूजी ने उसके मरने की कामना की थी। ज्योति की आंखों से आंसू झरने लगे.. उसने दुपप्टे से आंखें पोंछी और अपने कदमों को और तेज कर दिया..। घड़ी पर नजर डाली, तो दो बज रहे थे वह और तेज कदमों से चलने लगी। आज वह अपनी जिंदगी को खत्म कर देगी, ताकि उसके बाबूजी खुश रहें.. यही सब सोचते हुए ज्योति बढ़ती चली जा रही थी। तभी उसे पीछे से आवाज आई ज्योति, ज्योति ..। ज्योति घबरा गई, उसने अपने कदमों को और तेज कर लिया, वह डर तो रही थीं लेकिन साथ ही साथ वह उस आवाज से भी दूर भागना चाहती थी, मौत का खौफ नहीं था उसके अंदर, क्यूंकि घर से अपनी मौत की ख्वाहिश ही तो लेकर निकली थी वो, लेकिन ना जाने उस आवाज से क्यूं घबरा रही थी वो । उसे फिर आवाज आई, अरे ज्योति सुनो तो, ज्योति ने हिम्मत कर पीछे मुड़कर देखा, उसे कोई दिखाई नहीं दिया। उसने रात के सन्नाटे में जहां हवा की चलने की आवाज भी स्पष्ट सुनाई दे रही थी वहां अपनी तेज और कांपती आवाज में पूछा था ‘कौन-कौन.. कौन हो तुम’। तभी उन हवाओं के शोर और रात के काले अंधेरे के बीच को चीरती हुई आवाज आई थी मैं .. प्रकाश ..। प्रकाश कौन प्रकाश? बिना रूके ही पूछ बैठी थी ज्योति और बिना रूके ही फिर अंधेरे में अपना भी एक सवाल उछाल दिया था जिधर से वो आवाज आई थी उसी दिशा में -- मैं किसी प्रकाश को नहीं जानती। तुम्हारा प्रकाश। मेरा .. प्रकाश श् श् श् श् .. आश्चर्य और विस्मय के मिश्रित भाव के बीच जोरदार आवाज में फिर चिल्लाई थी ज्योति.. तुम सामने क्यों नहीं आते। मैं तो तुम्हारे साथ ही हूं.. ज्योति। तुम्हारे जीवन का प्रकाश.. तुम्हारे जीवन का प्रकाश ..श् श् श्..। तुम मुङो नहीं देख पा रही हो क्या। ज्योति ने गौर से उस आवाज को सुनने की कोशिश की और काफी जद्दोजहद के बाद उसे समझ में आया कि अरे यह आवाज तो सचमुच उसके अंदर से उसकी आत्मा से ही आ रही है। वह गौर से अपने अंदर से उठती इस आवाज को सुनने लगी थी। उसकी आत्मा की आवाज उससे अब भी सवाल पर सवाल किए जा रहा था, ज्योति कहां जा रही हो तुम ? तुम ये क्या करने जा रही हो? अपने जीवन का अंत करना चाहती हो तुम? क्या तुम बुजदिल हो ? ऐसे अनगिनत सवाल का एक ही जबाब सूझ रहा था ज्योति को .... हां, तभी तो सब खुश हो पाएंगे मेरे घर में, तभी तो पूरा घर जी पाएगा अपनी बिंदास जिंदगी, अगर मेरे मरने से ही सब कुछ अच्छा हो सकता है तो अपनी मौत लेकर ही मैं सबको खुश देखना चाहूंगी ... बड़े सिसकते अंदाज में रूंधे गले के बीच ज्योति के हलक से इतनी ही आवाज निकल पाई थी। तभी उस आवाज ने फिर से कहा, गलत कह रही हो तुम ज्योति। सोचो जरा जब तुम्हारी मौत की खबर बाबूजी को मिलेगी, तो उन पर क्या बीतेगी। जीते जी मर जाएंगे वो और अंजू, छोटी। तुम सोचती हो कि उनकी शादियां हो जाएंगी। नहीं ज्योति ऐसा कुछ नहीं होगा। तुम्हारी मौत की खबर उनकी मौत का पैगाम होगी। अरे सोचो जरा समाज में तरह-तरह की बातें होंगी और फिर उनकी शादियां कैसे होंगी उनकी शादियां सोचो जरा। उस आवाज की बातों में दम था और ज्योति उसकी दमदार आवाज के सामने सकपका गई थी। मगर हिम्मत कर ज्योति ने कहा नहीं.. झूठ कह रहे हो तुम, ऐसा कुछ नहीं होगा। बाबूजी चाहते हैं मैं मर जाऊं.. तभी तो उन्होंने वह सब कहा। तुम्ही बताओ.. अगर ऐसा नहीं होता तो क्या-क्या बाबूजी ऐसा कहते सिसक पड़ी ज्योति। तभी धीमें से उस आवाज ने ज्योति को संबोधित करते हुए कहा हौसला रखो ज्योति.. ऐसा कुछ नहीं है, जैसा तुम सोचती हूं। तुम्हारे बाबूजी थोड़ा परेशान हैं बस.। मगर सोचो तुम्हारे इस कदम का क्या असर पड़ेगा सोचो जरा। और ज्योति सोच में पड़ गई तभी धीरे से उस आवाज ने कहा तुम ज्योति हो, ज्योति..जो दूसरों की जिंदगी में प्रकाश फैलाती है और तुम खुद अपने जीवन प्रकाश को बुझाने चली हो। नहीं.. ज्योति नहीं। ये गलत है, गलत है ये सब। अब घर जाओ, सबको संभालो और सबकी जिंदगी में अपनी रोशनी भर दो। जाओ घर। न जाने उस आवाज में कैसा सम्मोहन था कि ज्योति के कदम वापस घर की ओर मुड़ पड़े। जब वह घर पहुंची, तो सबेरा हो चुका था और सूर्य का प्रकाश जहां को रोशन कर रहा था। ज्योति ने दरवाजा खोला, तो उसे आश्चर्य हुआ। बाबूजी उसे ढूंढ रहे थे। उसे देखते ही उन्होंने लगे से लगा लिया। मां ने प्यार से सिर पर हाथ फेरा। उसे समझ में नहीं आ रहा था क्या हुआ? तभी बाबूजी ने कहा अरे तू इंस्पेक्टर बन गई ज्योति। और उनकी आंखें भर आईं। ये देख तेरा पोस्टिंग ऑर्डर.. ज्योति ने बाबूजी के हाथ से लिफाफा लिया और ऑर्डर निकालकर पढ़ने लगी। उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि उसने दोस्तों से पैसा उधार लेकर जो इंस्पेक्टर की परीक्षा दी थी, उसमें वह पास हो गई है। तभी बाबूजी ने कहा कि तू सच में हमारे घर की ज्योति है। देख तुङो नौकरी मिल गई। मेरी ज्योति अब इंस्पेक्टर बन गई, तूने मेरा सिर ऊंचा कर दिया बेटा। घर में सबकी खुशी देखकर ज्योति ने दरवाजे की ओर देखा, तो उसे लगा कि उसके प्रकाश से सारा घर रोशन हो रहा है।<br />
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