Monday 9 July 2012

मनमोहन टाइम आउट, मोदी इन



टाइम मैग्जीन ने इस माह के अपने एशिया अंक में मनमोहन सिंह को  ‘अंडरअचीवर’ यानी उम्मीद से कम प्रदर्शन करने वाला बताया है। कवर पेज पर पत्रिका ने मनमोहन सिंह की तस्वीर छापी है और लिखा है कि भारत को नई शुरुआत की जरूरत। टाइम मैग्जीन ने अपने अंक में कहा है कि मनमोहन सिंह एक अच्छे प्रधानमंत्री साबित नहीं हुए हैं। पत्रिका ने मनमोहन की काबिलियत पर सवाल उठाते कहा है कि क्या मौजूदा पीएम धीमी विकास दर, नीतियां लागू नहीं करने और आर्थिक सुधार के मोर्चे पर नाकाम रहने के आरोपों का बखूबी सामना कर पाएंगे? मैग्जीन ने केंद्र की मौजूदा यूपीए सरकार की आलोचना करते हुए कहा है, ‘रोजगार पैदा करने वाले कानून संसद में अटके हैं और जनप्रतिनिधियों पर से लोगों का भरोसा घटने लगा है, जो चिंता की बात है।’
दिलचस्प बात यह है कि तीन साल पहले इसी पत्रिका ने मनमोहन सिंह को एक ऐसी शख्सियत करार दिया था, जिसने कई लोगों की जिंदगियां बदल दीं और उनके आर्थिक सुधारों की सराहना की थी। हां, पत्रिका ने मनमोहन के पतन का उल्लेख करते हुए लिखा ‘पिछले तीन वषों में, वो शांत आत्मविश्वास जो कभी उनके चेहरे पर चमकता था, लुप्त हो गया है। लगता है वहअपने मंत्रियों को नियंत्रित नहीं कर पा रहे और उनका नया मंत्रलय, वित्त मंत्रलय का अस्थायी कार्यभार, सुधारों को लेकर इच्छुक नहीं है जिससे कि उस उदारीकरण को जारी रखा जा सकेगा जिसकी शुरूआत में उन्होंने भूमिका निभाई थी।’ टाइम से पहले रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स भी प्रधानमंत्री के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर चुकी है। कुछ दिनों पहले ही एसएंडपी  ने अपने आकलन में भारत की रेटिंग निगेटिव करने के पीछे भारत के शीर्ष नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया था। एजेंसी के मुताबिक भारत में सुधारों की गाड़ी रुकने के बीच विपक्ष या सहयोगी दल नहीं बल्कि शीर्ष नेतृत्व जिम्मेदार है।
भले ही इस समय प्रधानमंत्री वित्त मंत्रलय संभाल रहे हों और आर्थिक सुधारों की ओर उनका रुझान दिखाई दे रहा हो, लेकिन टाइम का आंकलन तो यही बताता है कि वह हर स्तर पर नाकामयाब रहे हैं।
 मार्च के अंक में टाइम मैग्जीन ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे गढ़े थे और गुजरात और बिहार को रोल मॉडल बताया था। नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ प्रकाशित अंक में पत्रिका ने लिखा था कि वे 2014 के चुनावों में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर राहुल गांधी के लिए कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं।
कुल मिलाकर मार्च और इस माह के आकलनों पर गौर किया जाए, तो ऐसा लगता है कि देश में कांग्रेस का विकल्प तैयार हो रहा है और पार्टी से लोगों का मोहभंग हो रहा है। सवाल है कि क्या मोदी राहुल का सशक्त विकल्प बनते जा रहे हैं? क्या कांग्रेस अपने पतन की ओर है और मोदी एक ऐसे व्यक्तित्व के तौर पर सामने आ रहे हैं जिनके हाथों में देश की बागडोर सौंपी जा सकती है?
अब इन आकलनों का क्या असर होगा और जनता का फैसला क्या होगा? यह तो आगामी चुनावों में ही पता चलेगा, फिलहाल मनमोहन जरा संभल कर..