Thursday 18 September 2014

क्षेत्रीय विवाद बनेगा पाकिस्तान में टूट की वजह


पाकिस्तान में जातीय और क्षेत्रीय संघर्ष देश की उत्पत्ति के साथ ही शुरू हो गया था. सबसे पहले पूर्वी पाकिस्तान में भाषा का विवाद बांग्लादेश बनने का कारण बना. उसी तरह सिंध प्रांत में सिंधी और ग़ैर-सिंधी, बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन और कबायली इलाक़ों में आपसी संघर्ष के अलावा, शिया-सुन्नी फ़साद पाकिस्तान में आम बात है. सिंध में सिंधी-मोहाज़िर संघर्ष की शुरुआत वर्ष 1971 के भाषा विवाद के साथ हुई. अस्सी के दशक में अफगान शरणार्थियों के कराची में बसने के बाद इस विवाद को और मज़बूती मिली. 1984 में मुत्तहदा कौमी मूवमेंट (जो पहले मोहाजिर क़ौमी मूवमेंट के नाम से जानी जाती थी) की स्थापना हुई. इसके बाद यह पार्टी मोहाजिरों के हित की बात करती रही है. कराची में होने वाले जातीय हिंसा के लिए भी इसी को ज़िम्मेदार ठहराया जाता रहा है. वर्ष 1995 में पाकिस्तान सरकार की कार्रवाई के बाद एमक्यूएम हिंसा का रास्ता त्यागकर मुख्य धारा की राजनीति में शामिल तो हो गई, लेकिन कराची में हिंसा से इसका नाता नहीं टूटा है और यह दिनों दिन मज़बूत होता जा रहा है. वहीं अगर बलूचिस्तान की बात जाए तो, इसे वर्ष 1970 में प्रांत का दर्जा दिया गया था. लेकिन यह यहां के बलूच राष्ट्रवादियों को मंजूर नहीं था. लिहाज़ा वर्ष 1973 से 77 तक फ़ौज और बलूच राष्ट्रवादियों के बीच खूनी संघर्ष का लंबा दौर चला. इस संघर्ष में बलूच लिबरेशन आर्मी, बलूच रिपब्लिकन आर्मी और बलूच इत्तिहाद फ़ौज के ख़िलाफ़ खड़े थे. उसके बाद यह संघर्ष वर्ष 2004 से पुनः शुरू हो गया और यह सिलसिला आज भी जारी है. यहां बलूच नेताओं की हत्याएं आम बात है. वर्ष 2006 में डेरा बुग्ती के नवाब और बलूच राष्ट्रवादी अकबर ख़ान बुग्ती की हत्या फ़ौज की कार्रवाई में कर दी गई. नवाब बुग्ती की हत्या के समय पाकिस्तान में जनरल परवेज़ मुशर्रफ की फ़ौजी हुकूमत सत्ता पर क़ाबिज थी. इन हत्याओं ने बलूचिस्तान में पृथकतावादी आंदोलन को और मज़बूती प्रदान की. वैसे बलूचिस्तान में आईएसआई और फ़ौज ने यहां के बहुत सारे नौजवानों को अगवा कर लिया, उनमें कई लोगों की हत्याएं कर दी गईं और कई लोगों का अभी तक कोई पता नहीं है. वैसे पाकिस्तान बलूचिस्तान में अपनी ग़लतियां सुधारने के बजाय यहां जारी हिंसा के लिए भारत पर दोष मढ़ता रहा है. पाकिस्तान सरकार के मुताबिक़, बलूचिस्तान में जारी पृथकतावादी आंदोलन को भारत हवा दे रहा है. फाटा में पाकिस्तानी फ़ौज के तालिबान के ख़िलाफ़ कार्रवाई को दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि यह इलाक़ा पख्तून पठानों का है. यहां जाति और बिरादरी की जड़ें बहुत मज़बूत हैं. ग़ौरतलब है कि पाकिस्तानी फ़ौज, आईएसआई और सरकारी सेवाओं में पंजाबियों का एकाधिकार है. अगर यह कार्रवाई फ़ौज की तरफ़ से हो रही है तो, यहां के स्थानीय लोग इस लड़ाई को पठान बनाम पंजाबी की शक्ल दे सकते हैं. ऐसे में जो कार्रवाई आतंकवाद के ख़िलाफ़ हो रही है, उसे जातीय संघर्ष में बदलते ज्यादा देर नहीं लगेगी. अगर यहां ऐसा ही चलता रहा तो पाकिस्तान को बंटने से कोई नहीं रोक सकता. बहरहाल, पाकिस्तानी सरकार अपनी ग़लतियों से सबक नहीं सीखती है और उन्हीं ग़लतियों की पुनरावृति करती है, जो उसने पूर्वी पाकिस्तान में की थी तो हालात उससे भी बदतर हो सकते हैं. क्योंकि यहां एक तरफ बलूच अपनी आज़ादी को लेकर बग़ावत का झंडा बुलंद किए हुए हैं, वहीं सिंध में भी अलगाव की हल्की बयार नज़र आ रही है. कुल मिलाकर आज पाकिस्तान क्षेत्रीय और जातीय हिंसा के चपेट में है, जो मुल्क की एकता और संप्रभुता के लिए ख़तरा है.

मेरे एक मित्र अरुण के लेख से  साभार

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