Thursday 5 April 2012

फैला ज्योति का प्रकाश



घने अंधेरे में दो पैर आगे बढ़ते जा रहे थे। कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था, चारों ओर घुप्प अंधेरा था। ज्योति न जाने कहां चली जा रही थी, उसे खुद भी पता नहीं था। दिमाग में एक अजब सी उलझन चल रही थी, पता नहीं.. क्या। मगर, ज्योति का दिमाग उसका साथ नहीं दे रहा था और अनायास ही वह घने जंगल में बढ़ती चली जा रही थी.. बस चली जा रही थी।
ज्योति को याद आ रही थी आज की सुबह.. चारों ओर शोरगुल सुनकर उसकी आंख खुल गई। इतनी-इतनी तेज आवाजें कहा से आ रही हैं, वह इसके बारे में कुछ सोचती, किसी से कुछ पूछती उससे पहले ही बाबूजी के चिल्लाने की आवाज उसके कानों में पड़ी। बाबूजी.. वह बाबूजी जो कभी ऊंची आवाज में बात भी नहीं करते थे। बाबूजी, जो उससे बेहद प्यार करते थे। वह बाबूजी उसे देखकर और ज्यादा लाल हो गए। उनका पारा और चढ़ गया चिल्लाकर बोले ‘उठ गईं महारानी’। आइए, फिर मां को आवाज लगाते हुए बोले ‘अरे जरा महारानी के लिए जलपान की व्यवस्था करो।’ उसे कुछ भी समझ में नहीं आया कि हुआ क्या है? क्यों उसके प्यारे बाबूजी चिल् ला रहे हैं। देखा, तो दोनों बहनें सहमी हुईं खड़ी थीं और मां रो रही थी। सोचते-सोचते ज्योति की आंखें भर आईं, वह और तेज कदमों से बढ़ चली। दिमाग में सुबह की घटना चल रही थी। ज्योति सोचने लगी, उस पर बिफर कर.. बाबूजी बाबूजी बड़बड़ाते बाहर चले गए। उसे कुछ समझ में नहीं आया, तो ज्योति मां के पास गई, उसे देखकर मां भी बिफर पड़ीं। ‘तू मर क्यो नहीं जाती, क्यों हमें जला रही है। ज्योति को कुछ समझ में न आया कि आखिर क्या हुआ है, मां-बाबूजी क्यों उस पर बिफर रहे हैं। तभी मां की आवाज उसके कानों में पड़ी ‘कहां से करें तेरी शादी, लड़के वाले मुंह फाड़ कर दहेज मांग रहे हैं।’ इतना कहकर मां फिर रो पड़ी। ‘मां तो मना कर दो उन्हें, लड़की दे रहे हो फिर दहेज क्यों दें। दहेज देना और लेना दोनों अपराध है।’ हां-हां बड़ी आई कानून बघारने वाली, तुङो अपनी तो फिकर नहीं है, मगर इन दोनों की तो फिकर कर। जरा गोरी पैदा नहीं हो सकती थी, एक तो पैसा नहीं ऊपर से तेरा रंग। आज तेरे बाबूजी की नौकरी भी चली गई। अरे तू नहीं होती, तो कम से कम चिंता तो नहीं होती। अब सारी जमा-पूंजी तुझमें लगा देंगे, तो क्या खाएंगे। मां उसे जली-कटी सुना रही थी। मां की बात सुनकर ज्योति रोते हुए बोली थी ‘मां कैसी बातें कर रही हो तुम, अरे रंग-रूप क्या मेरे हाथ में है। अच्छा मुङो नहीं करनी शादी, तुम छोटी और अंजू के लिए लड़का देख लो।’ ‘अरे वाह क्या खूब कहा महारानी ने शादी नहीं करनी। अरे जब बड़ी घर में बैठी रहेगी, तो छोटियों का ब्याह कैसे होगा और देखा सरला तुमने. क्या कह रही हैं महारानी।’ पता नहीं बाबूजी कहां से आ गए थे और ज्योति के अंतिम शब्द उन्होंने सुन लिए थे। माता- पिता के तीर से शब्दों से ज्योति का हृदय छलनी हो गया था। और वह दौड़कर अपने कमरे में चली गई और फूट-फूट कर रोने लगीं। रोते-रोते ज्योति की आंख लग गई, जब आंख खुली तो रात हो चुकी थी। पूरा दिन गुजर गया था, पर किसी ने उसकी सुध भी न ली थी। ज्योति का दिल जोर-जोर से रोने का हुआ। वह सिसकती रही। जब रात गहरा गई और सब सोने को चले तो ज्योति चुपचाप घर से निकली और चल पड़ी। कहां यह उसे कुछ पता नहीं था। मगर आज वह अपने जीवन को समाप्त कर बाबूजी की परेशानी को कम करना चाहती थी। उसे सोच लिया था कि आज वह अपना जीवन समाप्त कर लेगी, उसके मरने से बाबूजी को उसकी शादी की फिक्र तो नहीं रहेगी, और छोटी-अंजू की शादी भी अच्छे से हो जाएगी। ज्योति.. को याद आ रहा था अपना बचपन। कितने लाड़-प्यार से बाबूजी ने उसका नाम ज्योति रखा था.. हमेशा कहते कि वह उनकी बेटी नहीं बेटा है। उसकी हर जरूरत पूरी करते और ज्योति भी उनकी हर ख्वाहिश को पूरा करती। हमेशा अव्वल आती.. और उसे याद आया वह दिन जब ग्रेजुएशन में उसने यूनिवर्सिटी टॉप किया था, तो बाबूजी कितने खुश हुए थे..। सारे पड़ोसियों को मिठाई बांटी थी और.. और उसकी सफलता की खुशी में उसे एक स्कूटी गिफ्ट की थी। यह सोचकर ज्योति के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई, लेकिन.. तभी उसे याद आई आज का दिन.. जब उसके बाबूजी ने उसके मरने की कामना की थी। ज्योति की आंखों से आंसू झरने लगे.. उसने दुपप्टे से आंखें पोंछी और अपने कदमों को और तेज कर दिया..। घड़ी पर नजर डाली, तो दो बज रहे थे वह और तेज कदमों से चलने लगी। आज वह अपनी जिंदगी को खत्म कर देगी, ताकि उसके बाबूजी खुश रहें.. यही सब सोचते हुए ज्योति बढ़ती चली जा रही थी।  तभी उसे पीछे से आवाज आई ज्योति, ज्योति ..। ज्योति घबरा गई, उसने अपने कदमों को और तेज कर लिया, वह डर तो रही थीं लेकिन साथ ही साथ वह उस आवाज से भी दूर भागना चाहती थी, मौत का खौफ नहीं था उसके अंदर, क्यूंकि घर से अपनी मौत की ख्वाहिश ही तो लेकर निकली थी वो, लेकिन ना जाने उस आवाज से क्यूं घबरा रही थी वो । उसे फिर आवाज आई, अरे ज्योति सुनो तो, ज्योति ने हिम्मत कर पीछे मुड़कर देखा, उसे कोई दिखाई नहीं दिया। उसने रात के सन्नाटे में जहां हवा की चलने की आवाज भी स्पष्ट सुनाई दे रही थी वहां अपनी तेज और कांपती आवाज में पूछा था ‘कौन-कौन.. कौन हो तुम’। तभी उन हवाओं के शोर और रात के काले अंधेरे के बीच को चीरती हुई आवाज आई थी मैं .. प्रकाश ..। प्रकाश कौन प्रकाश?  बिना रूके ही पूछ बैठी थी ज्योति और बिना रूके ही फिर अंधेरे में अपना भी एक सवाल उछाल दिया था जिधर से वो आवाज आई थी उसी दिशा में -- मैं  किसी प्रकाश को नहीं जानती। तुम्हारा प्रकाश। मेरा .. प्रकाश श् श् श् श् ..  आश्चर्य और विस्मय के मिश्रित भाव के बीच जोरदार आवाज में फिर चिल्लाई थी ज्योति.. तुम सामने क्यों नहीं आते। मैं तो तुम्हारे साथ ही हूं.. ज्योति। तुम्हारे जीवन का प्रकाश.. तुम्हारे जीवन का प्रकाश ..श् श् श्..। तुम मुङो नहीं देख पा रही हो क्या। ज्योति ने गौर से उस आवाज को सुनने की कोशिश की और काफी जद्दोजहद के बाद उसे समझ में आया कि अरे यह आवाज तो सचमुच उसके अंदर से उसकी आत्मा से ही आ रही है। वह गौर से अपने अंदर से उठती इस आवाज को सुनने लगी थी। उसकी आत्मा की आवाज उससे अब भी सवाल पर सवाल किए जा रहा था, ज्योति कहां जा रही हो तुम ? तुम ये क्या करने जा रही हो? अपने जीवन का अंत करना चाहती हो तुम? क्या तुम बुजदिल हो ? ऐसे अनगिनत सवाल का एक ही जबाब सूझ रहा था ज्योति को ....  हां, तभी तो सब खुश हो पाएंगे मेरे घर में, तभी तो पूरा घर जी पाएगा अपनी बिंदास जिंदगी, अगर मेरे मरने से ही सब कुछ अच्छा हो सकता है तो अपनी मौत लेकर ही मैं सबको खुश देखना चाहूंगी ... बड़े सिसकते अंदाज में रूंधे गले के बीच ज्योति के हलक से इतनी ही आवाज निकल पाई थी। तभी उस आवाज ने फिर से कहा, गलत कह रही हो तुम  ज्योति। सोचो जरा जब तुम्हारी मौत की खबर बाबूजी को मिलेगी, तो उन पर क्या बीतेगी। जीते जी मर जाएंगे वो और अंजू, छोटी। तुम सोचती हो कि उनकी शादियां हो जाएंगी। नहीं ज्योति ऐसा कुछ नहीं होगा। तुम्हारी मौत की खबर उनकी मौत का पैगाम होगी। अरे सोचो जरा समाज में तरह-तरह की बातें होंगी और फिर उनकी शादियां कैसे होंगी उनकी शादियां सोचो जरा। उस आवाज की बातों में दम था और ज्योति उसकी दमदार आवाज के सामने सकपका गई थी। मगर  हिम्मत कर ज्योति ने कहा नहीं.. झूठ कह रहे हो तुम, ऐसा कुछ नहीं होगा। बाबूजी चाहते हैं मैं मर जाऊं..  तभी तो उन्होंने वह सब कहा। तुम्ही बताओ.. अगर ऐसा नहीं होता तो क्या-क्या बाबूजी ऐसा कहते सिसक पड़ी ज्योति। तभी धीमें से उस आवाज ने ज्योति को संबोधित करते हुए कहा हौसला रखो ज्योति.. ऐसा कुछ नहीं है, जैसा तुम सोचती हूं। तुम्हारे बाबूजी थोड़ा परेशान हैं बस.। मगर सोचो तुम्हारे इस कदम का क्या असर पड़ेगा सोचो जरा। और ज्योति सोच में पड़ गई तभी धीरे से उस आवाज ने कहा  तुम ज्योति हो, ज्योति..जो दूसरों की जिंदगी में प्रकाश फैलाती है और तुम खुद अपने जीवन प्रकाश को बुझाने चली हो। नहीं.. ज्योति नहीं। ये गलत है, गलत है ये सब।  अब घर जाओ, सबको संभालो और सबकी जिंदगी में अपनी रोशनी भर दो। जाओ घर। न जाने उस आवाज में कैसा सम्मोहन था कि ज्योति के कदम वापस घर की ओर मुड़ पड़े। जब वह घर पहुंची, तो सबेरा हो चुका था और सूर्य का प्रकाश जहां को रोशन कर रहा था। ज्योति ने दरवाजा खोला, तो उसे आश्चर्य हुआ। बाबूजी उसे ढूंढ रहे थे। उसे देखते ही उन्होंने लगे से लगा लिया। मां ने प्यार से सिर पर हाथ फेरा। उसे समझ में नहीं आ रहा था क्या हुआ? तभी बाबूजी ने कहा अरे तू इंस्पेक्टर बन गई ज्योति। और उनकी आंखें भर आईं। ये देख तेरा पोस्टिंग ऑर्डर.. ज्योति ने बाबूजी के हाथ से लिफाफा लिया और ऑर्डर निकालकर पढ़ने लगी। उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि उसने दोस्तों से पैसा उधार लेकर जो इंस्पेक्टर की परीक्षा दी थी, उसमें वह पास हो गई है। तभी बाबूजी ने कहा कि तू  सच में हमारे घर की ज्योति है। देख तुङो नौकरी मिल गई। मेरी ज्योति अब इंस्पेक्टर बन गई, तूने मेरा सिर ऊंचा कर दिया बेटा। घर में सबकी खुशी देखकर ज्योति ने दरवाजे की ओर देखा, तो उसे लगा कि उसके प्रकाश से सारा घर रोशन हो रहा है।


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