Wednesday 21 August 2013

मिली जिंदगी को नई राह


कितना अजीब है न सब कुछ। एकदम उम्मीद के विपरीत। जिंदगी में कभी-कभी ऐसे मोड़ भी आते हैं, पता ही न था अब तक। जो सोचा वह न हुआ और जिसकी कल्पना भी न की थी सपनों में, वह हकीकत बन सामने खड़ा है। कैसे एक पल में बदल जाती है न जिंदगी। उम्मीदें टूट जाती हैं और कई बार मन घिर जाता है आशंकाओं से। कितना डर लगता है न इस समय। जब कभी कमरे में अकेली होती हूं, तो एक अनजाने डर से कांप जाती है मेरी रूह। छुरहरी सी दौड़ जाती है अंग में। क्यों होता है ऐसा?आखिर क्यों?  ऐसा ही कुछ चल रहा था सीमा के मन में। हरिद्वार में गंगा के घाट पर खड़ी थी वह। दूर एकांत में बना यह घाट उसे बहुत सुकून देता है। कल-कल करती गंगा की लहरों में खो जाती है। अब से नहीं तबसे उसे यहां मिलती है शांति, जब वह हरिद्वार में रहकर अपनी पढ़ाई कर रही थी। उस दौरान भी जब उसका मन घबराता था, तो भागकर आ जाती थी वह यहां और खो जाती थी गंगा की लहरों में। मिल जाता था उसे यहां अपने हर सवाल का  जवाब।
आज फिर चार साल बाद सीमा उसी घाट पर एक पत्थर पर बैठी गंगा की लहरों  को  देख रही थी एकटक।  लेकिन आज उसके मन को यह लहरें सुकून नहीं दे रही थीं। आई तो इसीलिए है वह यहां कि उसकी जिंदगी की उथल-पुथल शायद शांत हो जाए और पढ़ाई के दौरान जैसे उसे यहां  सब हल मिल जाते थे, शायद जिंदगी के इस सवाल का जवाब भी यहीं कहीं छुपा हो। लेकिन आज न जाने क्यों उसे नहीं मिल रहे थे अपने सवालों के जवाब। शायद वह जिंदगी के उस पड़ाव पर है, जहां से आगे जाने का रास्ता ही नहीं मिल रहा है उसे। बहुत बड़ा सवाल है उसके सामने। उसकी पूरी जिंदगी का सवाल। एक ऐसा सवाल, जो तय करेगा उसके भविष्य को। किंतु-परंतु में उलझ गई है वह। किसे सच माने और किसे नकार दे, तय नहीं कर पा रही है वह। आखिर क्या है सच। जो दिख रहा है  या फिर जो वह महसूस कर रही है। जो उसका दिल कह रहा है वह या फिर जो उसका दिमाग समझ रहा है वह। गंगा की लहरों को अपलक देखते हुए सीमा यही सब सोचे जा रही थी।
अचानक गंगा की उठती लहरों पर उसकी नजर पड़ी। ऊफान पर उठती लहरें और फिर एकदम से शांत होता पानी। उसे लगा उससे कुछ कह रही हैं यह लहरें। सीमा उठकर किनारे तक गई और गौर से देखने लगी उन लहरों को। उठती और शांत होती लहरों के बीच खड़ी थी सीमा। अपने चारों ओर बहते साफ-निर्मल पानी को देख सहसा उसे लगा कि अरे यही तो यह उसका हल। जीवन है यह, जहां चारों ओर पानी है और बीच में हम खड़े हैं। इन उठती लहरों की तरह आते हैं बवंडर जीवन में, लेकिन अगर  हम डटे अपने पथ पर, तो थोड़े ही पल में शांत हो जाते हैं यह बवंडर, बिल्कुल इन उत्ताल लहरों की तरह। और फिर छा जाती है शांति, बहने लगती है जिंदगी की बयार, बिल्कुल इस शांत-निर्मल जल की तरह। तो फिर क्यों उदास है सीमा? उसकी अंतर्मन से निकली आवाज। सीमा आज फिर गंगा ने तुमको दे दिया है तुम्हारे सवालों का जवाब। उठो और डटी रहो। अब मत रो, मत परेशान हो। जो भी चाहती हो, मिलेगा तुम्हें वह। फिर होगा तुम्हारा जीवन निर्मल-शांत। फिर होंगी खुशियां, बस न खोना अपना विश्वास। सीमा ने एक बार फिर गंगा को नमन किया और चल पड़ी अपने पथ की ओर, जहां उसका जीवन मुस्कुराकर उसका स्वागत कर रहा था।