आज बेहद अकेलापन महसूस हो रहा है..... बेहद घुटन लग रही है। गला सूख रहा
है। हड़बड़ाकर मैं उठकर बैठ जाती हूं। नहा जाती हूं पसीने में..... कितना
भयानक सपना था। ऐसे लगा कि कोई गहरे कुंए में धक्का दे रहा है। मेरा सब कुछ
मुझसे छीन लिया जा रहा है.... चौंक कर देखती हूं मैं आस-पास। अरे वो नहीं
है यहां। कहां गया वह? पुकारती हूं मैं उसे बार-बार, लेकिन मेरी आवाज
दीवारों से टकराकर वापस आ जाती है। नहीं सुनाई पड़ती है उसे मेरी पुकार।
मैं चीख उठती हूं। धड़क रहा है दिल जोर-जोर से। डर लग रहा है कि कहीं वह सच
में तो नहीं चला गया मुझसे बेहद दूर। बहुत दूर। नहीं.... नहीं....
नहीं..... ऐसा नहीं हो सकता। वह नहीं जा सकता मुझसे दूर। कभी
नहीं.............। आखिर वही तो है, जिसने मुझे मेरे होने का अहसास कराया।
जिसने मुझे उबारा गम के साये से। फिर कैसे दे सकता है वह मुझे
गम....कैसे........ नहीं ऐसा नहीं होगा............नहीं होगा कुछ
भी......... मैं नहीं होने दूंगी ऐसा........ उसे अपने से दूर कभी
नहीं.......। नहीं जा सकता वह मुझसे दूर..... कैसे जा सकता है भला
बताओ....। हां वह नाराज जरूर है मुझसे, लेकिन अब खत्म हो जाएगी उसकी यह
नाराजगी.......... बिल्कुल खत्म। रूठ गया है वह कुछ दिन के लिए...... तो
मना लूंगी मैं उसे....। आखिर वह मेरा ही तो है........ और फिर रिश्ते इतने
खोखले नहीं होते कि जरा सा हवा का झोंका उन्हें तोड़ दे....... नहीं टूटते
इतने जल्दी रिश्ते.....हां नहीं टूटते। आंधियां सही हैं हमने........फिर ये
तो झौंका है हवा का, गुजर जाएगा यह भी और हम फिर
मिलेंगे...........बिल्कुल मिलेंगे...... उम्मीद है मुझे और विश्वास भी खुद
पर, अपने प्यार पर और हां उस पर......।
सीमा ने यह शब्द अपनी डायरी में लिखे और डायरी बंद कर दी। कुछ देर सोचती रही और फिर टेबल लैंप बंद किया और बिस्तर पर आकर लेट गई। सोने की कोशिश कर रही थी सीमा, लेकिन नींद... आंखों से कोसों दूर थी। आज आये सपने ने उसे हिला दिया था। भीतर तक हिल गई थी सीमा..... मन हिचोलें ले रहा था। सीमा की आंखों के सामने घूमने लगा उसका और उज्जवल का साथ... कितना हसीन समय उन्होंने साथ गुजारा था। पूरे दो सालों से साथ थे वह... दो साल। सीमा को याद नहीं कि इन दो सालों में कभी भी उसे ऐसा महसूस हुआ हो कि उज्जवल उससे प्यार नहीं करता......... कभी भी उनके बीच मन-मुटाव हुआ हो ऐसा कुछ भी तो उसे याद नहीं आ रहा था। उसे याद आ रहा था, तो बस उसका और उज्जवल का साथ। वह साथ जिसमें सिर्फ खुशियां थीं...। लेकिन आज वह अकेली है कमरे में... उज्जवल पता नहीं कहां चला गया...।
उसे याद आया कि कितना ख्याल रखता था उसका उज्जवल। जब वह बीमार हुई थी, तो कई दिनों तक वह सोया नहीं था। कितना ख्याल करता था उसका। हर पल उसे केवल उसकी ही चिंता रहती थी............ उसने दवाई खाई या नहीं, खाना खाया या नहीं। सीमा को क्या जरूरत है........ हर पल बस वह उसके बारे में ही सोचता था। ऑफिस से छुट्टी लेकर उसके साथ रहता था। जब वह थोड़ी ठीक हुई, तो उसने उज्जवल से फिर से ऑफिस जाने को कहा, उसने उसकी बात मान ली, लेकिन ऑफिस जाकर भी उसका मन कहां लगा। दिन में 50 फोन करता। हर 10 मिनट पर बात होती... और वह शाम को जल्दी घर आ जाता। सीमा को कभी-कभी लगता कि अगर उसे कुछ हो गया... तो... तो... क्या उज्जवल अपने आपको संभाल पाएगा? कैसे रहेगा वह उसके बिना...सीमा सोचती। और उज्जवल से जब भी इस बारे में बात करती... तो उसके चेहरे का दर्द देख नहीं पाती...। सीमा ने अपना ध्यान रखना शुरू कर दिया ताकि उज्जवल खुश रहे और कुछ महीनों के इलाज के बाद सीमा अच्छी हो गई...। सीमा को याद है, जिस दिन डॉक्टर ने कहा था कि सीमा अब तुम अच्छी हो... तुमने बहुत जल्दी रिकवर किया है, अब तुम्हें दवाई की जरूरत नहीं ... तो उससे ज्यादा खुश उज्जवल हुआ था। चहक उठा था वह, सीमा ने महसूस की थी उसकी खुशी और... उस दिन तो उज्जवल ने एक पार्टी दे डाली थी सबको...। सीमा हैरान थी उसकी बातों पर...उसे उज्जवल पर बहुत प्यार आ रहा था। सीमा के ठीक होते ही वह और उज्जवल गये थे शिमला घूमने। शिमला में तो उज्जवल ने हद ही कर दी थी... सीमा को बांहों में उठाकर पहाड़ पर चढ़ जाता.. सीमा कहती थक जाओगे, मैं चल लूंगी... लेकिन वह कहां मानने वाला था। दो सालों का सफर सीमा की आंखों के सामने चलचित्र की भांति चल रहा था।
तभी सीमा ने करवट बदली... टेबल पर उसकी और उज्जवल की तस्वीर फोटो फ्रेम में लगी थी... अचानक उसकी आंखों से आंसू बहने लगे...। वह सोच रही थी, उसे इतना प्यार करने वाला उज्जवल अचानक कहां चला गया... कहां चला गया वह... अचानक। सीमा को समझ ही नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है... और क्यों हो रहा है...। क्यों अचानक से उज्जवल ने उससे इतनी दूरी बना ली... क्यों? खूब सोचती है... खूब मन को समझाती है कि जो दिख रहा है... वह सच है...लेकिन मन है कि मानने को तैयार ही नहीं है। हर बार एक ही जवाब मिलता है उसे... ऐसा नहीं हो सकता............। उसका उज्जवल कहीं नहीं जा सकता... कभी नहीं...। यही सोचते हुए सीमा की आंख लग गई। सुबह जब वह उठी, तो उसे काफी हल्का महसूस हो रहा था... उसे उसके सवालों का हल मिल गया था... उसे समझ में आ रहा था कि यह सिर्फ एक हवा का झोंका है और झोंके निकल जाते हैं... उज्जवल सिर्फ उसका है... यही विश्वास फिर से उसे और उज्ज्वल को एक करेगा। सीमा ने घड़ी पर नजर डाली, तो दस बज चुके थे... वह जल्दी-जल्दी तैयार हुई और ऑफिस को निकल पड़ी... आज उसकी चाल बोझिल नहीं थी... बल्कि उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी....................
सीमा ने यह शब्द अपनी डायरी में लिखे और डायरी बंद कर दी। कुछ देर सोचती रही और फिर टेबल लैंप बंद किया और बिस्तर पर आकर लेट गई। सोने की कोशिश कर रही थी सीमा, लेकिन नींद... आंखों से कोसों दूर थी। आज आये सपने ने उसे हिला दिया था। भीतर तक हिल गई थी सीमा..... मन हिचोलें ले रहा था। सीमा की आंखों के सामने घूमने लगा उसका और उज्जवल का साथ... कितना हसीन समय उन्होंने साथ गुजारा था। पूरे दो सालों से साथ थे वह... दो साल। सीमा को याद नहीं कि इन दो सालों में कभी भी उसे ऐसा महसूस हुआ हो कि उज्जवल उससे प्यार नहीं करता......... कभी भी उनके बीच मन-मुटाव हुआ हो ऐसा कुछ भी तो उसे याद नहीं आ रहा था। उसे याद आ रहा था, तो बस उसका और उज्जवल का साथ। वह साथ जिसमें सिर्फ खुशियां थीं...। लेकिन आज वह अकेली है कमरे में... उज्जवल पता नहीं कहां चला गया...।
उसे याद आया कि कितना ख्याल रखता था उसका उज्जवल। जब वह बीमार हुई थी, तो कई दिनों तक वह सोया नहीं था। कितना ख्याल करता था उसका। हर पल उसे केवल उसकी ही चिंता रहती थी............ उसने दवाई खाई या नहीं, खाना खाया या नहीं। सीमा को क्या जरूरत है........ हर पल बस वह उसके बारे में ही सोचता था। ऑफिस से छुट्टी लेकर उसके साथ रहता था। जब वह थोड़ी ठीक हुई, तो उसने उज्जवल से फिर से ऑफिस जाने को कहा, उसने उसकी बात मान ली, लेकिन ऑफिस जाकर भी उसका मन कहां लगा। दिन में 50 फोन करता। हर 10 मिनट पर बात होती... और वह शाम को जल्दी घर आ जाता। सीमा को कभी-कभी लगता कि अगर उसे कुछ हो गया... तो... तो... क्या उज्जवल अपने आपको संभाल पाएगा? कैसे रहेगा वह उसके बिना...सीमा सोचती। और उज्जवल से जब भी इस बारे में बात करती... तो उसके चेहरे का दर्द देख नहीं पाती...। सीमा ने अपना ध्यान रखना शुरू कर दिया ताकि उज्जवल खुश रहे और कुछ महीनों के इलाज के बाद सीमा अच्छी हो गई...। सीमा को याद है, जिस दिन डॉक्टर ने कहा था कि सीमा अब तुम अच्छी हो... तुमने बहुत जल्दी रिकवर किया है, अब तुम्हें दवाई की जरूरत नहीं ... तो उससे ज्यादा खुश उज्जवल हुआ था। चहक उठा था वह, सीमा ने महसूस की थी उसकी खुशी और... उस दिन तो उज्जवल ने एक पार्टी दे डाली थी सबको...। सीमा हैरान थी उसकी बातों पर...उसे उज्जवल पर बहुत प्यार आ रहा था। सीमा के ठीक होते ही वह और उज्जवल गये थे शिमला घूमने। शिमला में तो उज्जवल ने हद ही कर दी थी... सीमा को बांहों में उठाकर पहाड़ पर चढ़ जाता.. सीमा कहती थक जाओगे, मैं चल लूंगी... लेकिन वह कहां मानने वाला था। दो सालों का सफर सीमा की आंखों के सामने चलचित्र की भांति चल रहा था।
तभी सीमा ने करवट बदली... टेबल पर उसकी और उज्जवल की तस्वीर फोटो फ्रेम में लगी थी... अचानक उसकी आंखों से आंसू बहने लगे...। वह सोच रही थी, उसे इतना प्यार करने वाला उज्जवल अचानक कहां चला गया... कहां चला गया वह... अचानक। सीमा को समझ ही नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है... और क्यों हो रहा है...। क्यों अचानक से उज्जवल ने उससे इतनी दूरी बना ली... क्यों? खूब सोचती है... खूब मन को समझाती है कि जो दिख रहा है... वह सच है...लेकिन मन है कि मानने को तैयार ही नहीं है। हर बार एक ही जवाब मिलता है उसे... ऐसा नहीं हो सकता............। उसका उज्जवल कहीं नहीं जा सकता... कभी नहीं...। यही सोचते हुए सीमा की आंख लग गई। सुबह जब वह उठी, तो उसे काफी हल्का महसूस हो रहा था... उसे उसके सवालों का हल मिल गया था... उसे समझ में आ रहा था कि यह सिर्फ एक हवा का झोंका है और झोंके निकल जाते हैं... उज्जवल सिर्फ उसका है... यही विश्वास फिर से उसे और उज्ज्वल को एक करेगा। सीमा ने घड़ी पर नजर डाली, तो दस बज चुके थे... वह जल्दी-जल्दी तैयार हुई और ऑफिस को निकल पड़ी... आज उसकी चाल बोझिल नहीं थी... बल्कि उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी....................
बेहद सुन्दर कहानी है रितू जी हार्दिक बधाई स्वीकारें इस शानदार रचना हेतु.
ReplyDeleteshukriya arun ji
DeleteI like your about me description :)
ReplyDeletebatane se jaana kisi ne to jaana kya :)
thanks sonia
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