मां एक शब्द , मात्र शब्द मगर इसमें समाया है एक पूरा संसार। कहते हैं कि मां एक वाक्य नहीं है, बल्कि एक पूरा महाकाव्य है। मां.. जब अंतर्मन से निकलती है ये आवाज, तो लगता है कि बस हर दु:ख, हर तकलीफ से मिल गई निजात। जब कभी दु:खी होता है मन, तो पुकार उठती हूं मां. मां. और मां उस समय मुङो बिल्कुल अपने पास नजर आती है। फोन पर उससे बातें करके सारा बोझ हल्का हो जाता है, तरोताजा महसूस करने लगती हूं मैं। एक नई उमंग भर उठती है मन में।
सात सालों से घर से बाहर हूं। अपनी प्यारी मां की गोदी से दूर, उसके आंचल की छांव से दूर। याद आते हैं, वो सब दिन, जब किसी बात पर स्कूल-कॉलेज में सहेलियों से हो जाता था मन-मुटाव या फिर परीक्षा के दिनों में लगता था बहुत डर। कभी-कभी जब मन हो जाता था बहुत निराश, तो मां का आंचल बनता था मेरा आशियाना और उसकी गोदी में सिर रखकर लगता था कि हर मुश्किल राह हो जाएगी अब आसान। मिल जाएगी मुङो मंजिल आखिर मां जो है मेरे साथ। वो प्यार से उसका बालों को सहलाना, वो रात में अपने गले से लगाना, याद आता है सब। बहुत याद आता है।
आज भी जब उससे बात होती है, तो उसे सिर्फ फिक्र रहती है मेरे खाने की। जैसे कि बचपन में वह मुङो अपने हाथों से खिलाती थी और जब मैं कहती हूं कि मां अब मैं बड़ी हो गई हूं, तो वहां से आवाज आती है, हां बेटा पता है कितनी बड़ी हो गई हो तुम। अच्छा सुनो अपना ध्यान रखना, खाना टाइम पर खाना और हां धूप बहुत तेज है, बाहर मत निकलना। ऑफिस जाना, तो चुन्नी बांधकर जाना, ऑटो ले लेना, बस से मत जाना। रोज दही लेना और जूस भी। चाय मत पीना। लस्सी ले लेना। टाइम पर नाश्ता करना, काजू, बादाम पानी में भिगोकर खाना। फल ले रही हो कि नहीं। न जाने ऐसी कितनी ही नसीहतें वह देती है मुङो। और मैं जवाब में कहती हूं ‘हां मां सब कर रही हूं।’ कभी हल्की सी तबियत खराब होती है, तो तुरंत मां का फोन आ जाता है, ‘तबियत कैसी है तुम्हारी, ठीक तो हो न’ मैं समझ नहीं पाती कि हजार किलोमीटर दूर बैठी मां को कैसे पता चला कि मेरी तबियत ठीक नहीं है। तभी याद आता है कि वो मां है, जिससे हमारी नाभिनाल जुड़ी हुई है। जिसने गर्भ में पाला है हमें और बस आंखें हो जाती हैं नम और सिर झुक जाता है उसके सजदे में।
आज हम मदर्स डे मनाते हैं, एक दिन करते हैं मां के नाम। मां को याद करने का ये तो सिर्फ प्रतीक है। मां तो जीवन के हर पल हमारे साथ है। हम कहीं भी रहें, उसका साया हमेशा मौजूद रहता है, हमारी सलामती के लिए। मां को नमन करते हुए मुनव्वर राणा की ये पंक्तियां याद आ जाती हैं..
‘जब भी कस्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।’