Tuesday 22 September 2015

मध्यप्रदेश में बदतर होती दलितों की स्थिति


एक ओर तो केंद्र सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ के दावे करती है, लेकिन केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा शाषित मध्यप्रदेश में दलितों की स्थिति अभी भी बदतर है।  यूं तो देश भर में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में तो उनका जीना दूभर होता जा रहा है।  
इसी महीने मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के मुंडवारा गांव में एक महिला को निर्वस्त्र कर पेशाब पिलाने का मामला सामने आया। 26 अगस्त को हुई यह घटना सितंबर की शुरुआत में सामने आई। घटना का संबंध जमीन विवाद से है। दबंग परिवार के दव्र्यवहार का शिकार हुई महिला की शिकायत पर रिपोर्ट तो दर्ज हुई, लेकिन अभी तक मामले में कोई गिरफ्तारी न होना बताता है कि राज्य की पुलिस दलितों को लेकर कितनी संवेदनशील है? इतना ही नहीं प्रदेश के अलीराजपुर जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर घटवानी गांव के 200 दलित कुएं का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं, क्योंकि दबंग उन्हें हैंडपंप से पानी नहीं भरने देते। वहीं राज्य के 80 फीसदी गांवों में दलितों के मंदिरों में जाने पर रोक है। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) और अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मैरिलैंड के एक अध्ययन के अनुसार, छुआछूत को मानने में मध्य प्रदेश पूरे देश में शीर्ष पर है। सर्वे में मध्य प्रदेश में 53 फीसदी लोगों ने माना कि वे छुआछूत को मानते हैं। 
यह तो केवल कुछ आंकड़े हैं, जो प्रदेश में दलितों की स्थिति को बयां करते हैं, असल तस्वीर तो इससे कहीं ज्यादा भयानक है। यूं तो प्रदेश सरकार दलितों के उत्थान की बात करती है लेकिन ऐसी घटनाएं सोचने पर विवश करती हैं कि ये बातें कितनी सच हैं! केंद्र सरकार का दावा है कि वह देश को भयमुक्त बनाएगी, लेकिन जब देश के एक बड़े प्रदेश में आधी आबादी की स्थिति यह है, तो यह दावा कोरा ही नजर आता है। 

Monday 14 September 2015

मप्र. में महिला सुरक्षा के दावों की पोल खुली


मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कई बार दावा कर चुके हैं कि मध्यप्रदेश महिलाओं के लिए सुरक्षित प्रदेश हैं। यहां की महिलाएं खुद को अन्य राज्यों के मुकाबले सुरक्षित महसूस करती हैं। मुख्यमंत्री इतना ही नहीं बल्कि खुद को लड़कियों का मामा कहलाना पसंद करते हैं। एक साक्षात्कार के दौरान जब उनसे मामा कहलाने के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि मामा अर्थात मा मा, जिसमें दो मां हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश को महिलाएं मायके के जैसा महसूस करें, वह यही चाहते हैं।
लेकिन हाल ही में जारी किए गए नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं, तो शिवराज सिंह चौहान का यह दावा खोखला साबित होता है।  आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश में दुष्कर्म के मामले में मध्यप्रदेश अव्वल है।  पिछले दस सालों में 2005 से 2014 के बीच मध्यप्रदेश में दुष्कर्म के 34,143 मामले
दर्ज किए गए। राज्य में हर दिन 13 दुष्कर्म के मामले सामने आते हैं और पीड़ितों में आधी लड़कियां नाबालिग हैं। यह तो केवल वे मामले हैं, जो पुलिस थानों में दर्ज हुए हैं, अगर इनमें सामने न आने वाले मामले जोड़ दिए जाएं, तो आंकड़ों की संख्या दोगुनी हो सकती है;
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लड़कियों के लिए कई योजनाएं जैसे,
लाड़ली लक्ष्मी योजना, बेटी बचाव अभियान, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना चला
रखी हैं। मध्यप्रदेश सरकार का दावा है कि राज्य में लड़कियों की सुरक्षा
और उन्नति के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। वहीं यह आंकड़े बेहद चौंकाते हैं, क्येांकि   जिस प्रदेश का मुख्यमंत्री सुरक्षा को लेकर बड़े—बड़े दावे करता हो, उस प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की इतनी बड़ी संख्या सोचने पर विवश कर देती है।
पिछले दस सालों के आंकड़े बताते हैं कि राज्य सरकार महिलाओं को लेकर कितनी चिंतित है। मुख्यमंत्री के दावे कितने सच हैं।
मुख्यमंत्री साहब यह बताएं कि ‘मामा’ बनने का उनका वादा कितना सच है। महिला सुरक्षा को लेकर उन्होंने पिछले 12 साल से ज्यादा समय के अपने शासन में क्या कदम उठाए हैं। मध्यप्रदेश की निवासी होने के नाते यह सवाल मेरे मन में उठ रहे हैं।  अपनी सुरक्षा को लेकर मेरी चिंता लाजिमी है, उम्मीद है कि मुख्यमंत्री साहब इसका उचित उत्तर देंगे। 

Monday 20 July 2015

मोहिनी........


कभी-कभी कुछ कहती सी मालूम होती है,  तो कभी एकदम चुपचाप सी। गुमसुम सी उसकी आंखों में बहुत गहराई है। झील की तरह नीली आंखें जैसे कुछ कहना चाह रही हों, लेकिन शब्द उसके पास नहीं। वह अनजान है, अजनबी है, लेकिन बहुत कुछ खास है उसमें।
उसका नाम नहीं पता, लेकिन मैंने अपने मन में ही उसे नाम दे दिया है मोहिनी। हां मोहिनी ही है वह। उसका चेहरा भुलाए नहीं भूलता। उसकी आंखों की कसमसाहट समझ नहीं आती। जब हॉस्टल से मैट्रो के लिए निकलती हूं, तो अक्सर ही मैट्रो स्टेशन के बाहर अपनी मां के साथ बैठी वह 5-6 साल की बच्ची अनायास ही ध्यान खींच लेती है। करीब एक साल से देख रही हूं, उसे मैं। सोचती हूं, कभी उससे ढेर सारी बाते करूंगी, लेकिन ऑफिस जाने की जल्दी में बस एक बार उसकी ओर देख ही पाती हूं। शायद वह भी समझती है, मेरी आंखों को। तभी तो जैसे ही मैं उसे देखती हूं, वह मुस्कुरा देती है। उसकी वह  प्यारी सी मुस्कान मुझे रास्ते भर सुकून देती है।

Sunday 1 March 2015

अनकहा रिश्ता, अधूरी कहानी


जिंदगी में कभी-कभी कुछ अलग ही लोगों से मुलाकात हो जाती है। यूं तो रोज ही कई लोगों से वास्ता पड़ता है।  आते-जाते, ऑफिस में काम करते और सड़कों पर चलते न जाने कितने चेहरे हमारे सामने से गुजरते हैं। जिंदगी में कितने लोग हमें मिलते हैं। कितने दोस्त बनते हैं और कितने वक्त के साथ छूट जाते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं,  जिनसे  मुलाकात तो छोटी होती है, पर एक अनकहा रिश्ता बन जाता है।
एक ऐसा ही रिश्ता मिला था सीमा को यूं ही आते-जाते, मिलते-मिलाते। उज्जवल से एक छोटी सी मुलाकात ने उसके जीवन में हलचल मचा दी थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर क्या है यह रिश्ता। क्यों उसे यह रिश्ता सबसे बड़ा और करीबी लगता है, क्यों उससे दिल की हर बात करने का मन करता है, क्यों वह उसे देखना चाहती है, जी भरकर बातें करना चाहती है क्यों? बहुत से सवाल चल रहे हैं उसके मन में... लेकिन हल नहीं है उसके पास।
सीमा को उज्जवल का साथ बेहद खास लगता। कभी वह उससे खूब बतियाती, तो कभी कुछ  सोचकर मौन भी हो जाती। कभी-कभी तो वह उसके सामने अल्हड़ बच्ची बन जाती, तो कभी-कभी बड़ी-बड़ी बातें करती। उसे खुद ही नहीं समझ में आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है उसके साथ। पहली बार ऐसा कुछ महसूस कर रही थी वह। यूं तो वह उज्जवल को अपना दोस्त कहती थी, लेकिन वह कुछ खास है। हां कुछ तो खास है उज्जवल में... जो वह महसूस कर रही थी, लेकिन शब्द उसका साथ नहीं दे रहे थे.....................................