Wednesday, 24 September 2014

असहिष्णु होते हम....


भावनाएं आहत होने के कारण जितने उपद्रव होते हैं, उनके पीछे वास्तविक कारण वह नहीं होता, जो पेश किया जाता है. अचानक भारतीय राजनीति में लोगों के 'सम्मान' इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि जिन अवधारणाओं पर हिंदुस्तान की बुनियाद रखी गई थी, वह हिलती दिख रही है. क्या सार्वजनिक जीवन में आपको हमेशा देवता की तरह पूजा जाएगा? क्या आपके आलोचक नहीं होंगे? क्या विरोधी नहीं होंगे? क्या हर व्यक्ति को आपकी स्वीकार्यता के लिए मजबूर किया जाएगा? क्या भारत के आजाद होने के बाद से लगातार नेताओं पर टिप्पणी करने पर लोगों को सजाएं दी जाती रही हैं? क्या नेहरू, लोहिया, शास्त्री, इंदिरा आदि पर भी अपमानजनक टिप्पणी के लिए किसी को सजा दी गई थी? यह सही है कि किसी पर अपमानजनक टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, लेकिन यदि किसी ने की तो क्या उसकी जान ले ली जाएगी? ऐसा लग रहा है कि समय के साथ हम लगातार असहिष्णु होते जा रहे हैं.
जिन लोगों ने पुणे में युवक की हत्या की, उन्हीं लोगों ने सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, और अन्य कांग्रेसी नेताओं की कैसीकैसी तस्वीरें शेयर की हैं, पिछले महीने इसके गवाह है. जाहिर है कि इस हत्या का कारण वह नहीं था जो बताया जा रहा है. हत्या के बाद 'एक विकेट गेली' जैसा मैसेज बहुत कुछ कहता है. आज यह नया चलन है कि सोशल मीडिया पर नेताओं पर टिप्पणी आपको न सिर्फ जेल भिजवा सकती है, बल्कि बर्बर तरीके से आपकी जान भी ली जा सकती है. एक फर्जी आईडी से बना फेसबुक अकाउंट, जिस पर बाल ठाकरे और शिवाजी की कथित अपमानजनक फोटो लोड होती है और उन्माद इस कदर भड़कता है कि एक युवक की क्रूर हत्या कर दी जाती है. वह भी उस अपमान के लिए जो भुक्तभोगी ने किया या नहीं, किसी को नहीं पता. क्योंकि वह अकाउंट कहीं बाहर से चलाया जा रहा था! क्या किसी का सम्मान किसी की जान से ज्यादा बड़ा है?
याद कीजिए कि कार्टूनिस्ट शंकर का वह कार्टून जो छह दशक पहले बना था और प्रमुख अखबार में प्रकाशित हुआ था. उसे 2006 में एनसीईआरटीई की किताबों में शामिल किया गया था. दो साल पहले उसपर अचानक विवाद हुआ और योगेंद्र यादव व सुहास पलिशकर ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया. नेताओं पर कार्टून बनाना कोई अनोखी बात नहीं है. दुनिया भर के कार्टूनिस्ट सभी छोटे बड़े नेताओं पर कार्टून बनाते रहे हैं. जाहिर है कि वे चुटकी ही लेते हुए होते हैं.

कहते हैं कि कार्टूनिस्ट केशव शंकर पिल्लै की नेहरू से मित्रता थी. नेहरू ने शंकर को सलाह दी थी कि शंकर, मुझे भी मत बख्शना!लेकिन आज कार्टून आपको जेल भिजवा सकते हैं. क्या हम समय के साथ जितना आगे आए हैं, उतने ही संकीर्ण और असहिष्णु हो गए हैं? ये संकीर्णताएं वह भस्मासुर हैं जो एक दिन हमें लील जाएंगी. यह याद रखिए कि सहिष्णुता लोकतंत्र की जान है और वही इस देश की ताकत है. कठमुल्लापन आपको कहां ले जाता है, पाकिस्तान इसका जीताजागता उदाहरण है. हालिया हत्या पर सियासी गलियारे की चुप्पी भयावह है.दूसरों पर हमले करना एक तरह की व्यक्ति पूजा का नतीजा है कि आप किसी नेता पर कुछ कह देंगे तो आपको मारापीटा जाएगा. डॉक्टर अंबेडकर मानते थे कि व्यक्ति पूजा लोकतंत्र के लिए बड़ी खतरनाक बात है.

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