Sunday 8 September 2013

नहीं भूलतीं वो आंखें

दोस्तों करीब एक साल होने को हैं, जब आपसे वादा किया था रिश्तों के छलावे से भरी हुईं कुछ सच्ची कहानियां आपसे बांटने का। कुछ ऐसी कहानियां जो मुझे मिलीं उन लोगों के बीच, जिन्हें हमारा तथाकथित सभ्य समाज पागल करार देता है। पांच साल पहले पढ़ाई पूरी करने के बाद इंटर्नशिप के दौरान ऐसी महिलाओं से मुलाकात का मौका मिला। उन्हें काउंसिल के जरिए समझने का मौका मिला। ये मौका था ग्वालियर मानसिक आरोग्यशाला से लगे हॉफ वे होम में रह रही महिलाओं के साथ बिताए 15 दिनों का। वह 15 दिन मेरे लिए अनमोल थे। हम चारों  सहेलियों को इंतजार रहता था, रोज सुबह होने का। जब हॉफ वे होम की गाड़ी हमें लेने आती थी और हम उन 15-16 महिलाओं के बीच दो घंटे का समय बिताते थे। उनसे बातें करना। उन्हें समझने का प्रयास करते थे। इस दौरान कुछ ऐसे किस्से मिले, जिन्हें सुनकर रोंगटे खड़े हो गए। रिश्तों के छलावे से भरी थीं इनकी कहानियां। ये पागल नहीं थी, लेकिन इनके विश्वसनीय रिश्तों ने इसे यहां तक पहुंचा दिया था। हॉफ वे होम ऐसी जगह है, जहां पर मानसिक आरोग्य शाला में आई ऐसी महिलाओं को रखा जाता है, जिन्हें और ईलाज की जरूरत नहीं होती। बस उन्हें जरूरत होती है अपनेपन की। दोस्तो दो कहानियां उस समय  मैंने आपके सामने रखी थीं। आज उसकी तीसरी कड़ी पेश कर रही हूं :

नहीं भूलतीं वो आंखें
कभी भी सामान को उठाकर फेंक देती। कभी किसी पर भी चिल्ला पड़ती। कोई कुछ कहता तो गुस्सा हो  जाती और कभी बहुत प्यार से पेश आती। अजीब थी वह भी। मांग भर सिंदूर, दो चोटियां, हाथों में लाल-हरी चूड़ियां और माथे पर लाल बिंदी यह इंगित करती थी कि वह सुहागिन है। जब पहली बार उसे देखा, तो उसकी आंखों में गुस्सा दिखा। जब उससे मिली, तो उसने नमस्ते तो किया, लेकिन उसकी आंखें जैसे कह रही हों कि  क्यों  आई हो यहां? क्या करने आई हो? अब तुम भी हमें समझाओगी? न जाने कितने सवालों से भरी थी उसकी आंखें और उन आंखों में था गुस्सा? शायद हमें देखकर या फिर समाज के लिए या फिर उसके साथ घटी घटना को लेकर। पहली बार में उसे समझ पाना बहुत मुश्किल था।
सपना यही कहते थे सब उसे वहां। अगले दिन जब मैं वहां पहुंची, तो सपना अपने कमरे में थी। मेरी सहेली स्मिता ने उसे अपने पास बुलाया, तो  नहीं आई। थोड़ी देर में वहां की वार्डन आईं और सपना को हमारे पास ले आईं। उस समय सपना हमें खा जाने वाली आंखों से घूर रही थी। हमें थोड़ा डर  तो लगा, लेकिन हिम्मत की और शुरू हुआ सपना से बातों का सिलसिला। दो-तीन दिन बीत जाने पर वह हमसे घुल-मिल गई। धीरे-धीरे खुल गई, लेकिन उसका गुस्सा बरकरार था। एक दिन सुबह जब हम सब वहां पहुंचे, तो सपना नहीं दिखाई दी, पता चला वह अपने कमरे में है। उसने कमरा अंदर से बंद कर रखा था। मैंने आवाज दी सपना दरवाजा खोलो, अंदर से कोई जवाब न आया। दो-तीन आवाजें देने के बाद एक चीख आई, चले जाओ यहां से। नहीं खोलूंगी। प्यार से उसे बुलाया, कहा देखो तुम्हारे लिए चूड़ियां लाई हूं। उसे चूड़ियों से लगाव था। थोड़ी देर में दरवाजा खुला और उसने पूछा कहां है चूड़ियां। चूड़ियां न देख उसे और गुस्सा आया और उसने सामान उठा कर फेंकना शुरू कर दिया। किसी तरह बचते हुए उसे समझा रहे थे हम। थोड़ी देर में वह समझ गई और बाहर आ गई। सपना तो सामान्य हो गई, लेकिन मेरे मन में सवाल गूंज रहा था आखिर क्यों उसे इतना गुस्सा आता है? क्यों जरा-जरा सी बात में मासूम सी दिखने वाली यह लड़की इतना बिगड़ जाती है? इन सवालों ने  रात भर सोने न दिया। अगले दिन जब वहां  पहुंची, तो सपना ठीक थी। उसने हमें नमस्ते किया। हमने उससे बातें जारी रखीं, वो जो कहती वह हम करते। वह कहती खेलना है, तो खेलते, वह कहती डांस करना है, तो डांस करते। उसके साथ गाते-गुनगुनाते, उसकी बातें सुनते। अब वह हमसे खुल चुकी थी और सामने आई उसकी दास्तान।
सपना एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थी। उसके पिता ने उसकी शादी पड़ोस के गांव में कर दी। शादी के वक्त बहुत खुश थी वह। उसका पति उसे अच्छे-अच्छे तोहफे लाता और उसकी मन-पसंद चूड़ियां भी। उसे चूड़ियों से खासा लगाव जो था। लेकिन शादी के दो-तीन साल होने पर सब कुछ बिगड़ने लगा। उसका पति उसे मारता, ससुराल वाले भी न जीने देते। नौकरानी बनकर रह गई थी वह। खूब मारते उसे और भरपेट खाना भी न देते। उसे गालियां देते, मारपीट करते। एक दिन तो हद ही हो गई ससुराल वालों से उसे किसी और को बेच दिया। सपना को पता भी न चला। उसे तो तब पता चला, जब रात में कोई और उसके पास आया। वह चीख पड़ी, गुस्से में उसने उस आदमी के सिर पर लौटा मार दिया और भाग गई वहां से। ससुराल वालों ने उसे बहुत मारा और उसे पागल करार दे दिया। सपना उनके सामने रोती रही, गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उन्होंने उसकी एक न सुनी। अपनी कहानी बताते-बताते सपना फफक पड़ी। एक बार फिर मैंने उसकी आंखों में गुस्सा देखा समाज के लिए? उसने कहा क्यों दीदी क्यों किया मेरे आदमी ने ऐसा? ब्याह कर लाया था मुझे, फिर काहे कर दिया दूसरे के हवाले। क्या जवाब देती मैं उसकी बातों का। चुप हो गई मैं। आज पांच साल हो गए उससे मिले, आज वह कहां है, उसे उसका परिवार लेने आया या नहीं। मुझे नहीं पता। लेकिन आज भी उसकी  आंखें सवाल करती  हैं मुझसे?  समाज से आखिर क्या गलती थी उसकी? किस बात की सजा मिली उसे? शादी करने की या फिर पति को परमेश्वर और ससुराल को मंदिर मानने की।

Wednesday 21 August 2013

मिली जिंदगी को नई राह


कितना अजीब है न सब कुछ। एकदम उम्मीद के विपरीत। जिंदगी में कभी-कभी ऐसे मोड़ भी आते हैं, पता ही न था अब तक। जो सोचा वह न हुआ और जिसकी कल्पना भी न की थी सपनों में, वह हकीकत बन सामने खड़ा है। कैसे एक पल में बदल जाती है न जिंदगी। उम्मीदें टूट जाती हैं और कई बार मन घिर जाता है आशंकाओं से। कितना डर लगता है न इस समय। जब कभी कमरे में अकेली होती हूं, तो एक अनजाने डर से कांप जाती है मेरी रूह। छुरहरी सी दौड़ जाती है अंग में। क्यों होता है ऐसा?आखिर क्यों?  ऐसा ही कुछ चल रहा था सीमा के मन में। हरिद्वार में गंगा के घाट पर खड़ी थी वह। दूर एकांत में बना यह घाट उसे बहुत सुकून देता है। कल-कल करती गंगा की लहरों में खो जाती है। अब से नहीं तबसे उसे यहां मिलती है शांति, जब वह हरिद्वार में रहकर अपनी पढ़ाई कर रही थी। उस दौरान भी जब उसका मन घबराता था, तो भागकर आ जाती थी वह यहां और खो जाती थी गंगा की लहरों में। मिल जाता था उसे यहां अपने हर सवाल का  जवाब।
आज फिर चार साल बाद सीमा उसी घाट पर एक पत्थर पर बैठी गंगा की लहरों  को  देख रही थी एकटक।  लेकिन आज उसके मन को यह लहरें सुकून नहीं दे रही थीं। आई तो इसीलिए है वह यहां कि उसकी जिंदगी की उथल-पुथल शायद शांत हो जाए और पढ़ाई के दौरान जैसे उसे यहां  सब हल मिल जाते थे, शायद जिंदगी के इस सवाल का जवाब भी यहीं कहीं छुपा हो। लेकिन आज न जाने क्यों उसे नहीं मिल रहे थे अपने सवालों के जवाब। शायद वह जिंदगी के उस पड़ाव पर है, जहां से आगे जाने का रास्ता ही नहीं मिल रहा है उसे। बहुत बड़ा सवाल है उसके सामने। उसकी पूरी जिंदगी का सवाल। एक ऐसा सवाल, जो तय करेगा उसके भविष्य को। किंतु-परंतु में उलझ गई है वह। किसे सच माने और किसे नकार दे, तय नहीं कर पा रही है वह। आखिर क्या है सच। जो दिख रहा है  या फिर जो वह महसूस कर रही है। जो उसका दिल कह रहा है वह या फिर जो उसका दिमाग समझ रहा है वह। गंगा की लहरों को अपलक देखते हुए सीमा यही सब सोचे जा रही थी।
अचानक गंगा की उठती लहरों पर उसकी नजर पड़ी। ऊफान पर उठती लहरें और फिर एकदम से शांत होता पानी। उसे लगा उससे कुछ कह रही हैं यह लहरें। सीमा उठकर किनारे तक गई और गौर से देखने लगी उन लहरों को। उठती और शांत होती लहरों के बीच खड़ी थी सीमा। अपने चारों ओर बहते साफ-निर्मल पानी को देख सहसा उसे लगा कि अरे यही तो यह उसका हल। जीवन है यह, जहां चारों ओर पानी है और बीच में हम खड़े हैं। इन उठती लहरों की तरह आते हैं बवंडर जीवन में, लेकिन अगर  हम डटे अपने पथ पर, तो थोड़े ही पल में शांत हो जाते हैं यह बवंडर, बिल्कुल इन उत्ताल लहरों की तरह। और फिर छा जाती है शांति, बहने लगती है जिंदगी की बयार, बिल्कुल इस शांत-निर्मल जल की तरह। तो फिर क्यों उदास है सीमा? उसकी अंतर्मन से निकली आवाज। सीमा आज फिर गंगा ने तुमको दे दिया है तुम्हारे सवालों का जवाब। उठो और डटी रहो। अब मत रो, मत परेशान हो। जो भी चाहती हो, मिलेगा तुम्हें वह। फिर होगा तुम्हारा जीवन निर्मल-शांत। फिर होंगी खुशियां, बस न खोना अपना विश्वास। सीमा ने एक बार फिर गंगा को नमन किया और चल पड़ी अपने पथ की ओर, जहां उसका जीवन मुस्कुराकर उसका स्वागत कर रहा था।

Sunday 3 March 2013

फिर होगा हसीन साथ...

आज बेहद अकेलापन महसूस हो रहा है..... बेहद घुटन लग रही है। गला सूख रहा है। हड़बड़ाकर मैं उठकर बैठ जाती हूं। नहा जाती हूं पसीने में..... कितना भयानक सपना था। ऐसे लगा कि कोई गहरे कुंए में धक्का दे रहा है। मेरा सब कुछ मुझसे छीन लिया जा रहा है.... चौंक कर देखती हूं मैं आस-पास।  अरे वो नहीं है यहां। कहां गया वह? पुकारती हूं मैं उसे बार-बार, लेकिन मेरी आवाज दीवारों से टकराकर वापस आ जाती है। नहीं सुनाई पड़ती है उसे मेरी पुकार। मैं चीख उठती हूं। धड़क रहा है दिल जोर-जोर से। डर लग रहा है कि कहीं वह सच में तो नहीं चला गया मुझसे बेहद दूर। बहुत दूर। नहीं.... नहीं.... नहीं..... ऐसा नहीं हो सकता। वह नहीं जा सकता मुझसे दूर। कभी नहीं.............। आखिर वही तो है, जिसने मुझे मेरे होने का अहसास कराया। जिसने मुझे उबारा गम के साये से। फिर कैसे दे सकता है वह मुझे गम....कैसे........ नहीं ऐसा नहीं होगा............नहीं होगा कुछ भी......... मैं नहीं होने दूंगी ऐसा........ उसे अपने से दूर कभी नहीं.......। नहीं जा सकता वह मुझसे दूर..... कैसे जा सकता है भला बताओ....। हां वह नाराज  जरूर है मुझसे, लेकिन अब खत्म हो जाएगी उसकी यह नाराजगी.......... बिल्कुल खत्म। रूठ गया है वह कुछ दिन के लिए...... तो मना लूंगी मैं उसे....। आखिर वह मेरा ही तो है........ और फिर रिश्ते इतने खोखले नहीं होते कि जरा सा हवा का झोंका उन्हें तोड़ दे....... नहीं टूटते इतने जल्दी रिश्ते.....हां नहीं टूटते। आंधियां सही हैं हमने........फिर ये तो झौंका है हवा का, गुजर जाएगा यह भी और हम फिर मिलेंगे...........बिल्कुल मिलेंगे...... उम्मीद है मुझे और विश्वास भी खुद पर, अपने प्यार पर और हां उस पर......।
सीमा ने यह शब्द अपनी डायरी में लिखे और डायरी बंद कर दी। कुछ देर सोचती रही और फिर टेबल लैंप बंद किया और बिस्तर पर आकर लेट गई। सोने की कोशिश कर रही थी सीमा, लेकिन नींद...  आंखों से कोसों दूर थी। आज आये सपने ने उसे हिला दिया था। भीतर तक हिल गई थी सीमा..... मन हिचोलें ले रहा था। सीमा की आंखों के सामने घूमने लगा उसका और उज्जवल का साथ... कितना हसीन समय उन्होंने साथ गुजारा था। पूरे दो सालों से साथ थे वह... दो साल। सीमा को याद नहीं कि इन दो सालों में कभी भी उसे ऐसा महसूस हुआ हो कि उज्जवल उससे प्यार नहीं करता......... कभी भी उनके बीच मन-मुटाव हुआ हो ऐसा कुछ भी तो उसे याद नहीं आ रहा था। उसे याद आ रहा था, तो बस उसका और उज्जवल का साथ। वह साथ जिसमें सिर्फ खुशियां थीं...।  लेकिन आज वह अकेली है कमरे में... उज्जवल पता नहीं कहां चला गया...।
उसे याद आया कि कितना ख्याल रखता था उसका उज्जवल। जब वह बीमार हुई थी, तो कई दिनों तक वह सोया नहीं था। कितना ख्याल करता था उसका। हर पल उसे केवल उसकी ही चिंता रहती थी............ उसने दवाई खाई या नहीं, खाना खाया या नहीं। सीमा को क्या जरूरत है........ हर पल बस वह उसके बारे में ही सोचता था। ऑफिस से छुट्टी लेकर उसके साथ रहता था। जब वह थोड़ी ठीक हुई, तो उसने उज्जवल से फिर से ऑफिस जाने को कहा, उसने उसकी बात मान ली, लेकिन ऑफिस जाकर भी उसका मन कहां लगा। दिन में 50 फोन करता। हर 10 मिनट पर बात होती... और वह शाम को जल्दी घर आ जाता। सीमा को कभी-कभी लगता कि अगर उसे कुछ हो गया... तो... तो... क्या उज्जवल अपने आपको संभाल पाएगा? कैसे रहेगा वह उसके बिना...सीमा सोचती। और उज्जवल से जब भी इस बारे में बात करती... तो उसके चेहरे का दर्द देख नहीं पाती...। सीमा ने अपना ध्यान रखना शुरू कर दिया ताकि उज्जवल खुश रहे और कुछ महीनों के इलाज के बाद सीमा अच्छी हो गई...। सीमा को याद है, जिस दिन डॉक्टर ने कहा था कि सीमा अब तुम अच्छी हो... तुमने बहुत जल्दी रिकवर किया है, अब तुम्हें दवाई की जरूरत नहीं ... तो उससे ज्यादा खुश उज्जवल हुआ था। चहक उठा था वह, सीमा ने महसूस की थी उसकी खुशी और... उस दिन तो उज्जवल ने एक पार्टी दे डाली थी सबको...। सीमा हैरान थी उसकी बातों पर...उसे उज्जवल पर बहुत प्यार आ रहा था। सीमा के ठीक होते ही वह और उज्जवल गये थे शिमला घूमने। शिमला में तो उज्जवल ने हद ही कर दी थी... सीमा को बांहों में उठाकर पहाड़ पर चढ़ जाता.. सीमा कहती थक जाओगे, मैं चल लूंगी... लेकिन वह कहां मानने वाला था। दो सालों का सफर सीमा की आंखों के सामने चलचित्र की भांति चल रहा था।
तभी सीमा ने करवट बदली... टेबल पर उसकी और उज्जवल की तस्वीर फोटो फ्रेम में लगी थी... अचानक उसकी आंखों से आंसू बहने लगे...। वह सोच रही थी, उसे इतना प्यार करने वाला उज्जवल अचानक कहां चला गया... कहां चला गया वह... अचानक। सीमा को समझ ही नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है... और क्यों हो रहा है...। क्यों अचानक से उज्जवल ने उससे इतनी दूरी बना ली... क्यों?  खूब सोचती है... खूब मन को समझाती है कि जो दिख रहा है... वह सच है...लेकिन मन है कि मानने को तैयार ही नहीं है। हर बार एक ही जवाब मिलता है उसे... ऐसा नहीं हो सकता............। उसका उज्जवल कहीं नहीं जा सकता... कभी नहीं...। यही सोचते हुए सीमा की आंख लग गई। सुबह जब वह उठी, तो उसे काफी हल्का महसूस हो रहा था... उसे उसके सवालों का हल मिल गया था... उसे समझ में आ रहा था कि यह सिर्फ एक हवा का झोंका है और झोंके निकल जाते हैं... उज्जवल सिर्फ उसका है...       यही विश्वास फिर से उसे और उज्ज्वल को एक करेगा। सीमा ने घड़ी पर नजर डाली, तो दस बज चुके थे... वह जल्दी-जल्दी तैयार हुई और ऑफिस को निकल पड़ी... आज उसकी चाल बोझिल नहीं थी... बल्कि उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी....................

Monday 25 February 2013

आज बेहद अकेलापन महसूस हो रहा है....

आज बेहद अकेलापन महसूस हो रहा है..... बेहद घुटन लग रही है। गला सूख रहा है। हड़बड़ाकर मैं उठकर बैठ जाती हूं। नहा जाती हूं पसीने में..... कितना भयानक सपना था। ऐसे लगा कि कोई गहरे कुंए में धक्का दे रहा है। मेरा सब कुछ मुझसे छीन लिया जा रहा है.... चौंक कर देखती हूं मैं आस-पास।  अरे वो नहीं है यहां। कहां गया वह? पुकारती हूं मैं उसे बार-बार, लेकिन मेरी आवाज दीवारों से टकराकर वापस आ जाती है। नहीं सुनाई पड़ती है उसे मेरी पुकार। मैं चीख उठती हूं। धड़क रहा है दिल जोर-जोर से। डर लग रहा है कि कहीं वह सच में तो नहीं चला गया मुझसे बेहद दूर। बहुत दूर। नहीं.... नहीं.... नहीं..... ऐसा नहीं हो सकता। वह नहीं जा सकता मुझसे दूर। कभी नहीं.............। आखिर वही तो है, जिसने मुझे मेरे होने का अहसास कराया। जिसने मुझे उबारा गम के साये से। फिर कैसे दे सकता है वह मुझे गम....कैसे........ नहीं ऐसा नहीं होगा............नहीं होगा कुछ भी......... मैं नहीं होने दूंगी ऐसा........ उसे अपने से दूर कभी नहीं.......। नहीं जा सकता वह मुझसे दूर..... कैसे जा सकता है भला बताओ....। हां वह नाराज  जरूर है मुझसे, लेकिन अब खत्म हो जाएगी उसकी यह नाराजगी.......... बिल्कुल खत्म। रूठ गया है वह कुछ दिन के लिए...... तो मना लूंगी मैं उसे....। आखिर वह मेरा ही तो है........ और फिर रिश्ते इतने खोखले नहीं होते कि जरा सा हवा का झोंका उन्हें तोड़ दे....... नहीं टूटते इतने जल्दी रिश्ते.....हां नहीं टूटते। आंधियां सही हैं हमने........फिर ये तो झौंका है हवा का, गुजर जाएगा यह भी और हम फिर मिलेंगे...........बिल्कुल मिलेंगे...... उम्मीद है मुझे और विश्वास भी खुद पर, अपने प्यार पर और हां उस पर......।
(मेरी एक कहानी का अंश)

Sunday 24 February 2013

इन दूरियों को मिटा दो



मिटा दो अब इन दूरियों को तुम। चले आओ वापस। बस आ जाओ अब। बहुत कर ली तुमने अपने मन की। अब तो लौट आओ। जानते हो, तुम्हारे बिना कैसे बीतता है दिन। इतनी भी क्या नाराजगी है तुम्हें? याद है कितने खुश थे हम। माना कुछ गलतियां हुईं मुझसे। मानती हूं अपनी गलती। पर माफी तो खुदा भी देता है, तो क्या तुम नहीं कर सकते मुझे माफ। कई बार तुमने समझाया मुझे, पर नहीं समझी मैं। लगता था मुझे कि कहां जाओगे तुम मुझे छोड़कर। लेकिन अब जब तुम नहीं हो, तो अहसास होता है कि तुम कितने अनमोल हो मेरे लिए। हीरे हो तुम। नहीं जी सकती तुम्हारे बिना। पता है तुम्हें कितनी रातें बीती हैं मेरी रोते हुए। नहीं थमे हैं आंसू जब से तुम गए हो दूर। नहीं मानता है ये दिल कि तुम दूर हो मुझसे। अब तो आ जाओ मेरे पास या फिर मुझे बुला लो, जहां भी तुम हो। कर रही हूं तुम्हारा इंतजार मैं। बस अब अंत कर दो मेरे इंतजार का। लौट आओ फिर मेरे पास। विश्वास दिलाती हूं अब नहीं करुंगी कोई गलती। आ जाओ बस अब लौट आओ। अब लौट भी आओ न...................