Monday 10 October 2011

जाने वो कौन सा देश..





अजीब सी मिठास लिए हुए एक आवाज आज हमेशा के लिए खामोश हो गई और अपने पीछे छोड़ गई अपने प्रशंसकों और श्रोताओं की एक लंबी फौज। ऐसी फौज जो सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ जगजीत को सुनना चाहती थी। जिसके लिए जगजीत की गजलें दवा का काम करती थी। वे हर परेशानी से बाहर निकलने के लिए जगजीत थेरेपी का इस्तेमाल करते थे। पर अफसोस यह रहा कि यह थेरेपी खुद जगजीत जी के ऊपर काम आई। ब्रेन हैमरेज के झटके ने आखिर उन्हें हमेशा के लिए खामोश कर दिया। एक बात जो उनके प्रशंसको को और परेशान करती है वह यह है कि दूसरों के दर्द से रिश्ता बनानेोले जगजीत सिंह का खुद दर्द से बहुत ही गहरा रिश्ता था। अब ये बात समझने वाली है कि उनके श्रोता जगजीत सिंह की आवाज में अपना दर्द ढूढ़ते थे या फिर वे जगजीत जी का दर्द बांटते थे। पर फिलहाल जगजीत इन सबसे परे थे। वे गजल को साधना की तरह लेते थे और उनकी गायकी में जो मिठास थी। वह उनकी स्वभाव में भी झलकता था।
8 फरवरी 1941 को गंगानगर राजस्थान में जन्में जगजीत का बचपन का जीत था। अपने नाम के अनुरूप उन्होंने करोड़ो लोगों का दिल अपनी गायकी से जीत लिया और आगे आने वाले समय में लोगों के दिलों पर राज करते रहेंगे। उनके पिता सरदार अमर सिंह धमानी मूलत: पंजाब के रहने वाले थे। अभी दो महीने पहले सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम में जगजीत सिंह अपनी गजलठुकराओ अब तो प्यार करो में बदलाव करते हुए गा रहे थे। ठुकराओ अब तो प्यार करो मैं सत्तर का हूं।ज् उनकी इच्छा थी कि सत्तर वर्ष के हो जाने पर वो देश भर में सत्तर लाइव कंसर्ट करेंगे। लेकिन उनकी यह इच्छा अधूरी रह गई। इसका मलाल हम जसे जगजीत प्रेमियों के लिए भारी पड़ रहा है।
कहा जाता है कि हर कलाकार अपनी किसी कृति में अपने आपको रखता है। मुङो जगजीत की सबसे प्यारी गजल लगती हैहोठों से छू लो तुमज्। उसमें एक लाइन हैजग ने छीना मुझसे, मुङो जो भी लगा प्यारा, सब जीत लिये मुझसे, मैं हरदम ही हाराज्। लगता है जगजीत ने ये लाइने अपने लिए ही गाई थी। जिंदगी में हर समय उन्हें हार मिलती रही। जुलाई 1990 में उन्होंने अपने बेटे को खो दिया था, जिसके बाद बहुत दिनों तक वे गजल गायकी से दूर रहें पर जब वापसी की तो श्रोताओं ने फिर से इस जादुई आवाज को सराहा। 2009 में उनकी और चित्रा जी कि पुत्री (चित्रा जी के र्पूोिह से) ने आत्महत्या कर ली। एक अनचाहे दुख ने फिर उन्हें घेर लिया, मगर उनकी गायकी में इसकी बानगी तक नजर नहीं आई। जगजीत सिंह की गजलों ने हमें भरपूर आनंद और सुख दिया, किसी को उनकी आवाज में जश्न नजर आया, तो किसी को प्यार। मगर इस गजल सम्राट की जिंदगी में कितना दु: है, इसे श्रोता नहीं समझ पाते थे। आज वो हमारे बीच नहीं हैं, तो उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए मैं सिर्फ यही कह सकती हूं कितुम्हें कर सके सलाम, है दिल में रह गई बात, जल्दी से छुड़ाकर हाथ, कहां तुम चले गए...'