जिंदगी यूँ ही बेकार हो गई ,
सत्य की ठोकर लगी तो पाया कुछ नहीं ,
हवा का रुख देखकर अब जिंदगी को जी,
क्योकि रुख बदलती आंधियो पर तेरा बस नहीं
दोष ओरों के सर पर दे रहे हो आप ,
घाव अपनों के कभी सीभी सके हो क्या ,
भावनाएं उनकी समझ भी सके कभी,
आंसुओ के मोती पी भी सके हो क्या,
शराफत के तराजू में तोलो खुद को देख लो ,
हवा का रुख देखकर जी भी सके हो क्या