जिंदगी यूँ ही बेकार हो गई ,
सत्य की ठोकर लगी तो पाया कुछ नहीं ,
हवा का रुख देखकर अब जिंदगी को जी,
क्योकि रुख बदलती आंधियो पर तेरा बस नहीं
दोष ओरों के सर पर दे रहे हो आप ,
घाव अपनों के कभी सीभी सके हो क्या ,
भावनाएं उनकी समझ भी सके कभी,
आंसुओ के मोती पी भी सके हो क्या,
शराफत के तराजू में तोलो खुद को देख लो ,
हवा का रुख देखकर जी भी सके हो क्या
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ReplyDeleteammazing thoughts..in fact i couldn`t imagine this hight of thought from u.. keep it up..
ReplyDeleteits really fantastic.
Waiting for something new.........
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