Wednesday 18 April 2012

कब खत्म होगा यह इंतजार


आज मैं फिर से हाजिर हूं एक और कहानी के साथ, जिसे भी छला रिश्तों ने।

कब खत्म होगा यह इंतजार

किसी भी गाड़ी की आवाज आती और वह दौड़ पड़ती दरवाजे की ओर। अगर खाना खा रही होती, तो खाना छोड़ देती, कुछ काम कर रही होती, तो काम अधूरा रह जाता, बस एक हॉर्न सुनती और उसकी आंखे घूम जातीं हाफ-वे-होम के मेनगेट की तरफ। लेकिन जब वह वहां पहुंचती, तो कोई नजर न आता और फिर वह रास्ते की ओर ताकती रहती एकटक,  इस आशा के साथ कि शायद वहां से आए उसका बेटा और उसे ले जाए घर। मगर हर बार उसकी उम्मीद अधूरी ही रह जाती।
यह दास्तां है कमला की। पूरा नाम नहीं पता। कमला इसी नाम से उसे पुकारते हैं सब उसे। सीधी-सादी महिला। गुमसुम। उम्र करीब 50 साल। एक बेटे की मां.. है वह। भरा-पूरा परिवार है उसका, लेकिन वह अकेली है।
पति की मौत के बाद कमला ने अपने बेटे को बहुत मुश्किल से पाला। बेटा बड़ा हुआ और नौकरी करने लगा, तो उसे लगा कि अब उसके दु:ख भरे दिन बीत चुके हैं। बेटा भी अपनी मां को बहुत प्यार करता था। बेटे की शादी पर कितनी खुश थी वह। बहू घर में आई, तो उसकी खुशियां दोगुनी हो गई। उसे लगा कि बस अब उसके जीवन में केवल खुशियों की सौगात होगी। कुछ महीनों सब ठीक चला। मगर फिर अचानक से पता नहीं उसकी खुशियों को किसकी नजर लग गई। आए दिन बहू उससे उलझने लगी। जरा-जरा सी बात पर उससे बहू लड़ती। कमला को बड़ा दु:ख होता, लेकिन बेटे-बहू की गृहस्थी में खटपट न हो, इसलिए वह चुप रहती। धीरे-धीरे बहू उसे और जली-कटी सुनाने लगी। इंतहा तो तब हो गई, जब बहू ने उस पर हाथ उठा दिया और बेटे ने भी बहू का पक्ष लिया। कमला को बहुत दु:ख हुआ उस दिन। फिर भी बेटे का मोह उसे छोड़ नहीं रहा था। दिन भर कमला काम करती और बहू उसे पेटभर खाना भी नहीं देती। अब तो मार खाना जैसे उसकी नियति हो गई थी। बेटा भी बहू का साथ देता। कमला कमजोर होती जा रही थी। एक दिन जरा सी बात पर बहू-बेटे ने उसकी खूब पिटाई की। कमला का सब्र टूट पड़ा और उसने सामान उठाकर फेंक दिया, बस बहू-बेटे ने उसे पागल करार दे दिया और भेज दिया पागलखाने। कुछ महीने वहां रहने के बाद जब वह कुछ ठीक हुई , तो हाफ-वे-होम के सदस्य उसे ले आए। मगर यहां से घर जाने का उसका रास्ता तय नहीं हो पाया।
जब मैं कमला से मिली, तो वह गुमसुम सी बैठी रहती थी। धीरे-धीरे उसके बारे में जानकारी मिली। जब भी कोई घर-परिवार की बातें करता, तो कमला तुरंत बेटा कहती और उसकी आंखों में एक चमक आ जाती। करीब चार साल हो गए उससे मिले हुए। कमला कैसी है, यह तो नहीं पता। मगर जब भी उसके बारे में सोचती हूं, तो बस यही सवाल उठता कि क्या कभी खत्म होगा उसका यह इंतजार? क्या कभी कोई गाड़ी कमला को ले जाने के लिए भी रुकेगी हाफ-वे-होम के दरवाजे पर?  

3 comments:

  1. सीधे एवं सरल शब्दों में समाज की कड़वी हकीकत को उजागर करती मार्मिक प्रस्तुति।

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