अजीब लगता है, हम पर दया करना,
आखिर क्यों? ये भीख देते हो हमें
एक दिन हमारे सम्मान में
देते हो भाषण, करते हो वादे
कहते हो कि हमारे बिना अधूरी है दुनिया
पर सच बताओ क्या इसे महसूस करते हो तुम
रखो दिल पर हाथ और पूछो खुद से
क्या सच में देना चाहते हो हमें सम्मान?
या फिर अपने को महान बताने के लिए
ये भी तुम्हारा एक हथकंडा है
नहीं चाहिए हमें तुम्हारी दया
जानते हैं हम
हमारी क्षमता को
समय-समय पर हमने तुम्हें दिखाई है
अपनी क्षमताएं
तुमने भी माना है हमारा लोहा
पर आह पुरुष का तुम्हारा अहंकार
यह मानने से तुम्हें रोकता है
कि हमसे है तुम्हारा अस्तित्व,
हमसे जुड़ी है तुम्हारी नाभिनाल,
एक गाड़ी के दो पहिए हैं हम दोनों
फिर क्यों तुम हमें बराबर नहीं मानते
क्यों हमें वह दर्जा नहीं देते
जिसके हकदार हैं हम।
हमें दया नहीं अपना हक चाहिए
चाहिए वो स्थान
जो हमारा है और हमारा रहेगा।
बहुत सुंदर.... . शब्द चयन प्रशंसनीय है...
ReplyDeletethanybad
ReplyDeletebahut bhadiya
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