एक ओर तो केंद्र सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ के दावे करती है, लेकिन केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा शाषित मध्यप्रदेश में दलितों की स्थिति अभी भी बदतर है। यूं तो देश भर में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में तो उनका जीना दूभर होता जा रहा है।
इसी महीने मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के मुंडवारा गांव में एक महिला को निर्वस्त्र कर पेशाब पिलाने का मामला सामने आया। 26 अगस्त को हुई यह घटना सितंबर की शुरुआत में सामने आई। घटना का संबंध जमीन विवाद से है। दबंग परिवार के दव्र्यवहार का शिकार हुई महिला की शिकायत पर रिपोर्ट तो दर्ज हुई, लेकिन अभी तक मामले में कोई गिरफ्तारी न होना बताता है कि राज्य की पुलिस दलितों को लेकर कितनी संवेदनशील है? इतना ही नहीं प्रदेश के अलीराजपुर जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर घटवानी गांव के 200 दलित कुएं का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं, क्योंकि दबंग उन्हें हैंडपंप से पानी नहीं भरने देते। वहीं राज्य के 80 फीसदी गांवों में दलितों के मंदिरों में जाने पर रोक है। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) और अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मैरिलैंड के एक अध्ययन के अनुसार, छुआछूत को मानने में मध्य प्रदेश पूरे देश में शीर्ष पर है। सर्वे में मध्य प्रदेश में 53 फीसदी लोगों ने माना कि वे छुआछूत को मानते हैं।
यह तो केवल कुछ आंकड़े हैं, जो प्रदेश में दलितों की स्थिति को बयां करते हैं, असल तस्वीर तो इससे कहीं ज्यादा भयानक है। यूं तो प्रदेश सरकार दलितों के उत्थान की बात करती है लेकिन ऐसी घटनाएं सोचने पर विवश करती हैं कि ये बातें कितनी सच हैं! केंद्र सरकार का दावा है कि वह देश को भयमुक्त बनाएगी, लेकिन जब देश के एक बड़े प्रदेश में आधी आबादी की स्थिति यह है, तो यह दावा कोरा ही नजर आता है।
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