Wednesday 24 September 2014

सांप्रदायिकता की आग में झुलसते देश



दोस्तो यह लेख जून माह में लिखा था, लेकिन ब्लॉक पर नहीं डाल पाई, अब डाल रही हूं, कुछ पुराने आंकड़े इसमें हो सकते हैं,


सांप्रदायिकता किसी भी देश के लिए खतरनाक होती है। इन दिनों दुनिया के कई देश इस आग में झुलस रहे हैं। इराक, सीरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में सांप्रदायिक सोच वाले कट्टरपंथियों ने कहर ढाया हुआ है। इस्लाम के दो धड़ों (शिया और सुन्नी) के बीच फैले द्वंद्व में यह देश फंसे हुए हैं। दोनों धड़ों के तथाकथित धार्मिक ठेकेदारों के बीच फैले संघर्ष में इन देशों की आम जनता पिस रही है, मर रही है।
हाल ही में इराक का उदाहरण हमारे सामने है। सुन्नी संप्रदाय से संबंधित आतंकी संगठन अलकायदा के एक अन्य संगठन आईएसआईएल (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवेंट) ने इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल पर अपना कब्जा  जमा लिया। मोसुल पर कब्जे के बाद इन आतंकियों ने इराक के सर्वाधित तेल उत्पादक क्षेत्र तिकरित और वहां के तेल संयंत्रों पर कब्जा कर लिया। इस संगठन ने तिकरित के लोगों को चेतावनी दी कि वे अपना स्थान छोड़कर चले जाएं। संगठन द्वारा जारी एक वीडियो में कहा गया,  श्माताओ, अपने सैनिक बेटों से कह दो कि वह अपना स्थान छोड़ दें, वरना वे मारे जाएंगे।l मोसुल, तिकरित, सिलाहद्दीन, किरकुक जैसे बड़े शहरों पर आईएसआईएल ने अपना कब्जा कर लिया। इस बीच डर की वजह से पांच लाख से ज्यादा लोग मोसुल छोड़कर चले गए और सैकड़ों लोगों की संघर्ष के दौरान मौत हो गई।
दरअसल, इराक में लड़ाई शिया और सुन्नी के बीच आधिपत्य को लेकर है। देश में शिया नीत सरकार है और प्रधानमंत्री नूरी-अल-मलीकी शिया संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं। सुन्नी संप्रदाय के लोग इराक से अलग होने की मांग कर रहे हैं। यह एक अलग सुन्नी राष्ट्र चाहते हैं। इसे लेकर जब-तब इराक संप्रदायिक संघर्ष अपना रूप दिखाता रहता है और इन सबमें आम जनता अपना सब कुछ  खो देती है।
इससे भी ज्यादा बदतर हालात सीरिया के हैं। यहां पर पिछले चार साल सांप्रदायिक हिंसा फैली हुई है। राष्ट्रपति बसर-अल-असद की सरकार के खिलाफ विद्रोह जारी है। सीरिया में अरब क्रांति के साथ ही संघर्ष की शुरुआत हुई, जो अब तक बदस्तूर जारी है। इस बीच कई देशों में सत्ताएं पलट गईं, लेकिन सीरिया में फैले संघर्ष ने गृहयुद्ध का  रूप ले लिया। असद की शिया सेनाओं के खिलाफ देश के सुन्नी विद्रोहियों के संघर्ष में अब तक एक लाख से ज्यादा लोग मारे गए हैं, जबकि लाखों की तादाद में लोग घायल हुए हैं। सीरिया में  तो हालात यह हैं कि यहां पर आम जनता पर रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया। हालांकि अभी संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में देश में रासायनिक हथियारों को समाप्त करने का काम चल रहा है। लेकिन यह कहना काफी मुश्किल है कि सीरिया के हालात किस मोड़ पर जाकर थमेंगे।
ऐसा ही कुछ पाकिस्तान और अफगानिस्तान में जारी है। पाकिस्तान में सुन्नी संप्रदाय से संबंधित अलकायदा, तालिबान जैसे आतंकवादी संगठन हावी हैं। पाकिस्तान में हाल ही में कराची हवाई अड्डे पर हुआ हमला भी इसी सांप्रदायिक लड़ाई की एक कड़ी माना जा रहा है। पाक में पिछले दिनों शिया बाहुल्य इलाकों को निशाना बनाकर  आतंकी हमले होते रहे हैं। इससे पहले भी पाकिस्तान में अक्सर जुमे की नमाज के बाद शिया मस्जिदों पर हमले हुए हैं, जिनमें हजारों की तादाद में लोग मारे गए। यही हालात अफगानिस्तान में भी नजर आ रहे हैं।
कुल मिलाकर कहा जाए, तो इस्लाम को मानने वाले दो धड़ों के बीच फैली कट्टर सोच की आग इन देशों को जला रही है और इसमें आम जनता मर रही है। इस सांप्रदायिकता की आग को ठंडा कैसे किया जाए, इसके बारे में वैश्विक स्तर पर विचार करने और उसका क्रियान्वयन करने की जरूरत है।

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