अंजानी ऋतु

Saturday, 24 April 2010

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Posted by Ritu Saxena at 04:42 No comments:
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  • प्रतिभा की दुनिया ...
    एवरेस्ट गर्ल मेघा परमार: ज़िद का जादू - कोई दिन, कोई लम्हा ज़िन्दगी का हासिल होता है। यूं महसूस होता है कि शायद इसी लम्हे की तो तलाश थी। कल ऐसा ही एक लम्हा हासिल हुआ। एवरेस्ट गर्ल मेघा परमार से ...
    3 days ago
  • मेरी भावनायें...
    जो गरजते हैं वे बरसते नहीं - कितनी आसानी से हम कहते हैं कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं ..." बिना बरसे ये बादल अपने मन में उमड़ते घुमड़ते भावों को लेकर आखिर कहां! किस हाल में हो...
    1 month ago
  • Kuch Kahna hai......
    पापा! क्या बेटा कहके बुलाओगे? - *माँ, तुम सुनो,* *पर सुनकर रूठ न जाना, * *और पापा तुम तो गौर से सुनो, * *वो दिन, दिल से भूल मत जाना, * *और भूलना कभी, तो मेरा नाम भूल जाना, * *नाम से...
    4 months ago
  • हिन्दुस्तान का दर्द
    Importir Kran Air di Indonesia: Panduan Memilih dan Membeli Kran Air Berkualitas Tinggi - Importir Kran Air di Indonesia: Panduan Memilih dan Membeli Kran Air Berkualitas Tinggi - Apakah Anda sedang mencari importir kran air di Indonesia? ...
    2 years ago
  • बोल कि लब आजाद हैं...
    क्या गहरे अंधेरे में चला गया है दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र? - शाहीन बाग की दादी ने टाइम मैगजीन में जगह बनाई है. वे दुनिया के सौ प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल हुई हैं. जनता के ताकत की यही सुंदरता है कि वह हारकर ...
    4 years ago
  • दरीचा
    कितना ज़रूरी है समाज में एक फ्रॉड का होना - हिंदी साहित्य के शलाका पुरुष राजेंद्र यादव ने एक दफा कहा था कि आनेवाला वक्त कहनियों का वक्त होगा. यह बात एक हद तक सच है. लेकिन यह बात भी सच है कि पिछले सत...
    6 years ago
  • कबाड़खाना
    मैं हंसते हंसते दम तोड़ देता अगर मुझे रोना न आता - अमित श्रीवास्तव की कविता - हेनरी रूसो की पेंटिंग 'हॉर्स अटैक्ड बाई अ जगुआर' अमित श्रीवास्तव की कविता की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह एक साथ अनेक परतों और आयामों पर काम करती जाती है - कई...
    6 years ago
  • पढ़ते-पढ़ते
    वेरा पावलोवा की दो कविताएँ - *"एल्बम फॉर द यंग (ऐंड ओल्ड)" नाम है वेरा पावलोवा के नए कविता संग्रह का. पिछले कविता संग्रह "इफ देयर इज समथिंग टू डिज़ायर" की तरह इस संग्रह की कविताओं का भ...
    7 years ago
  • Ritu saxena
    मध्यप्रदेश में बदतर होती दलितों की स्थिति - एक ओर तो केंद्र सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ के दावे करती है, लेकिन केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा शाषित मध्यप्रदेश में दलितों की स्थिति अभी भी बदतर है। ...
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  • निर्मल-आनन्द
    अपने मन की करना ही ख़तरनाक राजनीति है ! - *बैटल ऑफ बनारस के बहाने कमल स्वरूप से बातचीत * प्रश्न : आप की फिल्म बैटल ऑफ बनारस का अभी क्या स्टेटस है? कमल: फिल्म को स्क्रीनिंग कमेटी ने रिजेक्ट कर द...
    9 years ago
  • उसने कहा था...
    सोऽहम् - (परसों, 7 जुलाई को गुलेरी जी की 132वीं जयंती थी. परदादा को याद करते हुए यहां उनकी एक व्यंग्यात्मक कविता, जो 'सरस्वती' पत्रिका में साल 1907 में प्रकाशित हु...
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  • मृत्युबोध
    ''दिल्ली'' हम तुमसे बदला जरूर लेंगे! -महेश्वर - [साथी गोरख की ख़ुदकुशी (?) के बाद जनमत में महेश्वर का लिखा मार्मिक संपादकीय। कवि-आलोचक-संपादक-संगठक महेश्वर को आज उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए] महेश्व...
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  • संध्या
    रोज मरने की मजबूरी और जीने के अधिकार में फर्क जरूरी - बयालिस साल तक एक बिस्तर में काटने के बाद अरुणा शानबाग मर गईं। दरअसल उनका मस्तिष्क पहले ही मर चुका था। शरीर जिंदा था। हालांकि शरीर के सारे सिस्टम भी मर च...
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    मोदी का शब्दबाण - *भाषण के दौरान मन में द्वंद्व होता है। भय होता है कि बात मुद्दों से भटक न जाए। इसे उबाउ होने से बचाते हुए इसे उस स्तर तक भी लेकर जाना होता है। जहां विपक...
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    उत्तर आधुनिक बनने चले हम क्या आधुनिक हो सके हैं - हम बात करते हैं उत्तर आधुनिकता की लेकिन क्या हम पूरी तरह आधुनिक भी हो सके हैं? हम सदियों पुराने कर्मकांड , रूढ़ियों और शोषण की परम्परा का सगर्व निर्वहन करत...
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