Thursday 22 December 2011

कब पूरे होंगे उनके सपने




सपने उन्हीं के सच होते हैं, जो सपने देखते हैं। ख्वाब देखो, जिद करो और जिंदगी और दुनिया बदलो। यही है आज के युवा का मूल मंत्र। जिस पर चलकर वह साकार करता है अपने सपने और बन जाता है नं. वन। आगे बढ़ना और चलते जाना, पीछे नहीं देखना यही है आज के युवाओं का रास्ता, जिस पर वह चलते जाते हैं। कभी भी नहीं रुकना, चाहे मार्ग में कितनी बाधाएं आएं, चाहे कितनी ठोकरें लगें पर सिर्फ आगे बढ़ना। युवा पीढ़ी के बारे में भारतीय युवाओं के बारे में ऐसा ही कुछ हाल ही में आई फोर्ब्स की सूची बयां करती है।
फोर्ब्स की सूची ‘30 अंडर 30’ में दस स्थानों पर केवल भारतीय युवाओं का कब्जा है, जो हमें यह बताता है कि अगर जज्बा हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। उद्योग, विज्ञान, चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में से भारतीय युवाओं ने यहां अपना कब्जा जमाया है और पूरे देश को दिखा दिया है कि हम किसी से कम नहीं। भारतीय मूल के नौजवानों में 17 साल के आस्टिन कालेज के छात्र और अन्वेषक परम जग्गी का भी नाम है। इन्होंने ऐल्गी से भरा एक उपकरण तैयार किया है जिसके कार की टेलपाईप पर लगाने पर यह कार्बन डायऑक्साईड को ऑक्सीजन में परिवर्तित करता है। इधर 23 साल के डैमेस्कस फॉच्यरून के मुख्य कार्यकारी विवेक नायर औद्योगिक कार्बन उत्सर्जन को कार्बन की नैनोट्यूब में बदलने की प्रौद्यागिक इजाद कर रहे हैें। वित्तीय क्षेत्र में विकास महिंद्रा को चुना गया है जो बैंक अमेरिका मेरिल लिंच में वित्तीय सलाहकार हैं। पच्चीस साल के ब्रोकर की कहानी खाकपति से लखपति बनने की है। तीन साल में उन्होंने 3.8 करोड़ डालर कमाए जिसमें 50 लाख डालर की सेवानिवृत्ति बचत योजना भी शामिल है। इनके अलावा और भी कई नाम है, जो इस सूची में शामिल किए गए हैं। यह भारत के लिए गर्व की बात है कि हमारे युवा पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा रहे हैं और देश का नाम रोशन कर रहे हैं।
इनकी उपलब्धियां देखकर खुशी होती हैं, मगर वहीं जब कभी दिल्ली की भीड़-भाड़ वाले रास्तों पर जाती हूं और कोई चार-पांच साल का बच्चा आकर अपने हाथ फैलाता है, तो उसे देखकर यह खुशी पलभर में काफूर  हो जाती है। लगता है कि क्या इनके कुछ सपने नहीं हैं। जब कभी उन्हें बारीकी से देखती हूं, तो उनकी आंखों में भी कुछ हिलता हुआ दिखता है, कुछ सपने नजर आते हैं, जो अपने सच होने के लिए एक अदद जमीन तलाश रहे होते हैं। मगर वह जमीन कहीं दिखती नहीं हैं, न नजर आता है वो रास्ता जिस पर चलकर वे अपने सपने पूरे करें। इस कड़कड़ाती ठंड में फुटपाथ पर एक पतला सा कंबल ओढ़े युवा भी नजर आते हैं, जिनके भी कुछ सपने हैं। शायद इतने बड़े नहीं, बस दो रोटी कमाने का सपना। एक छोटी सी झुग्गी का सपना, जहां वे ठंड से बच सकें। मगर उन्हें वो भी नसीब नहीं। आखिर कब पूरे होंगे उनके सपने इसका कोई जवाब कोई फोर्ब्स सूची हमें नहीं देती, कोई रिपोर्ट नहीं देती।

Monday 10 October 2011

जाने वो कौन सा देश..





अजीब सी मिठास लिए हुए एक आवाज आज हमेशा के लिए खामोश हो गई और अपने पीछे छोड़ गई अपने प्रशंसकों और श्रोताओं की एक लंबी फौज। ऐसी फौज जो सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ जगजीत को सुनना चाहती थी। जिसके लिए जगजीत की गजलें दवा का काम करती थी। वे हर परेशानी से बाहर निकलने के लिए जगजीत थेरेपी का इस्तेमाल करते थे। पर अफसोस यह रहा कि यह थेरेपी खुद जगजीत जी के ऊपर काम आई। ब्रेन हैमरेज के झटके ने आखिर उन्हें हमेशा के लिए खामोश कर दिया। एक बात जो उनके प्रशंसको को और परेशान करती है वह यह है कि दूसरों के दर्द से रिश्ता बनानेोले जगजीत सिंह का खुद दर्द से बहुत ही गहरा रिश्ता था। अब ये बात समझने वाली है कि उनके श्रोता जगजीत सिंह की आवाज में अपना दर्द ढूढ़ते थे या फिर वे जगजीत जी का दर्द बांटते थे। पर फिलहाल जगजीत इन सबसे परे थे। वे गजल को साधना की तरह लेते थे और उनकी गायकी में जो मिठास थी। वह उनकी स्वभाव में भी झलकता था।
8 फरवरी 1941 को गंगानगर राजस्थान में जन्में जगजीत का बचपन का जीत था। अपने नाम के अनुरूप उन्होंने करोड़ो लोगों का दिल अपनी गायकी से जीत लिया और आगे आने वाले समय में लोगों के दिलों पर राज करते रहेंगे। उनके पिता सरदार अमर सिंह धमानी मूलत: पंजाब के रहने वाले थे। अभी दो महीने पहले सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम में जगजीत सिंह अपनी गजलठुकराओ अब तो प्यार करो में बदलाव करते हुए गा रहे थे। ठुकराओ अब तो प्यार करो मैं सत्तर का हूं।ज् उनकी इच्छा थी कि सत्तर वर्ष के हो जाने पर वो देश भर में सत्तर लाइव कंसर्ट करेंगे। लेकिन उनकी यह इच्छा अधूरी रह गई। इसका मलाल हम जसे जगजीत प्रेमियों के लिए भारी पड़ रहा है।
कहा जाता है कि हर कलाकार अपनी किसी कृति में अपने आपको रखता है। मुङो जगजीत की सबसे प्यारी गजल लगती हैहोठों से छू लो तुमज्। उसमें एक लाइन हैजग ने छीना मुझसे, मुङो जो भी लगा प्यारा, सब जीत लिये मुझसे, मैं हरदम ही हाराज्। लगता है जगजीत ने ये लाइने अपने लिए ही गाई थी। जिंदगी में हर समय उन्हें हार मिलती रही। जुलाई 1990 में उन्होंने अपने बेटे को खो दिया था, जिसके बाद बहुत दिनों तक वे गजल गायकी से दूर रहें पर जब वापसी की तो श्रोताओं ने फिर से इस जादुई आवाज को सराहा। 2009 में उनकी और चित्रा जी कि पुत्री (चित्रा जी के र्पूोिह से) ने आत्महत्या कर ली। एक अनचाहे दुख ने फिर उन्हें घेर लिया, मगर उनकी गायकी में इसकी बानगी तक नजर नहीं आई। जगजीत सिंह की गजलों ने हमें भरपूर आनंद और सुख दिया, किसी को उनकी आवाज में जश्न नजर आया, तो किसी को प्यार। मगर इस गजल सम्राट की जिंदगी में कितना दु: है, इसे श्रोता नहीं समझ पाते थे। आज वो हमारे बीच नहीं हैं, तो उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए मैं सिर्फ यही कह सकती हूं कितुम्हें कर सके सलाम, है दिल में रह गई बात, जल्दी से छुड़ाकर हाथ, कहां तुम चले गए...'