Tuesday 17 April 2012

संबंधों के शूल



संबंध जब सालने लगें, चुभने लगें, सिसकियों में तब्दील होने लगें तो भला कैसे कोई सब्र करे? कब तक इन्हें ढोता रहे। कब तक सुबकता रहेगा? कभी तो बांध टूटता है, कभी तो बाढ़ आती है। और जब ऐसा होता है तो लोग इन्हें पागल कहते हैं। उन्हें हमसे अलग असामान्य करार दिया जाता है। और रोंगटे खड़ी कर देनी वाली  बनती हैं कई कहानियां। ग्वालियर के हॉफ-वे होम में मिले मुङो कुछ ऐसे ही टूटे बिखरे रिस्ते। जिन्हें मैं आपसे साझा करने जा रही हूं। किस्त-ब-किस्त।




शादी या सजा
बोल-चाल में शालीन। एकदम सौम्य, सभ्य व्यवहार। पिता वकील थे, सो खुद भी वकालत का पेशा अपनाया। बीए, एलएलबी किया और फिर वकालत शुरू कर दी। तीन साल वकालत करने के बाद पिता ने उसका विवाह भी एक वकील से कर दिया। शादी के वक्त कितनी खुश थी वह। मन में कई उमंगे हिलोरें ले रही थीं, जीवन के सतरंगी सपनों से सजी थी उसकी दुनिया। क्या-क्या ख्वाब सजाए थे उसने अपने वैवाहिक जीवन के लिए, मगर सब.. टूट गए। बिखर गए सारे सपने और, और.. वह पहुंच गई मानसिक आरोग्य शाला, ग्वालियर जिसे हम ग्वालियर पागलखाना भी कहते हैं। अपनी कहानी बताते-बताते बीथिका फफक पड़ी। बीथिका हां यही नाम है उसका बीथिका चतुव्रेदी।
शादी के वक्त बहुत खुश थी वह। उसने सोचा कि पति वकील हैं, तो उसे प्रैक्टिस में सहयोग भी करेंगे और दोनों साथ मिलकर प्रैक्टिस करेंगे। अपना भविष्य और घर बनाएंगे। इन्हीं सपनों को समेटे बीथिका ने ससुराल में पहला कदम रखा। कुछ दिन तो बड़े अच्छे से बीते, मगर जब उसने प्रैक्टिस शुरू करने की बात कही, तो उसकी जेठानी बिफर पड़ीं। ‘कहीं नहीं करनी है प्रैक्टिस, महारानी जी काम करेंगी और मैं घर में अकेले खटूंगी। बिल्कुल नहीं। कान खोलकर सुन लो, कहीं नहीं जाओगी तुम।’ जेठानी की बातें उसे बहुत अजीब लगीं, जब रात को उसने पति से कहा, तो उन्होंने भी जेठानी का पक्ष लिया।  दरअसल, ससुराल में उसकी जेठानी का वर्चस्व था। बीथिका ने कई बार जेठानी को समझाने की कोशिश की, कहा कि सारा काम करके वह काम पर जाएगी, पर जेठानी को उसका काम पर जाना गवारा न हुआ। आखिरकार बीथिका ने इसे अपनी नियति मान लिया।
मगर शादी को अभी बमुश्किल छह महीने की गुजरे थे कि जेठानी के अत्याचार उस पर बढ़ते गए। जरा सी भी गलती होती, तो उसे सजा के तौर पर घाव दिए जाते। जेठानी उसके साथ जानवरों जैसा व्यवहार करती। बीथिका जब भी इस बारे में अपने पति से बात करती, तो वह भी उसकी पिटाई करता। बीथिका पढ़ी-लिखी थी, उसे इस बर्ताव से दु:ख होता। शादी को तीन साल बीत चुके थे, मगर बीथिका की नियति नहीं बदल रही थी। रोज ताने, उलाहने, मार खाती और भूखे पेट सो जाती। न पेट भर खाना मिलता न कोई दो शब्द प्यार से बोलने वाला होता। पति भी उसके पास नहीं आता और न ही उसे उसके परिवार से मिलने दिया जाता। कब तक सहती बीथिका, एक दिन टूट गया सब्र का बांध। दिमाग ने काम करना बंद कर दिया और घरवालों से उसे पागल करार दे दिया। भेज दिया उसे पागलखाने। जहां वह छह महीने रही। वह कहती रही, चिल्लाती रही कि वह पागल नहीं है, मगर किसी ने उसकी एक न सुनी। उसे शॉट लगाए गए और वह तड़पती रही।  चार महीने वहां रही, इस बीच कोई भी उसे न मिलने आया, न किसी ने उसकी खोज खबर ली। और चार महीने बाद वह पहुंची हाफ-वे-होम। जहां पर उसकी काउंसलिंग ली गई और वह अब बिल्कुल ठीक है। हाफ-वे-होम के सदस्यों ने उसके घरवालों से संपर्क किया। ससुराल वालों ने तो अपनाने से मना कर दिया, तब उसके मायके वालों से संपर्क साधा गया और अंतत: जुलाई 2008 में उसका भाई उसे आकर ले गया। बीथिका अपने घर तो चली गई, मगर अपने पीछे सवाल छोड़ गई कि आखिर उसका कसूर क्या था? जिन संबंधों पर उसने भरोसा किया आखिर उन्होंने ही क्यों उसकी जिंदगी में शूल बो दिए?



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