Monday, 20 July 2015

मोहिनी........


कभी-कभी कुछ कहती सी मालूम होती है,  तो कभी एकदम चुपचाप सी। गुमसुम सी उसकी आंखों में बहुत गहराई है। झील की तरह नीली आंखें जैसे कुछ कहना चाह रही हों, लेकिन शब्द उसके पास नहीं। वह अनजान है, अजनबी है, लेकिन बहुत कुछ खास है उसमें।
उसका नाम नहीं पता, लेकिन मैंने अपने मन में ही उसे नाम दे दिया है मोहिनी। हां मोहिनी ही है वह। उसका चेहरा भुलाए नहीं भूलता। उसकी आंखों की कसमसाहट समझ नहीं आती। जब हॉस्टल से मैट्रो के लिए निकलती हूं, तो अक्सर ही मैट्रो स्टेशन के बाहर अपनी मां के साथ बैठी वह 5-6 साल की बच्ची अनायास ही ध्यान खींच लेती है। करीब एक साल से देख रही हूं, उसे मैं। सोचती हूं, कभी उससे ढेर सारी बाते करूंगी, लेकिन ऑफिस जाने की जल्दी में बस एक बार उसकी ओर देख ही पाती हूं। शायद वह भी समझती है, मेरी आंखों को। तभी तो जैसे ही मैं उसे देखती हूं, वह मुस्कुरा देती है। उसकी वह  प्यारी सी मुस्कान मुझे रास्ते भर सुकून देती है।

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