Sunday 15 August 2010
हकीकत
जिंदगी यूँ ही बेकार हो गई ,
सत्य की ठोकर लगी तो पाया कुछ नहीं ,
हवा का रुख देखकर अब जिंदगी को जी,
क्योकि रुख बदलती आंधियो पर तेरा बस नहीं
दोष ओरों के सर पर दे रहे हो आप ,
घाव अपनों के कभी सीभी सके हो क्या ,
भावनाएं उनकी समझ भी सके कभी,
आंसुओ के मोती पी भी सके हो क्या,
शराफत के तराजू में तोलो खुद को देख लो ,
हवा का रुख देखकर जी भी सके हो क्या
Wednesday 5 May 2010
जिन्दगी बहुत अजीब शब्द हैं जिन्दगी..
जिन्दगी बहुत अजीब शब्द हैं जिन्दगी
एक खुबसूरत लम्हा तो कभी बदनुमा दाग हैं जिन्दगी
हर पल यहाँ विचारों का प्रवाह हैं जिन्दगी .
कभी सकारात्मक
तो कभी नकारात्मक हैं जिन्दगी
जब सोचती हूँ जिन्दगी के बारे मैं
तो समझ नहीं पाती आखिर क्या हैं जिन्दगी.
बस एक ही बात आती हैं मन
की बहुत रहस्यमय हैं ये जिन्दगी...
Saturday 24 April 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)